भारत के सांस्कृतिक इतिहास में कुछ ऐसे क्षण हैं, जो केवल घटनाएँ नहीं, आत्मा के जागरण के क्षण बन गए हैं। सन् १८७५- ७६ के लगभग रचित “वन्दे मातरम्” ऐसा ही एक दिव्य क्षण था। यह गीत केवल कवि-कल्पना का उत्पाद नहीं, भारतमाता की करुण पुकार का उत्तर था। श्री बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय जी ने जब “आनन्दमठ” में इसे स्वर दिया, तब यह केवल बंगाल की धरा से ही नहीं, सम्पूर्ण भारतभूमि से उठती हुई मातृ-भक्ति की ज्वाला थी, जिसने परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने की चेतना जगाई।
“वन्दे मातरम्” में कवि ने मातृभूमि को केवल भू-भाग नहीं माना, वरन् देवी के रूप में आराधना की *सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्, शस्यशामलां मातरम्।*
यहाँ भारतमाता प्रकृति का रूप भी है, संस्कृति की आत्मा भी, और साधना का केन्द्र भी। नदियाँ उसके कर-कमल हैं, पर्वत उसका अलंकार, और जन-जन उसका प्राण। इस दृष्टि से यह गीत भक्ति और देशभक्ति के अद्भुत संगम का प्रतीक बन गया !
स्वतंत्रता संग्राम के समय में जब प्रत्येक भारतीय आत्मबल के लिए किसी मन्त्र की खोज में था, तब “वन्दे मातरम्” उस मन्त्र का रूप ले बैठा। ललनाओं ने इसे लोरियों में गाया, क्रान्तिकारियों ने युद्ध-घोष बना दिया, और सन्तों-महापुरुषों ने इसे साधना का मन्त्र समझा। जब 1905 में बंग-भंग हुआ, तब प्रत्येक मार्ग और हर घर में “वन्दे मातरम्” गूँजा। यही वह स्वर था, जिसने गोपालकृष्ण गोखले, अरविन्द घोष, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचन्द्र बोस और महात्मा गाँधी तक के हृदयों में राष्ट्रनिष्ठा की अग्नि प्रज्वलित की। यह गीत राष्ट्र की आत्मा का संगीतमय घोष बन गया, जो आज भी भारत की एकता और अखण्डता का आधार-स्वर है।
“वन्दे मातरम्’ का दार्शनिक आशय
संस्कृत-बंगला मिश्रित यह गीत अद्वैत-वेदान्तीय दृष्टि से भी अद्भुत है। “माँ” कोई सीमित सत्ता नहीं; वह ‘विश्व-माया’ है, जिसके भीतर से समस्त सृष्टि रूप लेती है। जब हम “वन्दे मातरम्” कहते हैं, तो वस्तुतः हम ‘मूल-प्रकृति’ का नमस्कार करते हैं, जो हमें पोषण देती है और उसी से हमारी आत्मा का उद्भव होता है। यह गीत हमें यह भी सिखाता है कि राष्ट्र-सेवा केवल सामाजिक दायित्व नहीं, यह योग-साधना है; जहाँ कर्म, भक्ति और ज्ञान तीनों का अद्भुत समन्वय होता है।
आज जब स्वार्थ मुखर हो रहा है, तब “वन्दे मातरम्” की पुकार हमें एकात्म-भाव की याद दिलाती है। यह गीत हमें बताता है कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में है और उसकी आत्मा सत्य, प्रेम और करुणा के शाश्वत मूल्यों में। वर्षों के इस अमर गीत का उत्सव केवल स्मरण नहीं, संकल्प है कि हम अपनी संस्कृति, एकता और सेवा-भावना को और दृढ़ करें।
आइए ! इस पावन अवसर पर हम सब एक स्वर में माँ भारती को प्रणाम करें ! “वन्दे मातरम् !”
🇮🇳 जय माँ भारती ! वन्दे मातरम् ! जय हिन्द ! 🇮🇳