ये कैसा तंत्र जो लाशों के ढेर देखकर भी पसीजता नही, न कार्रवाई करता

_आये दिन होते हादसों पर क्या किसी को भी कोई फर्क नही पड़ रहा?_
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*सरकार है क्या? सिस्टम है क्या?*
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_ये कैसा तंत्र जो लाशों के ढेर देखकर भी पसीजता नही, न कार्रवाई करता_
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_हर हादसे पर बस रस्मअदायगी, फिर वही अराजकता, कानून का जैसे ख़ौफ़ ही नही_
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_*36 लोग बावड़ी में डूबकर मर गये। 25 पुल से नीचे गिरी बस में मर गए। 14 कुछ दिन पहले भी नदी में गिरी बस में मर गए। 2 जंजीरवाला चौराहे पर मर गए। 1 हीरा नगर में मर गया। 2 तेज रफ़्तार सड़क हादसे में मर गए। मरे, मरने वाले..हमे क्या? ये तो अगले दिन फिर होगा..!! है न ये हैरत की बात? ये ही तो हो रहा है आपके हमारे साथ। कल मरते हो तो आज मर जाओ। फर्क नही पड़ता। फर्क पड़ता तो नजर आती ने सरकार। दिखाई देता सिस्टम। कानून का। जवाबदेही का। आपको नजर आया क्या? आये तो बताना…!!*_
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*नितिनमोहन शर्मा*

*बस हादसा।* 24 जिंदगी काल कवलित। 4 अभी गम्भीर है। दुधमुंहे मासूम बच्चें भी। महिलाएँ भी। 40 फीट से गिरी बस में ये सब गरीब मर गए।

*बावड़ी हादसा।* 36 जिंदगियां काल के गाल में समा गई। कई परिवार पूरी तरह उजड़ गए। दर्जनभर से ज्यादा अभी भी गम्भीर घायल हैं। कुछ सदमे में है और सुदबुध खो बैठे हैं।

*जंजीरवाला हादसा।* शराबी कारोबारी तेज रफ़्तार कार से उस स्कूटर को उड़ा देता है जिस पर चार मासूम बच्चे और इन बच्चों के पिता-ताऊ सवार थे। एक मासूम और पिता के आन द स्पॉट पर प्राण पखेरु उड़ गए। 3 बच्चे अब भी घायल हैं।

*हीरा नगर हत्या:* दुकान में घुसकर कपड़ा कारोबारी नोजवान को मौत के घाट उतार दिया। हत्यारे अब और जान लेने के लिए धमका रहें।

*तेज रफ़्तार मौते* : ऐसा दिन नही बीत रहा जब शहर में सड़क हादसे में कोई न कोई मर नही रहा। बुधवार को फिर दो युवक मारे गए।

*लाशों की ये फेहरिस्त और भी लम्बी हैं। पर फर्क किसे पड़ रहा है? लाशों के ढेर पर सब कुछ बदस्तूर चल रहा हैं। सरकार भी, सिस्टम भी, शहर भी। सरकार मौत के मुआवजे की रस्म पूर्ण कर फिर से सत्ता में लौटने की दिन रात वाली चिंता में जुट जाती हैं। प्रशासनिक अफसर चुनावी जमावट निमित्त इस तरफ से उस तरफ किये जा रहें हैं। पुलिस महकमा उस टीआई के आगे नतमस्तक है जिस पर दो मौत का सौदा लाखो में करने और शराबी हत्यारे को बचाने का आरोप हैं। विपक्ष नारी सम्मान योजना की डोंडी पीटने में व्यस्त हैं। पक्ष के नेताओं की चिंता का विषय 2023 का चुनाव हैं तो विपक्ष के नेता इस मंजर पर कोरी बयानबाज़ी तक सिमटे हैं। शहर भी अपनी रफ़्तार से चल रहा हैं।*

*मरने वाले, मरे। क्या फर्क पड़ता है? और किसे फर्क पड़ता हैं। भाड़ में जाये सब। कभी हादसे में होने वाली एक मौत सबको विचलित कर देती थी। पक्ष विपक्ष सहित समूचे सिस्टम को भी। जनसामान्य भी असहज हो जाता था और अरसे तक सामान्य नही होता था। बगेर सवाल खड़े हुए सिस्टम से जुड़े लोग नैतिकता के आधार पर घटना-दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी ले लेते थे। अब हालात ये है कि हर महीने, दूसरे महीने इन्दौर खंडवा या खलघाट के बीच बड़े हादसे हो रहे हैं। सेकड़ो जाने जा चुकी है लेकिन रस्म अदायगी की कार्रवाई और फिर सब कुछ पहले जैसा। ट्रांसपोर्ट माफ़िया के आगे सब नतमस्तक। ऐसे ही शहर में आये दिन हत्या लेकिन हत्यारो पर कोई ख़ौफ़ नही। वे सोशल मीडिया पर और हत्या करने की धमकी देते हैं। क्योकि उन्हें उस गोली-चाकू, तलवार का स्वाद चखाया ही नही जा रहा जो दूसरे को मौत के घाट उतार देती हैं।*

*मौत पर लेनदेन करने वाले एक टीआई की निर्लज्जता पर शहर धिक्कारता है लेकिन मज़ाल है उस पर कार्रवाई हो जाये। जनता भले ही उस पर कार्रवाई के लिए प्रदर्शन करें, मोमबत्ती जलाए। टीआई साहब कुर्सी पर जमे हैं। बावड़ी हादसे में 36 मौत के डेढ़ महीने बाद भी आरोपियों में से एक की भी गिरफ्तारी नही, हादसे की जवाबदेही तय करना तो बहुत दूर की बात। हत्या, हमले, मारपीट, एक्सीडेंट अब रोज की बात।*

*कही कोई चिंता नजर आती हैं? सड़क हादसों को रोकने की? बेलगाम बस माफ़िया की नाक में नकेल कसने की? तेज रफ़्तार बस चलाने वालों के हाथ पैर तोड़े जा रहे है क्या? शराब पीकर बस चलाने वाले उलटे लटकाए जा रहे हैं? हत्या करने वाले गुंडों की गुंडई स्थाई खत्म करने की कोई कवायद दिखती हैं? कानून की कोई ताकत या कानून का राज नजर आता हैं? अगर आता है तो ये “छटाँग” भर के बदमाशों की हथियारों के संग धमकियां क्यो और किसलिए हैं?*

*ऐसी मुर्दानगी। ऐसा मरघट सा सन्नाटा..!! क्या इसे सरकार, सिस्टम कहते हैं? सिस्टम होता, सरकार होती, अफसर होते तो नजर आते न। कही न कही तो दिखने थे ने ये सब। हर महीने होते बस हादसो में, जंजीरवाला चोराहा पर, तुकोगंज थाने में, स्नेह नगर की बावड़ी में, हीरा नगर की गलियों में, ड्रग वाली, पब-बार वाली रँगीन रातों में..!!*

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