लोकतांत्रिक देश में नहीं चलेगी सरकारों की हिटलरी शाही

 

*आम आदमी के मौलिक अधिकारों का हनन कहां का न्याय है

सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में दिनों दिन परिस्थितियां बदलती जा रही है। यह परिस्थितियां अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ी है। जहां किसी को खुलकर विरोध करने का अधिकार है और नही अपनी बात कहने का। फिर वो चाहे कोई आम आदमी हो या फिर मीडिया। हर तरफ सरकारों ने अपना शिंकजा जमा लिया है यही वजह है कि आज देश का आम आदमी पूरी तरह से झुकने को तैयार है लेकिन आवाज उठाने को नहीं। क्योंकि आवाज उठाने पर ये सरकारे उसकी आवाज को दबाने के लिए बैठी है। इसका उदाहरण है जेएनयू के वो तीन छात्र जो पिछले एक साल से तिहाड़ जेल में बंद थे और उनकी रिहाई दो दिन पूर्व हुई। दराअसल छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तन्हा को फरवरी में दिल्ली में हुए सांप्रादियक दंगों से जुड़े मामलो में यूएपीए के तहत मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था। इन्हें उनके पते और जमानतदारों से जुड़ी जानकारी पूर्ण न होने का हवाला देते हुए समय पर जेल से रिहा नहीं किया गया था। दिल्ली पुलिस ने 16 जून को आरोपियों को जमानत पर रिहा करने से पहले उनके पते, जमानतदारों तथा आधार कार्ड के सत्यापन के लिए अदालत से और समय मांगा था। पुलिस के इस आवेदन को खारिज करते हुए जज ने उन्हें दिल्ली में आरोपियों के पते को सत्यापित करने और रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। वहीं, अन्य राज्य में उनके पते के सत्यापन पर अदालत ने उन्हें 23 जून को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। जेल से छूटने के बाद जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल ने कहा कि उन्हें जेल में भारी समर्थन मिला और वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे। जेएनयू छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कलिता ने अपने मित्रों और समर्थनों का धन्यवाद, जो उनकी एक साल बाद रिहाई के मौके पर काफी संख्या में जेल के बाहर इकट्ठा हुए थे। देवांगना कलिता ने कहा कि अपनी आवाज उठाने के लिए लोगों को जेलों में बंद कर देते हैं। वे लोगों की आवाज और विरोध को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें जेल में लोगों का भारी समर्थन मिला जिससे हमें वहां बचे रहने में मदद मिली। अभिव्यक्ति की आवाज को रोकने का यह सिलसिला यही नहीं रुकता बल्कि इससे पहले भी देखा गया है कि सरकारे समय-समय पर छात्र नेताओं को इसी तरह से विरोध जताने के लिए जेलो में रखती रही है। इसके अलावा किसान हो या फिर सामाजिक कार्यकर्ता इन्हें भी इसी तरह से जेलो में बंद करने का कार्य किया जाता रहा है। देश के इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में यदि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन इस तरह से किया जाता रहा है तो आने वाले समय में एक बार फिर देश में हिटलर शाही पनपना शुरू हो जाएगी।
*दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा*
प्रथम दृष्टया आसिफ इकबाल तन्हा , देवांगना कलिता व नताशा नारवाल पर यूएपीए की धारा-15ए, 17ए एवं 18ए के तहत अपराध नही बनता। विरोध करना संवैधानिक अधिकार है। इसे यूएपीए कानून के तहत आतंकी गतिविधि नहीं कहा जा सकता … लेहाज़ा जमानत दी जाती है।
*सुप्रीम कोर्ट क्या कहती है*
आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता व नताशा नारवाल को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग को ख़ारिज करते हुए कहा, हाईकोर्ट के इस आदेश को नज़ीर नही माना जाएगा, तीनों जमानत पर रहेंगे।

लेखक: विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन

(इस लेख में लेखक के विचार हैं मध्य उदय इस लेख के लिए जिम्मेदार नहीं है)

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