महाकाल भी नही बच पाए “सिस्टम की लूट” से…

 

28 मई 2023 का दिन देश के लिए तो ऐतिहासिक बनाया गया लेकिन एमपी के मशहूर महाकाल मंदिर के लिए यह दिन खुद ब खुद ऐतिहासिक बन गया।दुनियां भर में मशहूर उज्जैन स्थित भगवान शिव के मंदिर परिसर में तूफान ने अचानक राज्य सरकार के “सिस्टम” का असली चेहरा सामने ला दिया।साथ ही यह भी साफ हो गया कि कथित रामभक्तों ने भगवान महाकाल को भी नही छोड़ा।महाकाल खुद भ्रष्टाचार के शिकार बन गए।
भ्रष्टाचार भी उस परियोजना में हुआ है जिसके पहले चरण का उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।यह उद्घाटन मात्र साढ़े सात महीने पहले ही हुआ था।
यह तो सब जानते हैं कि अपने देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इनमें दो मध्यप्रदेश में हैं।इनमें सबसे ज्यादा महत्व उज्जैन के महाकाल का है।दूसरा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर में है।
उज्जैन में महाकाल मंदिर कब बना ,इसके बारे में अलग अलग मत हैं।माना जाता है कि ये मंदिर सदियों पुराना है।कहा जाता है कि महाकाल ज्योतिर्लिंग का निर्माण खुद प्रजापिता ब्रह्मा ने कराया था।इस मंदिर से न जाने कितनी कथाएं जुड़ी हुई हैं।यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव खुद प्रकट हुए थे।बताया जाता है कि छठी शताब्दी में उज्जैन के तत्कालीन राजा ने वर्तमान मंदिर को बनवाया था।
बहुत सारी कहानियां हैं।लेकिन सच यह है कि आजकल महाकाल मंदिर की मान्यता पूरी दुनियां में बढ़ी है। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।सावन में महीने में तो करोड़ों लोग उज्जैन पहुंचते हैं।
भक्तों की भीड़ के आगे छोटे पड़ते मंदिर प्रांगण के पिछले सालों में कई बार बदलाव किए गए।इसी नजरिए से वर्तमान बीजेपी सरकार ने मंदिर को भव्य और विस्तृत आकार देने के लिए एक परियोजना तैयार की।इसे नाम दिया गया – महाकाल का महालोक।
सरकारी जानकारी के मुताबिक जब इस परियोजना पर अंतिम फैसला हुआ था तब इसकी अनुमानित लागत करीब 700 करोड़ थी।बाद में इसे बढ़ाकर 850 करोड़ किया गया।अब यह परियोजना 1150 करोड़ से ऊपर निकल चुकी है।अभी इस पर काम चल रहा है।
मंदिर परिसर विस्तार के पहले चरण का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्तूबर 2022 को किया था।पहले चरण पर करीब 351 करोड़ खर्च हुए थे।पहले चरण के उद्घाटन के समय खुद मोदी ने महाकाल के इस महालोक की जमकर तारीफ की थी।
उद्घाटन के तत्काल बाद इस परियोजना में निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठे थे।उस समय राज्य के लोकायुक्त ने इस परियोजना से जुड़े करीब डेढ़ दर्जन अफसरों को नोटिस भी दिए थे। इनमें तीन आईएएस अफसर भी शामिल थे।नोटिस के बाद क्या हुआ!यह या तो लोकायुक्त जानते होंगे या फिर खुद महाकाल!
लेकिन 28 मई 2023 को जब सारा देश नए संसद परिसर का उद्घाटन देख रहा था तब महाकाल के महालोक में मौजूद भक्तों ने एक अलग नजारा देखा।जिस महालोक को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री लगातार अपनी पीठ थपथपा रहे थे और दुनियां भर में शेखी बघार रहे थे,वह जरा सी आंधी में ताश के पत्तों सा बिखर गया।
महालोक में सप्तऋषियों की जो मूर्तियां लगाई गई थीं वे उखड़ गई।कई मूर्तियां खंडित हो गईं।मूर्तियों के खंडित होने पर यह पता चला कि यह मूर्तियां फाइबर ग्लास की बनी हुई थीं।अगर आंधी उन्हें नहीं गिराती तो कुछ दिन में तेज गर्मी उनकी शक्लें बदल देती।
यह बात उसी समय उठी थी जब पीएम ने इसका उद्घाटन किया था।बात भोपाल तक पहुंची तो लोकायुक्त ने जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस देकर जांच शुरू की।बाद में क्या हुआ यह पता नही चला। हां जिन अफसरों को नोटिस दिए गए थे उन्हें सरकार ने और अच्छे पदों पर बैठा दिया।
अभी दूसरे चरण का काम चल रहा है।इसे जून 23 तक पूरा करने का लक्ष्य है।इस चरण पर 778 करोड़ से भी ज्यादा खर्च होने का अनुमान है।
आज आंधी ने जो किया उसको लेकर बातें तो सात महीने से हो रही थीं।जैसा कि राज्य में ट्रेंड चल रहा है, महाकाल मंदिर के विस्तार की योजना से सबने अपना अपना “विस्तार” किया है।कहा तो यह भी जाता है कर्नाटक की तरह 40 परसेंट का खेल यहां भी खुलकर खेला गया।इसी वजह से 700 करोड़ की परियोजना 1150 करोड़ से भी ऊपर निकल गई।संभावना है कि यह राशि अभी और बढेगी!क्योंकि इस साल विधानसभा चुनाव भी तो होना है।फिर परियोजना तो परियोजना है!वह चाहे सिंचाई के लिए बन रहा बांध हो या फिर महाकाल का महालोक!पानी तो सबसे बहाया जाना है।
एक बात और!बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद उज्जैन में दो सिंहस्थ (महाकुंभ) का आयोजन कराया है।2004 और 2016 के महाकुंभ में राज्य सरकार ने हजारों करोड़ व्यवस्थाओं पर खर्च किए थे।लेकिन इनमें ज्यादातर व्यवस्थाएं स्थाई साबित नही हुई हैं।अभी भी क्षिप्रा नदी का पानी साफ नही है।बहुत बड़ा मुद्दा है।ग्रंथ लिखे जा सकते हैं!सार यह है कि “सिस्टम” ने भगवान को भी नही बक्शा!
आपको एक बात और बता दूं!महाकाल के महालोक से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने राज्य में कई महालोक बनवाने का ऐलान कर दिया है।
मुख्यमंत्री के मुताबिक सरकार दतिया में देवी महालोक,छिंदवाड़ा के जामसांवली में हनुमान महालोक ,इंदौर के पास जानापाव में भगवान परशुराम महालोक,सलकनपुर में देवी महालोक बनवाएगी!
इनके अलावा ओंकारेश्वर में 2100 करोड़ की लागत से आदि शंकराचार्य का स्मारक और सागर में 100 करोड़ खर्च करके संत रविदास मंदिर भी बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री कर चुके हैं।
यही नहीं अभी कुछ दिन पहले उन्होंने महाराणा प्रताप की जयंती पर महाराणा का महालोक बनवाने का भी ऐलान किया है।
इन लोकों के बारे में सुनकर आप सोच सकते हैं कि आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में सिर्फ देवी देवताओं के लोक चमकते नजर आएंगे।
हां एक बात और !सलकन पुर देवी मंदिर मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र बुधनी में आता है।कुछ महीने पहले देवी के मंदिर से चढ़ावे की रकम चोरी हो गई थी।चोर रुपए और गहनों से भरी कई बोरियां चुरा ले गए थे।इस मंदिर का नियंत्रण सरकार के अधीन है।पुलिस ने कथित चोर पकड़ कर मामले को खत्म कर दिया था।लेकिन मंदिर समिति की ओर से आजतक यह नही बताया गया है कि कितना माल चोरी गया था और कितना वापस मिला।पूछने की जुर्रत कोई इसलिए नही कर सकता क्योंकि मंदिर समिति पर मुख्यमंत्री का करीबी काबिज है।भक्तों का चढ़ावा जाए तो जाए पर सवाल नही होगा।अब जब सरकार महालोक बनाएगी तब क्या होगा!
अभी कुछ दिन पहले भोपाल के पास स्थित कंकाली मंदिर पर भी इसी तरह की घटना हुई थी।वहां भी प्रशासन मंदिर की व्यवस्था देखता है।
पहले महालोक के निर्माण की असलियत खुलने के बाद यह कल्पना की जा सकती है कि अन्य देवी देवताओं के महालोकों का क्या हाल होगा।क्योंकि जहां सबसे ज्यादा भक्त आते हैं,और जिसका उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री ने किया था,उसका यह हाल है तो दूसरों का क्या होगा!
हां भगवान न करे कि यह “ट्रेंड” उज्जैन से अयोध्या की ओर जाए!अगर उज्जैन की हवा अयोध्या पहुंच गई तो राम मंदिर के निर्माण की क्या गति होगी..यह राम ही जाने!
फिलहाल..महाकाल का महालोक चर्चा में है!कहा जा रहा है कि जिस तरह साल भीतर कारम बांध फूटा था ठीक उसी तरह साढ़े सात महीने में सप्त ऋषियों की मूर्तियां उखड़ गईं।काम तो सरकारी अफसरों ने ही कराया था।चाहे वे सिंचाई विभाग के हों या धर्मस्व विभाग के।हैं तो सरकार के ही अफसर!उन सबको तो एक ही देहरी पर मत्था टेकना होता है।
कुल मिलाकर यह तय है कि अपना एमपी गज्जब है।यहां का “सिस्टम” भगवान को भी नही बख्शता है!आदमी क्या चीज है!

साभार: अरुण दीक्षित (वरिष्ठ पत्रकार)

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