रघु के रंग बदलने से तो ऐसा ही लगता है। लेकिन क्या केकड़ी का गुर्जर समुदाय पायलट को दिए जख्मों को भूल पाएगा?
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राजस्थान में 8 माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की चलेगी। यानी पायलट चाहेंगे, उसे ही कांग्रेस का टिकट मिलेगा। इस बात की पुष्टि अजमेर के केकड़ी से कांग्रेस के विधायक रघु शर्मा के राजनीतिक रंग बदलने से भी हो रही है। जानकारों के अनुसार रघु अब सीएम अशोक गहलोत का गुट छोड़ कर पायलट गुट में आ गए हैं। रघु जब चिकित्सा मंत्री थे, तब पायलट समर्थक मसूदा विधायक राकेश पारीक का सम्मान नहीं करते थे, लेकिन अब उन्हीं राकेश पारीक को अपनी कार में घुमा रहे हैं। रघु शर्मा मौजूदा समय में गुजरात कांग्रेस के प्रभारी भी हैं। ऐसे में केकड़ी से टिकट तो मिल जाएगा, लेकिन केकड़ी से जीत पायलट के सहयोग के बगैर नहीं होगी, क्योंकि केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर मतदाता काफी है। हालांकि रघु ने लोक सभा का उपचुनाव और केकड़ी के विधानसभा का चुनाव पायलट के दम पर ही जीता, लेकिन गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद रघु ने सबसे पहले सचिन पायलट पर ही हमला किया। कोटा अस्पताल में शिशुओं की मौत पर हुए हंगामे में तब रघु ने पीडब्ल्यूडी मंत्री के नाते पायलट को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। गहलोत के इशारे पर रघु ने तब पायलट को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। रघु उन राजनेताओं के उस्ताद है जो मौका परस्त होते हैं। रघु कभी गहलोत तो कभी पायलट के साथ चलते हैं। उनके चिकित्सा विभाग में फैले भ्रष्टाचार की ओर मुख्यमंत्री गहलोत कोई ध्यान नहीं दे, इसलिए रघु लगातार पायलट की आलोचना करते रहे। अब जब रघु के पास मंत्री पद भी नहीं है और पायलट की चलने के संकेत मिल गए हैं,तब एक बार फिर से रघु शर्मा पायलट से मित्रता कर रहे हैं। रघु को भी पता है कि अगले चुनाव में केकड़ी से दोबारा जीतना बहुत मुश्किल है। पायलट की वजह से गुर्जर समुदाय ही नहीं बल्कि आम मतदाता भी खफा है। स्वास्थ्य मंत्री रहते रघु ने प्रतिशोध और घमंड दिखाया, उससे केकड़ी के अधिकांश लोग नाराज हैे। रही सही कसर उनके पुत्र सागर शर्मा ने कर दी। पिता के रुतबे का पुत्र ने जिस तरह दुरुपयोग किया, उसका जवाब देने के लिए केकड़ी के मतदाता तैयार बैठे हैं। अपनी स्थिति को भांपते हुए ही रघु इन दिनों केकड़ी के ही चक्कर लगा रहे हैं। यहां यह खास तौर से उल्लेखनीय है कि रघु के प्रभारी रहते ही गुजरात में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। 182 में से कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिली, जबकि पूर्व में कांग्रेस की 37 सीटें थी। गुजरात में भी कांग्रेसियों को रघु के घमंड पूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा। कई नेता पार्टी छोड़ कर चले गए। कांग्रेस के साथ साथ रघु खुद भी निपट गए।
साभार, .P.MITTAL BLOGGER