डॉ. राघवेन्द्र शर्मा,
भारत की आजादी के बाद से लेकर अभी तक यह बात बार-बार सत्यापित होती चली आई है कि विपक्ष प्रत्येक चुनाव में विकास को चुनावी मुद्दा बनाता है और इस मोर्चे पर सरकार के विफल होने पर उसे आड़े हाथों लेता है। यह भी सर्वविदित है कि जब जब विपक्षी दलों ने सरकार की असफलताओं और उसके जनविरोधी कृतित्व की मुखालफत की है, तब तब उसे ना केवल राजनीतिक लाभ हासिल हुआ बल्कि सत्ता के शिखर पर वर्चस्व भी मिला है। उदाहरण के लिए, कालांतर में जब भी भारत के लोकतांत्रिक विपक्ष को शासन के खिलाफ ऐसे मुद्दे मिले जिनमें आपातकाल, बोफोर्स तोप, भोपाल गैस त्रासदी, गरीबी, बेरोजगारी, असुरक्षा को प्रमुखता से उल्लेखित किया जा सकता है। इनके मुखर होने पर जनता ने विपक्ष को गंभीरता से लिया। जिसका परिणाम समय-समय पर सत्ता परिवर्तन के रूप में देखने को मिला। यह मुद्दे कितने सात्विक थे अथवा नहीं विषय यह नहीं है। मसला यह है कि यह सारे विषय आम जनता से जुड़े हुए थे और देश प्रदेश का नागरिक यह मानकर प्रश्न चित्त होता था कि विपक्ष उसके हित की बात कर रहा है। यह बात जब जनसाधारण के मस्तिष्क में ठीक तरह से बैठी तो फिर नतीजे सत्ता के खिलाफ ही देखने को मिले। किंतु आज का विपक्ष ना जाने क्यों आम जनता की बात करने से चुप रहा है अथवा जानबूझकर जन हितेषी आंदोलन उठाने से बच रहा है। लिखने की बाध्यता इसलिए भी बनी है, क्योंकि मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव नवंबर माह में होने हैं। जाहिर है अब लोकतांत्रिक युद्ध में ज्यादा देर नहीं है। फिर भी मध्य प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अभी तक केवल इसी झंझावात में उलझा हुआ है कि उनके विधायक का निलंबन कर दिया, हमारे नेता के बारे में ऐसा बोल दिया, कांग्रेसी विधायक का अपमान कर दिया, हमें उंगली दिखा दी। इन बातों को देखकर जनता समझ नहीं पा रही कि कांग्रेस के इस व्यवहार के लिए उसकी आलोचना करें या फिर उसकी संभावित दुर्दशा को लेकर उसको दया का पात्र मान लिया जाए। क्योंकि कॉन्ग्रेस इन दिनों जनताके भले की बात करने की बजाय अपने खंड खंड हो चुके झूठे अभिमान को बचाए रखने की लड़ाई में उलझी नजर आती है। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर विकास को मुद्दा बनाकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर कर चुके हैं। आश्चर्य की बात तो यह है की जिन मुद्दों के आधार पर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष को घेरे जाने की परिपाटी रही है, मध्यप्रदेश में वह काम शासन पर काबिज भारतीय जनता पार्टी करती दिखाई दे रही है। उदाहरण के लिए- मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने अभी से माता बहनों की सुरक्षा, उनका संरक्षण, युवाओं के लिए रोजगार नौकरी, वृद्धों के लिए पेंशन, बालिकाओं का संवर्धन, शिक्षा का उन्नयनीकरण, किसानों का लाभ आदि जन हितेषी कार्य जनता के सामने रख दिए हैं। मुख्यमंत्री के द्वारा कांग्रेस की निंदा में समय बर्बाद किए बगैर जनता को यह बताया जा रहा है कि हम अपने शासन में अपने सामर्थ्य अनुसार अधिकतम आपकी सेवा में संलग्न बने रहे। अवश्य ही इस में कुछ कमी रह गई होगी, जिसकी पूर्ति के लिए हमें एक बार फिर जनता जनार्दन के आशीर्वाद की आवश्यकता है। अचरज की बात तो यह है कि मध्य प्रदेश सरकार को और खासकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जनता द्वारा बेहद गंभीरता से लिया जाता है। कारण बस यही है कि वे विपक्ष द्वारा नितदिन किए जा रहे स्वयं के अपमान से व्यथित नहीं होते। बल्कि अपनी आलोचनाओं से सीख लेकर और अधिक ऊर्जा के साथ जनसाधारण की सेवा में जुट जाते हैं। शायद यही वजह है कि भाजपा एक बार फिर आत्म विश्वास से लबरेज नजर आती है। वहीं कांग्रेस तथा उसके नेता एक बार फिर आम आदमी को निराश करते दिखाई दे रहे हैं। इस परिदृश्य को लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्यवर्धक तो नहीं कहा जा सकता। काश कांग्रेस इस सच्चाई को समझ पाती।
लेखक- डॉ. राघवेन्द्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार है।