मुख्यमंत्री की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का दंड राजस्थान के एक लाख 76 हजार परीक्षार्थियों ने भुगता

 

जब प्रदेश की यूनिवर्सिटी ने वार्षिक परीक्षाएं स्थगित नहीं की तो राज्य शिक्षा बोर्ड ने क्यों की?

ज्योतिबा फूले जयंती पर अचानक घोषित सरकारी अवकाश का मामला।
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अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के तहत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 10 अप्रैल को अचानक 11 अप्रैल को समाज सुधारक ज्योतिबा फूले की जयंती पर सरकारी अवकाश घोषित कर दिया। सरकार की घोषणा के साथ ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष और संभागीय आयुक्त बीएल मेहरा ने भी 11 अप्रैल को होने वाली बोर्ड की वार्षिक परीक्षाओं को स्थगित कर दिया। 11 अप्रैल को बोर्ड की 12वीं कक्षा की चित्रकला व प्रवेशिका संस्कृत द्वितीय और 10वीं कक्षा में व्यावसायिक विषयों की परीक्षा होनी थी। इन दोनों कक्षाओं की परीक्षाओं में प्रदेश के 1 लाख 76 हजार परीक्षार्थी भाग ले रहे हैं। हालांकि अब यह परीक्षा 13 अप्रैल हो होंगी, लेकिन सरकार और शिक्षा बोर्ड के निर्णय से परीक्षार्थियों और उनके अभिभावकों को भारी परेशानी हुई है। गंभीर बात तो यह है कि 11 अप्रैल को शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं का अंतिम दिन था, लेकिन अब बोर्ड को परीक्षा के सभी इंतजाम एक दिन और बढ़ाने होंगे। सीएम अशोक गहलोत पहले 10 साल और अब चार साल से मुख्यमंत्री है। इस अवधि में 14 हजार ज्योतिबा फूले की जयंती हुई, लेकिन कभी भी सरकार ने सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया। अब जब विधानसभा चुनाव में मात्र छह माह रह गए हैं, तब ज्योतिबा फूले की जयंती से एक दिन पहले अवकाश घोषित किया गया। सीएम गहलोत को लगता है कि इससे प्रदेश का माली समुदाय खुश हो जाएगा। माली समाज कितना खुश होता है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने ही अपनी परीक्षाएं स्थगित क्यों की? परीक्षा तो राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर जयनारायण विव जोधपुर, महाराजा गंगासिंह विवि बीकानेर, एमडीएसयू अजमेर आदि में भी हो रही हैं। लेकिन किसी भी यूनिवर्सिटी ने अपनी परीक्षा स्थगित नहीं की। जब अचानक घोषित सरकारी अवकाश पर विवि के विद्यार्थी परीक्षा दे सकते हैं तो शिक्षा बोर्ड के क्यों नहीं? क्या राज्य सरकार और बोर्ड प्रशासन अपने परीक्षार्थियों की परेशानी से कोई सरोकार नहीं है? सीएम गहलोत माने या नहीं, लेकिन बोर्ड परीक्षा स्थगित होने से परीक्षार्थी और अभिभावक बेहद गुस्से में हैं। इससे बोर्ड प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं।

S.P.MITTAL

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