स्कूलों को पूर्णतः खोलने के निर्णय के बाद, स्कूलों द्वारा पूरे सत्र की फीस मांगना कैसे न्यायोचित हो सकता है?
सरकार खुद कह रही है खतरा टला नहीं है- सावधानी जरूरी है और बच्चों के वैक्सीन अभी आई नहीं है. ऐसी स्थिति में स्कूलों में आनलाइन और आफलाइन दोनों की वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी है.
दूसरी तरफ फीस अप्रैल से नवम्बर 21 तक आनलाइन क्लास के हिसाब से ट्यूशन फीस ही लिया जाना न्यायोचित है. आनलाइन क्लास भी मात्र 2-3 घंटे ही लगाई जा रही है. इसके अलावा कोई और गतिविधियां किसी भी शाला में नहीं हो रही है.
तो क्या मंहगाई खत्म हो गई या लोगों की मुश्किलें खत्म हो गई – तो यह निर्णय थोपा जाना कि पूरी फीस अभिभावकों से वसूली जावें वो भी अप्रेल 21 से- एक अभिभावक पर न केवल बोझ बनेगा बल्कि एक गलत निर्णय साबित होगा.
होना तो यह चाहिए कि इस सत्र में बच्चों और स्कूलों के लिए स्थिति जब तक पूरी तरह सामान्य न हो जाए, तब तक आनलाइन और आफलाइन दोनों तरीके से पढाई संचालित होना चाहिए. अभिभावक पर फीस का बोझ फिलहाल इस सत्र में नहीं डाला जाना चाहिए, स्कूलों को सिर्फ ट्यूशन फीस ही लेना चाहिए ताकि अभिभावक भी इस कठिन समय को निकाल सकें.
राज्य शासन और प्रशासन को क्या अभिभावकों की परेशानी नहीं समझ आ रही जो स्कूलों को कहा जा रहा है कि वे पूरी फीस वो भी पूरे सत्र की वसूल सकते हैं.
- कैसे बिना किसी अतिरिक्त पढाई या गतिविधि के शालाओं को कहा गया कि आप पूरी वसूली शुरू करें?
- क्या अभिभावकों से ट्यूशन फीस में कोई कमी छोड़ी जो अब पूरी फीस की मांग की जा रही है?
- क्या अभिभावकों को न्यायलय की शरण में जाकर ही न्याय मांगना पड़ेगा ताकि शासन प्रशासन को सही बात समझ आवें?
- आखिर क्यों शासन के प्रतिनिधि, नेता और नौकरशाही आम अभिभावकों की परेशानी नहीं देख पा रहे कि इकट्ठा पूरे सत्र की फीस कितना बड़ा बोझ एक अभिभावक पर डालेगी?
- क्या बड़े स्कूलों ने ट्यूशन फीस के माध्यम से कितना कमाया, इसकी जानकारी एकत्रित की गई?
- क्या सामाजिक संस्था के आड़ में चलाए जा रहे ये स्कूलों ने समाज और गरीब वर्ग को कितनी सहायता प्रदान की, यह देखा?
- क्या प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों से जिनकी अभी भी आनलाइन क्लास ही चल रही है, उनसे भी पूरी फीस वसूलना जरूरी है?
जहाँ कक्षाएं 8 घंटे चलती थी, वहां पूरे सत्र के दौरान सिर्फ एक से डेढ़ घंटे आनलाइन क्लास ही चली है और अब 2 घंटे आफलाइन क्लास चलेंगी, ऐसे में पूरी फीस का निर्णय एक गैर जरूरी और अमानवीय कदम है वो भी स्कूल चला रही समाजिक संस्थानो द्वारा.
अभिभावक फीस देने से मना नहीं कर रहा बस शासन, प्रशासन और स्कूलों से मदद चाह रहा है कि फीस वसूली न्यायसंगत और तर्कसंगत एवं जनता की परेशानियों में राहत मिलें, उस पर आधारित होनी चाहिए.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर