वित्त मंत्रालय में कम IQ वाले लोग, नरेंद्र मोदी को अर्थव्यवस्था की समझ नही: bjp सासंद

 

BJP सांसद के मुताबिक, “मोदी जी को अर्थव्यवस्था की समझ नहीं। उनको आज्ञाकारी लोग पसंद हैं। उनका दोस्त हूं. इसलिए जानता हूं कि उन्हें स्वतंत्र होकर काम करने वाले लोग अच्छे नहीं लगते। इसी कारण से तो मुझको (सरकार से) बाहर रखा गया है।”
अपनी अटपटी बातों से अपने ही दल की सरकार को आए दिन खिझाने वाले भाजपा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि भारत के वित्त मंत्रालय में कम बुद्धि, लो-आइक्यू वाले लोग हैं।
उन्होंने यह टिप्पणी अमेरिकी चैनल Valuetainment के पैट्रिक बेट डेविड को दिए एक साक्षात्कार में दी है। साक्षात्कारकर्ता पहले तो उनसे सवाल पूछकर गांधी और नेहरू पर टिप्पणयां करवाता है। फिर वह उनको सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ले आता है। डॉ स्वामी गांधी के लिए तो अच्छी बातें कर पाते हैं लेकिन उनके ‘वारिस’ नेहरू के लिए वे तारीफ में कुछ नहीं कर पाते।
इस पर डेविड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र यह कहते हुए छेड़ देते हैं कि आप उनको सत्तर के दशक से जानते हैं और ब्लंट प्राइम मिनिस्टर की संज्ञा देते हैं। एक बार आपने उनको भोला, अनुभवहीन अर्थशास्त्री भी कहा है लेकिन खुद आपने ही कभी चाहा था कि आप को मोदी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री का ओहदा दिया जाए। अब आप यह बताइए कि अगर आपको भारत का वित्त मंत्री बना दिया जाए तो आप अपने देश को चीन और अमेरिका के टक्कर में भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे आगे ले जाएंगे।
जवाब में डॉ स्वामी मुस्कराकर स्वीकार करते हैं कि वे मोदी को सत्तर के दशक से जानते हैं। ‘मेरे मित्र हैं वो।’ इसके आगे वे वे प्रधानमंत्री के लिए ब्लंट और नाईव इकनॉमिस्ट (भोला अनुभवहीन अर्थशास्त्री) कहने से इन्कार करते हैं और कहते हैं कि मैंने दरअसल यह कहा था कि मोदी अर्थव्यवस्था के बारे में जानते ही नहीं। फिर, खुद ही कहते हैं कि यह ज्यादा कड़ा शब्द है।

बात फिर वहीं आती है कि वे वित्त मंत्री होते तो भारत की अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाते। अपने उत्तर में डॉ स्वामी डेढ़ साल से जारी कोविड महामारी का जिक्र करते हुए अचानक कहने लगते हैं कि दरअसल देश के वित्त मंत्रालय में लो-आइक्यू यानी अल्पबुद्धि वाले लोग हैं। मैं चूंकि प्रधानमंत्री का पुराना दोस्त हूं सो जानता हूं कि उन्हें ऐसे लोग अच्छे लगते हैं। वे आज्ञाकारी लोगों को पसंद करते हैं। यह उनकी कमज़ोरी है। वे चाहते हैं कि लोग उनके लिए काम करें। स्वतंत्र (रूप से काम करने वाले) लोग उन्हें पसंद नहीं। मुझको इसी वजह से दूर रखा गया है।

सवाल पर वापस लौटते हुए डॉ स्वामी कहते हैं कि कोविड के कारण भारत इस वक्त मांग की सकल घरेलू कमी (ग्रॉस डोमेस्टिक कमी) से जूझ रहा है। कामगार वर्ग और मध्य वर्ग की आय में भारी कमी आई है। शोरूमों में कारों जैसे उत्पाद की लाइन लगी है। लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे। मांग ही नहीं है।
अतएव, हमको वे उपाय करने होंगे कि देश में मांग पैदा हो। यह मांग तभी पैदा होगी जब देशवासियों की जेब में पैसा हो। इसके लिए डॉ स्वामी पहला सुझाव लोगों के हाथ में सीधे पैसा रखे जाने का देते हैं और याद दिलाते हैं कि अमेरिका में भी ऐसा ही किया गया था। दूसरा सुझाव वे ब्याज दरों में कमी का देते हैं। बताते हैं कि अमेरिका में जहां दो परसेंट ब्याज दर है भारत में अगर कोई कारोबारी लोन चाहता है उसे12 प्रतिशत देना पड़ता है, जो बैंक वालों को समझते-समझाते 15 फीसदी तक चला जाता है। ब्याज दर कम होगा तो कारोबारियों को नए उद्यम लगाने में सरलता होगी और जनता भी जोड़ने की बजाय धन खर्चने की ओर प्रवृत्त होगी। तीसरा सुझाव वे देते हैं कि सरकार सड़कें आदि खूब बनवाए। निर्माण काम होगा तो लोगों को रोजगार मिलेगा। रही मजदूरों को भुगतान करने की बात तो इसके लिए नोट छापे जा सकते हैं। नोट छापना कोई बड़ा इश्यू नहीं क्योंकि इससे हम किसी दूसरे के कर्जदार नहीं होते। एक अऩ्य सुझाव वे इनकम टैक्स खत्म करने का देते हैं। कहते हैं कि कुल दो-तीन परसेंट लोग ही तो यह कर देते हैं और इसे बचाने के लिए सब लोग लगे रहते हैं। रही यह बात कि सरकार का खर्च कहां से निकलेगा तो इसके लिए अप्रत्यक्ष कर तो है ही।

आप खुद को अमेरिका के किस नेता जैसा पाते हैं?  साक्षात्कारकर्ता के इस सवाल पर स्वामी का जवाब था रोनाल्ड रीगन।साभार जनसत्ता

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