वीर योद्धा महाराणा प्रताप का इतिहास

उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह है। उनका जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को पिता राणा उदय सिंह और माता महाराणी जयवंता कँवर के घर में हुआ।
महाराणा प्रताप के सभी 17 पुत्र के नाम
अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।
महाराणा प्रताप की कहानी
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुग़ल सम्राट अकबर के साथ संगर्ष किया और उन्हें कई बार युद्ध मैं भी हराया। वे बचपन से ही शूरवीर, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया।
हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।
सन 1579-1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे और दूसरी तरफ वीर महाराणा प्रताप भी एक के पश्चात एक गढ़ जीतते जा रहे थे और राजा अकबर भी इसके कारण पीछे हटते जा रहे थे और धीरे-धीरे मेवाडों पर मुगलों का दवाव हल्का पड़ता चले गया।
मुगलों को दबते देख सन 1585 में महाराणा प्रताप नें अपने प्रयत्नों को और भी सफल बनाया जब उन्होंने तुरंत ही आक्रमण कर उदयपूर के साथ-साथ 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से अपना अधिकार स्थापित कर लिया
उसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुविधाओं में जुट गए परन्तु 11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई।
एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए।

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