राख बनने से पहले, थोड़ा जी लो.

महेंद्र सिँह चौहान:

जीवन एक क्षणभंगुर रेत का घड़ा है। हर पल, रेत के नन्हे कण ऊपर से नीचे की ओर सरक रहे हैं, धीरे-धीरे, निश्चित रूप से। एक दिन वह घड़ा खाली हो जाएगा, और हम, जो आज इस भागदौड़ में खोए हैं, राख में बदल जाएंगे। लेकिन सवाल यह है—क्या हम उस राख बनने से पहले सचमुच जी रहे हैं? या बस एक अंतहीन दौड़ में बिना सोचे-समझे भाग रहे हैं?

 

हमारी जिंदगी एक ऐसी दौड़ बन गई है, जहाँ हर सुबह एक नई “टू-डू लिस्ट” के साथ शुरू होती है। सुबह आँख खुलते ही मोबाइल में मेल्स, ऑफिस की मीटिंग्स, टारगेट्स, बिलों की चिंता, बच्चों की फीस, और अनगिनत जिम्मेदारियाँ। हम हर पल कुछ न कुछ हासिल करने की जद्दोजहद में डूबे रहते हैं। लेकिन इस भागमभाग में हम भूल जाते हैं कि हम जी क्यों रहे हैं। हम कहाँ जा रहे हैं?

 

क्या आपने कभी ठहरकर सोचा है? हम पैसों के पीछे भागते हैं, भविष्य को सुरक्षित करने की होड़ में आज को खो देते हैं। हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपने बच्चों का पहला टूटा-फूटा शब्द सुनने का सौभाग्य खो देते हैं, उनके स्कूल के पहले दिन का उत्साह नहीं देख पाते, अपने माता-पिता के साथ बैठकर दो पल की बातें नहीं कर पाते। और फिर, एक दिन अचानक समय रुक जाता है – शायद एक हार्ट अटैक, शायद एक अनचाही खबर – और वह जीवन, जो हमने “कल” के लिए बचाकर रखा था, राख में बदल जाता है।

 

क्या यही वह जिंदगी है, जिसे हम जीना चाहते थे?

 

ज़रा एक पल रुककर देखिए। छोटे बच्चे कितनी मासूमियत से हँसते हैं। उनके लिए न भविष्य की चिंता है, न बीते हुए का बोझ। वे बस “अभी” में जीते हैं – खुलकर, निश्छल, पूरे दिल से। और हम? हम “अभी” को भूलकर, कल की चिंता और बीते हुए के दुख में उलझे रहते हैं। हमारा मन एक ऐसी जेल में कैद है, जहाँ हम आज के आनंद को छू भी नहीं पाते।

 

जीवन एक अनमोल उपहार है, हर साँस एक नया मौका। लेकिन हम इसे कैसे जी रहे हैं? क्या हमने कभी किसी की आँखों में अपनी वजह से खुशी के आँसू देखे? क्या हमने किसी के कठिन पल में उनका हाथ थामा? क्या हमने अपने प्रियजनों को सचमुच समय दिया – वह समय, जो पैसे से नहीं खरीदा जा सकता?

 

जब हम इस दुनिया से राख बनकर विदा होंगे, तब लोग हमें किसके लिए याद करेंगे? हमारे बैंक बैलेंस के लिए? या उस प्यार, उस सम्मान, उस हँसी के लिए, जो हमने दूसरों के साथ बाँटा? छत्रपति शिवाजी महाराज, जोतिबा फुले, विरसा मुंडा, छत्रपति शाहू महाराज जैसे लोग आज भी इसलिए जिंदा हैं, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन को दूसरों के लिए समर्पित किया। उनकी संपत्ति उनके कर्म थे, उनकी विरासत उनका प्रेम और मानवता थी।

 

आपके पास आज क्या है? आपके माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी, बच्चे, दोस्त – ये सभी अनमोल रिश्ते। लेकिन क्या आप इन्हें समय दे रहे हैं? क्या आप खुद को समय दे रहे हैं? वह गाना, जो आप हमेशा सीखना चाहते थे, वह यात्रा, जो आप सपनों में देखते थे, वह सपना, जो आपके दिल में दबा हुआ है – क्या आप उसे जी रहे हैं? या फिर “रिटायरमेंट के बाद” का बहाना बनाकर उसे टाल रहे हैं?

 

सच तो यह है कि रिटायरमेंट के बाद समय नहीं, बल्कि ऊर्जा और स्वास्थ्य कम हो जाता है। डॉक्टर कहते हैं, “नमक कम करो, चीनी कम करो, ज्यादा मेहनत मत करो।” जब दाँत थे, तब चने नहीं थे, और जब चने आए, तब दाँत जवाब दे चुके होते हैं। फिर क्यों आज को कल के लिए टालना?

 

हर सुबह एक नया अवसर है। हर साँस एक अनमोल तोहफा। आज जो साँस आपके पास है, वह कल हो, यह जरूरी नहीं। तो क्यों आज को चिंताओं में, डर में, या भागदौड़ में बर्बाद करना?

 

*राख बनने से पहले, थोड़ा जी लो।*

– किसी को मन से गले लगाओ, ताकि वे तुम्हें हमेशा याद रखें।

– किसी की मदद करो, ताकि उनकी दुआएँ तुम्हारे साथ रहें।

– अपने सपनों को पंख दो, क्योंकि सपने वही हैं जो हमें जीवित रखते हैं।

– खुलकर हँसो, बेफिक्र होकर बागड़ो, क्योंकि यही जीवन है।

 

जब अंत में राख बनना है, तब सवाल यही बचेगा –

“क्या हमने सचमुच जिया?”

 

तो आइए, इस पल को जियो। अपने लिए, अपने प्रियजनों के लिए, और उन अनगिनत क्षणों के लिए, जो अभी बाकी हैं। क्योंकि राख बनने से पहले, जीवन का हर रंग, हर स्वाद, हर खुशी जी लेनी है।

 

भस्म होने से पहले, थोड़ा जी लो…

 

 

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