लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई
श्रीगोपाल गुप्ता:
कोरोना महामारी से देश को बचाने के लिये हमारी उदारवादी सरकार ने 20 लाख हजार करोड़ रुपयों का विशेष पैकेज देश की जनता को दिया है! ऐसा करके भारत विश्व में पांचवां देश बन गया है जहां सरकार ने इतना बड़ा पैकेज का ऐलान किया है! अब ये अलग बात है कि इस विशेष पैकेज का लाभ किसी को मुकम्मल तौर पर अभी जब कोरोना वायरस सुरसा की मुंह तरह फैला रहा है और लोग हलकान हैं, तत्काल मिलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है और देश के सिस्टम में खामी रहेगी तो चन्द्र लोगों को छोड़कर एक बार अधिकांसों को मिलेगा भी नहीं! जब बार-बार सरकार अपनी जिम्मेदारी और सबका साथ सबका विकास से हाथ खींच रही है तो सबका विश्वास कैसे अर्जित कर सकती है? बंदे मातरम मिशन कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने का एक फण्डा है और 70 से लेकर 80 मजदूरों को उनके भाग्य भरोसे छोड़ देना अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेना ही है! विदेशों से लाये जा रहे वहां कार्यरत भारतीयों के लिए बाकायदा सामाजिक दूरी का पालन करते हुये हवाई जहाजों में क्षमता से आधे लोगों को मुफ्त में लाया जा रहा है! उनके रुकने और 14 दिन तक क्वांराटाइन के लिये लग्जरी होटलों को अधिग्रहित किया जा रहा है जबकि असली भारत के तरण-तारण करोड़ों मजदूरों को यदि वे सड़क चलते हैं तो डण्डों की जौर पर लाॅकडाऊन का पाठ पढ़ाकर रेदा जा रहा है! पुलिस के डर से जब ये रेलवे लाईनों के सहारे अपने घरों की हजारों किमी की दूरी तय करते हैं तो रेल के पहियों के आहर बन सदा के लिए इस संसार से ही चले जाते हैं! मगर सरकार इससे पल्ला झाड़ती हुई उन्ही मरने वाले मजदूरों से उल्टा पूछती है कि आखिरकार वे रेल लाईन पर गये ही क्यों थे? मगर रोज-रोज देश की विभिन्न सड़कों पर दुर्घटना के शिकार बन अपने जीवन को त्यागते हुए मजदूरों की तबाही से सरकार या फिर राज्य सरकारें अब जाग रही हैं! बड़ी शक्ती के साथ नोकर शाहों को ताकीद दी जा रही हैं कि मजदूरों को सरकारी खर्चे पर उनके घर ट्रैन या बसों से भेजो!यदि ये सरकार समय पर जाग गई होती ?तो क्या मजदूरों के रक्त रंजित हिंद की सड़को पर इतने खौफनाक और हा-हाकारी दृष्य दिखाई देते? जिनसे आदम के कलेजे को चीरने की बात तो छोड़ दीजिये हिमालय और पर्वत भी पिघल गये!
एक गर्भवती मजदूरन चंडीगढ़ से पैदल अपने मजदूर पति के साथ अपने गांव जाने के लिए निकली! जब वो दौसौ किमी सड़क को नाप चुकी थी मैरठ के करीब पहूंच गई, तब उसके पेट में प्रसव पीढ़ा उठी साथ में चल रही मजदूरों की टोली ने उसका प्रसव कराया, मगर हिम्मत या मजबूरी देखिये कि बच्चा होने के बाद उसे आराम करना था वो एक घण्टे बाद ही फिर सड़क पर चलने लगी!एक दो साल की बच्ची सैकड़ों मील अपने मजदूर माता- पिता के साथ चलने के बाद परस्त हो गई और अपने पैरों के छालों को दिखाकर न चलने की जिद अपने माता पिता से करने लगी तो सिर पर ग्रहस्थी का सामान और गोदी में नन्ही बच्ची को लेकर चल रही मां उससे कुछ और दूर चलने की विनती कर रही थी! ऐसे हजारों कलेजे को कंप-कंपा देने वाले और पत्थरों को भी पिघला देने के दृष्य भारत ने देखे हैं, मगर बंदे मातरम का नाम लेकर विदेशों से भारतीयों को लाने वाली सरकार को शायद ये दिखाई नहीं दिया? जब देश में 30 जनवरी को चीन के बुहान से केरल लोटी छात्रा में पहले कोरोना वायरस का पता चल चुका था और मार्च महिने की शुरुआत में कर्नाटक के कुलबर्गी शहर में कोरोना से पहली मौत हो गई थी और कुलबर्गी को टोटल लाॅकडाऊन कर दिया तो सरकार ने क्या सबक लिया? सरकार पांच मार्च को ही कह चुकी कि इस दफा वो होली नहीं मनायेंगे, क्योंकि इससे सामाजिक दूरी का नियम भंग होगा, तो फिर ऐसा करने से देश को क्या लाभ मिला?जबकि अब कोरोना वायरस से पीढ़ितों की संख्या एक लाख के पास है! अब पूरा देश जानता है कि सरकार मात्र एक राज्य मप्र को छीनने के चक्कर में देश के 130 करोड़ भारतीयों को कोरोना के दांव पर लगाकर तमाम हेतियातों के बावजूद 24 मार्च लाॅकडाऊन घोषित करने तक सोती रही या फिर जागते हुये भी सोने का स्वांग रचती रही! सरकार के सोने और आंख मूंद लेने के पलों की सजा हिंद को सदियों तक झेलनी पढ़ेगी!
यह जब्र देखा है तारीखों की नजरों से!
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई!!