रेंट एग्रीमेंट नहीं है रजिस्‍टर्ड तो क्‍या किराया बढ़ा सकता है मकान मालिक, जानिए क्‍या है हाईकोर्ट का फैसला?

 

ई दिल्‍ली. प्रॉपर्टी के किराए में वृद्धि के संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्त्‍वपूर्ण फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि 11 महीने से अधिक समय के लिए बनाया गया रेंट एग्रीमेंट अगर रजिस्‍टर्ड नहीं है, तो मकान मालिक किराया बढ़ाने का हकदार नहीं है.

11 महीने तक के किराएनामा को पंजीकृत कराने की आवश्‍यकता नहीं है. निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए हाईकोर्ट ने संपत्ति मालिक द्वारा किराया बढ़ोतरी और एरियर की मांग को खारिज कर दिया.

रेंट एग्रीमेंट किरायेदार और मकान मालिक के बीच एक लिखित सहमति होती है जिसमें संबंधित मकान, फ्लैट, कमरा या कोई व्‍यावसायिक परिसर आदि को तय अवधि के लिए किराएदार को दिया जाता है. इस एग्रीमेंट में किराया, मकान की हालत, पता और रेंट अग्रिमेंट खत्म करने संबंधित नियम और शर्तों का विवरण होता है. पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17(1) के तहत किरायेदारी की अवधि अगर 11 महीने से अधिक है तो उसका पंजीकृत होना आवश्‍यक है.

 

यह था मामला

मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ने संपत्ति नेदुंगडी बैंक को 13,574 रुपये मासिक किराए पर दी थी. किराएदार ने 81,444 जमानत राशि भी जमा कराई थी. नेदुंगडी बैंक दक्षिण भातर का पहला प्राइवेट बैंक था. इसका बाद में पीएनबी में विलय कर दिया गया था. 1998 में, 23,414 रुपये के मासिक किराए के साथ किरायेदारी को अगले 5 वर्षों के लिए रिन्‍यू कर दिया गया. रेंट एग्रीमेंट में कहा गया है कि हर 3 साल में किराए में 20% की बढ़ोतरी के साथ किरायेदारी को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है.

2006 में श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ने लीज समझौते के अनुसार किराया वसूलने के लिए एक दीवानी मुकदमा दायर किया. पीएनबी ने तर्क दिया कि श्रीनिवास एंटरप्राइजेज ऐसा करने का हकदार नहीं है क्योंकि किराया समझौता न तो पंजीकृत था और न ही उस पर सही मुहर लगी थी. लेकिन निचली अदालत ने पीएनबी की दलीलों को नहीं माना और साल 2018 में पीएनबी को श्रीनिवास एंटरप्राइजेज को 5.8 लाख रुपये किराए और रेंट एरियर के रूप में देने का आदेश दिया.

पीएनबी ने हाईकोर्ट में दी चुनौती

पीएनबी ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि रेंट एग्रीमेंट 11 महीने से ज्‍यादा समय के लिए बना था. इसलिए इसको रजिस्‍टर्ड कराना जरूरी था. लेकिन, ऐसा नहीं किया गया. इसलिए प्रॉपर्टी ओनर किराया बढ़ाने का हकदार नहीं है. साथ ही लिमिटेशन एक्‍ट की धारा 52 के अनुसार 3 साल तक किराया ड्यू होते रेंट एरियर वसूलने के लिए वाद दायर करना होता है. लेकिन, वादी ने ऐसा नहीं किया. इसलिए वह एरियर के लिए अपील करने का हकदार नहीं हैl

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