माँ दुर्गा का मुस्लिम प्रतिरूप बनाने और गरबा में शामिल होने की मुसलमानी जिद !
डॉ. मयंक चतुर्वेदी:
भारत समेत पूरे विश्व में शक्ति आराधना का समय चल रहा है। हिन्दू अपनी सामर्थ्य के अनुसार माँ की भक्ति में लीन हैं, इस बीच जो सोच नकारात्मक रूप से दिखाई दे रही है, वह बहुत परेशान करनेवाली है। यह इसलिए भी परेशान कर रही है क्योंकि माँ दुर्गा को भी इस्लामीकरण की जद में लाने की जिद दिखाई दे रही है। इससे जुड़ी एक घटना मध्य प्रदेश के इंदौर से सामने आई, जिसमें दुर्गा मां की मूर्ति को ‘बुर्का’ पहनाने और माथे पर इस्लामी बेंदा लगाना पाया गया। दूसरी घटना देश भर में कई जगह घटने की सामने आ रही है, जिसमें कि कई मुसलमान युवा गरबा महोत्सव में भाग लेते हुए पाए गए और अभी भी दुर्गा पंडाल से अपनी दूरी नहीं बना पा रहे हैं, इसके लिए ये अपने आधार कार्ड से लेकर सभी पहचान जो वहां पंडाल में प्रवेश के पहले दिखाई जानी हैं, उनमें हिन्दू नाम डालकर जाली तरह से उन्हें तैयार करवा रहे हैं। अब चिंता इस बात की है कि जिनका विश्वास ही हिन्दू संस्कृति, देव पूजा पर नहीं, जो मूर्ति पूजन को हराम मानते हैं, यहां तक कि उनके मजहब में नाचगाने तक की मनाही है, आखिर वे इन गरबा महोत्सवों में जाने की जिद क्यों पकड़े हुए हैं?
भारतीय संस्कृति में गरबा नृत्य मां भगवती को समर्पित है। भारतीय तत्वज्ञान के दिशा-सूत्र देनेवाले शास्त्र नृत्य को साधना का एक मार्ग बताते हैं। गरबा का शाब्दिक अर्थ होता है गर्भ दीप, जोकि स्त्री के गर्भ की सृजन शक्ति का प्रतीक है और गरबा के माध्यम से उस शक्ति की आराधना हम सभी इस उत्सव के माध्यम से करते हैं। वस्तुत: यह शक्ति हर स्त्री-पुरुष में बराबर से विद्यमान है। गरबा के केंद्र में कच्ची मिट्टी के छेदयुक्त घड़े को रखा जाता है, जिसमें दीप प्रज्वलित है। इसको गरबो कहा गया है। इसके बाद माता का आह्वान किया जाता है और फिर नृत्य करने वाले गोले में नृत्य करते हैं। यहां गोल घेरे में किए जाने वाला गरबा जीवन के गोल चक्र का प्रतीक है। इसमें महिला, पुरुष, बच्चे सभी शामिल होते हैं।
कहना होगा कि व्यक्ति का जीवन चक्र भी इसी तरह का है। कच्ची मिट्टी के घड़े की तरह बीच में एक दीपक गर्भस्थ होकर जीवन को पाता है। पूरा परिवार एवं समाज उस गर्भस्थ शिशु के होने के लिए एक तरफ खुशियों को अभिव्यक्त कर रहा होता है तो दूसरी ओर उसकी संपूर्णता के साथ रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध रहता है। इस सब के बीच जो प्रकाश है वह शक्ति का रूप है, यही शक्ति और ऊर्जा ही महामाया एवं शक्ति का प्रतिबिंब है, जिसके प्रति सभी अपना आदर भाव यहां नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित कर रहे होते हैं। इस सृष्टि की सृजनकर्ता भगवती अम्बा, जगदम्बा, मां दुर्गा, महामाया को श्रद्धा के साथ याद करते हुए प्रणाम अर्पित कर रहे होते हैं।
गरबा खेलते समय महिलाएं तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। यह तीन तालियां त्रिदेव को समर्पित हैं। पहली ब्रह्माजी, दूसरी भगवान विष्णु और तीसरी भगवान महादेव का प्रतीक हैं। तीन तालियां बजाकर तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है। वे तीनों ही इस नृत्य के साक्षी बनें, अपना आशीर्वाद दें और हम सभी मनुष्यों के जीवन को सफल करें। गरबा के नृत्य में ध्वनि से जो तेज प्रकट होता है और तरंगे निकलती हैं, उससे मां अंबे जागृत होती हैं, ऊर्जा की दिव्य प्रकाश चारों ओर फैलता है, यही मान्यता है । अन्य हिंदू अनुष्ठानों और पूजा की तरह, इसे नंगे पैर किया जाता है। यहां नंगे पैर चलना मां धरती के प्रति सम्मान है नंगे पैर नृत्य करना देवी से जुड़ने का एक और तरीका माना गया है। क्योंकिे धरती में उत्पादक शक्तियाँ भरी हुई हैं और पैर को एक ऐसा माध्यम माना जाता है जिसके माध्यम से धरती की महत्वपूर्ण ऊर्जा मनुष्यों के माध्यम से यात्रा करती है। इसलिए गरबा सदैव नंगे पैर ही किया जाता है।
देखा जाए तो यह है गरबा नृत्य करने के पीछे का आध्यात्मिक कारण, जिसके प्रति किसी भी इस्लामवादी की कोई आस्था नहीं है, फिर भी ये इस नृत्य में शामिल होना चाहते हैं, चाहे फिर इसके पीछे अपनी पहचान ही क्यों न छिपानी पड़े! वस्तुत: यहीं से उनके इस कृत्य से शक पैदा होता है, और ये शक पैदा होना ऐसे ही नहीं है, पिछले कई वर्षों के अनुभव हिन्दू समाज के सामने हैं, जिसमें गरबा नृत्य के माध्यम से हिन्दू महिलाओं के साथ नजदीकियां बढ़ाना, फिर उन्हें लव जिहाद के माध्यम से पूरी तरह से अपने चंगुल में ले लेने के अनेक प्रकरण हैं, जिनमें सभी का हेतु इन मुसलमान युवकों का एक ही रहा है। लव जिहाद, लव जिहाद एवं लव जिहाद…। हर बार इन मुस्लिम युवकों द्वारा छद्म हिन्दू नाम रखकर हिन्दू युवतियों को छला गया है।
इस बार जब पहले से ही हिन्दू संगठनों ने कह दिया था कि कोई गैर हिन्दू गरबा पंडाल में नृत्य के लिए नहीं आए, अन्यथा उसे बाहर किया जाएगा, उसके बाद भी पिछले दिनों में कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। कानपुर में मुस्लिम युवक गरबा करते हुए पकड़ा गया, झांसी में भी गरबा पंडाल के अंदर जाकर लोगों की चेकिंग की तो एक युवक मिला जोकि मुसलमान था। इंदौर में गाड़ी अड्डा क्षेत्र में हो रहे गरबा पंडाल में दो युवकों पर विहिप कार्यकर्ताओं की नजर पड़ी, जो कि गरबा कर रही हिंदू युवतियों का वीडियो बनाने के साथ फोटो खींच रहे थे। शंका होने पर दोनों युवकों के नाम पूछे तो दोनों में एक ने अपना नाम वैभव और दूसरे ने अनुज बताया। जब विहिप कार्याकर्ताओं ने आधार कार्ड या आईडी जो भी पास हो दिखाने को कहा तो युवकों ने अपना मुस्लिम होना स्वीकार किया। उसके बाद जब पुलिस ने छानबीन की तो सामने आया कि एक युवक का नाम तामीर पिता नारू शाह निवासी सदर बाजार और दूसरे का रिहान शुभान शाह अली निवासी पोलो ग्राउंड इंदौर हैं।
इसी इंदौर से एक दूसरी घटना सामने आई, खजराना बायपास पर गरबा उत्सव में दो मुस्लिम युवक नॉनवेज लेकर पहुंच गए। जब पता है कि हिन्दू शाकाहारी तरीके से अपनी आराधना करता है, तब इन मुस्लिम युवकों द्वारा नॉनवेज लेकर पहुंचने के मायने क्या हैं? क्या यह उनकी भक्ति और भावना को ठेस पहुंचाना एवं भ्रष्ट कर देने का प्रयास नहीं है? आप साल, दरसाल हर वर्ष का रिकार्ड देखें; आपको इस प्रकार की अनेक घटनाएं गरबा महोत्सव के दौरान इस्लामवादियों द्वारा घटाती हुई मिल जाएंगी। आखिर इन सभी घटनाओं के पीछे का लक्ष्य क्या है? गहराई से जांच करने पर सामने यही आता है कि हिन्दू लड़कियों से नजदीकियां बनाना और फिर मौका देखकर उन्हें लव जिहाद का शिकार बना देना ।
वस्तुत: उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत ने हाल ही में ‘लव जिहाद’ के आरोप में एक मुस्लिम युवक को आजीवन कारावास की सजा सुनाते वक्त जो कहा, वह हम सभी को समझना होगा, अडिशनल सेशन न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने जो कहा उसका देशव्यापी महत्व है। इस केस में आरोपी मोहम्मद अलीम ने पीड़िता को अपना नाम आनंद बताया और उससे हिंदू रीति-रिवाजों से शादी की थी। फिर पीड़िता का यौन शोषण, फोटो व वीडियो बना कर ब्लैकमेल जैसे कई अपराध मोहम्मद अलीम ने किए, कोर्ट ने इसे सिर्फ एक व्यक्तिगत अपराध नहीं माना, बल्कि इसके पीछे छिपी बड़ी साजिश और योजनाबद्ध तरीके की ओर इशारा किया। न्यायालय ने लव जिहाद को ‘डेमोग्राफिक वार’ का हिस्सा बताया, जिसके तहत एक धर्म विशेष के अराजक तत्व हिंदू महिलाओं को निशाना बना रहे हैं। न्यायाधीश ने कहा कि लव जिहाद का मुख्य उद्देश्य भारत में अपनी सत्ता स्थापित करना है। उन्होंने इसे एक अंतरराष्ट्रीय साजिश करार दिया और इस बात पर जोर दिया कि इस प्रकार के मजहबीकरण के पीछे भारी विदेशी फंडिंग हो सकती है।
कोर्ट ने जबरन मजहबीकरण की निंदा करते हुए सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया। न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को झूठ, छल, लालच या बल प्रयोग से धर्मांतरण करने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा होता है, तो यह देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि यदि समय रहते इन मामलों पर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो देश को भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। ऐसे प्रकरण राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता के लिए भी अत्यधिक संवेदनशील हैं। यानी कि आज न्यायालय भी यह स्वीकार कर रहा है कि देश में योजनाबद्ध तरीके से गैर मुसलमानों को लवजिहाद के चंगुल में फंसाया जा रहा है, जोकि इस देश के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं है। यहीं से साफ समझ आ जाती है कि माँ दुर्गा का मुस्लिम प्रतिरूप बनाने और गरबा में शामिल होने की मुसलानी जिद आखिर क्या है। अब सोचना गैर मुस्लिम समाज को ही होगा कि आखिर कैसे अपने समाज की वे रक्षा कर सकते हैं, क्योंकि इस्लामिक आंधी हर तरफ सिर्फ मुसलमानों को देखना चाहती है, इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती है!