पंचांग की गणना के अनुसार द्वितीय शुद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर 30 अगस्त बुधवार के दिन रक्षाबंधन का महापर्व मनाया जाएगा। हालांकि इस दिन सुबह 10 बजे से रात 9 बजकर 7 मिनट तक भूलोकवासिनी भद्रा रहेगी। धर्मशास्त्र में भूलोक की भद्रा के साए में शुभ कार्य वर्जित बताए गए हैं। इसलिए रक्षाबंधन का पर्व रात 9 बजे के बाद मनाया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया इस बार श्रावणी पूर्णिमा 30 अगस्त को बुधवार के दिन धनिष्ठा उपरांत शततारका नक्षत्र तथा अतिगंड योग एवं सुकर्मा करण के साथ कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में आ रही है।

इस दिन सुबह 10 बजे से रात 9.07 बजे तक भूलोक वासिनी भद्रा रहेगी। भद्रा का वास भूलोक पर होने से दिवस कालीन भद्रा के प्रभाव के कारण रक्षाबंधन रात्रि में मनेगा। रात्रि नौ बजकर सात मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगी उसके बाद रक्षाबंधन का पर्व मनाना शास्त्रोक्त रहेगा।क पर रहेगी भद्रा इसलिए दिन में रक्षाबंधन निषेध है। धर्म शास्त्रीय अवधारणा, मुहूर्त चिंतामणि, सिद्धांत शिरोमणि आदि धार्मिक ग्रंथों में भद्रा के संबंध में अलग-अलग विचार प्रकट किया गया है।

कुल मिलाकर जब भद्रा का वास पृथ्वीलोक या भूलोक पर हो तब उस भद्रा का त्याग कर देना चाहिए तथा भद्रा की समाप्ति की प्रतीक्षा करनी चाहिए उसके बाद ही रक्षा बंधन का पर्व मनाना चाहिए। वैसे भी दिवस काल में पूर्णिमा की साक्षी का क्रम या विपरीत योगों का क्रम हो या भद्रा का क्रम हो तो भी त्यागने योग्य है।

श्रावणी पूर्णिमा पर होगा यजुर्वेदी ब्राह्मणों का उपाकर्म

श्रावणी पूर्णिमा पर सुबह भद्रा के स्पर्श से पहले यजुर्वेदी ब्राह्मणों का उपाकर्म होगा। ब्राह्मण वर्षभर हुए ज्ञात अज्ञात दोषों की निवृत्ति के लिए पंचगव्य, शुद्धि स्नान के उपरांत देव, ऋषि पूजन कर नई जनेऊ धारण करेंगे। पं.डब्बावाला के अनुसार श्रावणी उपाकर्म में भद्रा का दोष नहीं लगता है।