वहां मंत्री का दर्द यहां जनता का!

 

खबर आई है कि ग्वालियर में शिवराज सरकार के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने जूते-चप्पल छोड़ दिए हैं। उनका यह दर्द ग्वालियर विधानसभा में सडक़ें न बनवा पाने पर झलका है। यही कारण है कि जनता के दर्द को समझते ऊर्जा मंत्री ने जूते त्याग दिए हैं। उन्होंने शहर की जनता से सडक़ें न बनवा पाने पर माफी भी मांगी है। दूसरी तरफ प्रदेश की राजधानी भोपाल की सडक़ों को लेकर जनता त्रस्त है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसका दर्द कोई समझने तैयार नहीं है। पुराने शहर से लेकर नए शहर की पाश कालोनियों तक की सडक़ें गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं, लेकिन यहां अभी तक किसी ने जूते त्यागने या कोई अन्य संकल्प लेने अथवा आंदोलन की बात शायद सोची तक नहीं है।
पहले बात ग्वालियर की। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न तोमर काफी ऊर्जावान हैं और समस्याओं को लेकर कुछ ज्यादा ही गंभीर रहते हैं। भले ही विद्युत मंडल के मामलों में उनकी न चले, अपने विधानसभा क्षेत्र में तो वे आए दिन नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। असल में ऊर्जा मंत्री तोमर लक्ष्मण तलैया, गेंडेवाली सडक़ और जेएएच रोड का निरीक्षण करने पहुंचे थे। यहां लोगों ने बताया कि किस तरह वह खराब व गड्ढे वाली सडक़ों से परेशान हैं। सडक़ों से उडऩे वाली धूल से लोग बीमार हो रहे हैं।
शहर की सडक़ों को लेकर हंगामा पुराना है। कुछ दिन पहले सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल ने पिंटो पार्क गोला का मंदिर की जर्जर सडक़ पर महापौर को 15 दिन का अल्टीमेटम देकर धरना देने की बात कही थी। इसके बाद महापौर ने सिंधिया समर्थक को कहा था सालों से उनकी सरकार है उन्होंने क्यों नहीं बनवाई सडकें। अब इन सडक़ों पर शिवराज सरकार में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का दर्द झलका है। एक बात और, यहां नगर निगम परिषद भाजपा की है, सो विवाद होते ही रहेंगे।
सडक़ों की बात आए तो बारिश में प्रदेश की सडक़ें वैसे भी जर्जर हो गई हैं, राजधानी के हाल और खराब हैं। दिवाली पर पूरा शहर जगमग है, लेकिन भोपाल की सडक़ों की हालत बदतर है। हाल यह है कि इस बार की रिकॉर्ड बरसात से शहर की 165 सडक़ें जर्जर हो गई। निगम, पीडब्ल्यूडी अफसर इस सडक़ों को ठीक करने के लिए मानसून विदा होने का इंतजार करते रहे। कहीं-कहीं सडक़ों की मरम्मत की गई, लेकिन दो-चार दिन बाद वह फिर ऊबड़-खाबड़ हो गई। ये हालत है जब की शहर सरकार जनता से सरकारी और गैर सरकारी मद से 15 से ज्यादा तरह के टैक्स वसूल रही है। रोड टैक्स के करोड़ों रुपए अलग। इस साल अप्रैल से 2 अक्टूबर तक ही निगम लोगों 209 करोड़ रुपए वसूल चुका है। खास बात यह है कि निगम हमेशा बजट नहीं होने का हवाला देकर काम करने में आना-कानी करता है, लेकिन टैक्स के रूप में वसूली राशि का 10 प्रतिशत भी सडक़ों की देख-रेख पर खर्च नहीं करता। यहां प्रद्युम्न तोमर जैसा कोई मंत्री या विधायक नहीं है, जो नाले में उतर जाए या जूते-चप्पल त्याग दे। यहां इंदौर जैसी जनता भी नहीं है, जो समस्याओं या मुद्दों के लिए सडक़ों पर उतरे। नेताओं की भरमार है, लेकिन सत्तापक्ष के नेता सत्ता की चाकरी में या तारीफ में जुटे रहते हैं, अपनी दुकान जमाते रहते हैं और विपक्षी बयानों के द्वारा आरोपों की बौछार करते हैं। जन प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी कितनी तत्परता से निभाते हैं, भोपाल की सडक़ों ही नहीं यहां के बदहाल अस्पतालों और तमाम समस्याओं को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। लोग भी जागरूक नहीं हैं। कुछ मुट्ठी भर लोग आवाज उठाते हैं, तो उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह घुटकर रह जाती है। जनता से बात करो तो सरकार के भरोसे ही रहना चाहती है। मतदान का मौका आता है तो राजधानी में पिछले कोई तीन दशक से यहां मुद्दों पर मतदान हुआ ही नहीं है। नब्बे प्रतिशत जनता केवल धर्म और संप्रदाय के आधार पर वोट देती आ रही है। नेताओं की पूरी कोशिश यही रहती है कि चुनाव के समय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर दिया जाए और वे सफल भी हो जाते हैं। फिर न तो सडक़ें दिखतीं, न सडक़ निर्माण में भ्रष्टाचार। न अस्पताल दिखते न स्वास्थ्य सेवाओं में हो रहा करोड़ों-अरबों का भ्रष्टाचार। मेट्रो का काम कितनी धीमी गति से चल रहा है, कोई फर्क नहीं पड़ता। सो चलते रहो गड्ढों में। तुड़वाते रहो अपनी कमर और अपने हाथ पैर। सडक़ें भले न बनें, चालान जरूर बन जाता है, क्योंकि इससे सरकार को भी इन्कम होती है और साहब लोगों को भी। बस, घिरे रहो समस्याओं में करते रहो चापलूसी, चाटुकारिता, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण। भूल जाओ सडक़ें। भूल जाओ समस्याएं। जय मध्यप्रदेश।

 

संजय  सक्सेना ( वरिष्ठ पत्रकार)

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