मध्य प्रदेश में इन भाजपा विधायकों की हालत कमजोर

 मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव भले करीब सात महीने दूर है, लेकिन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भाजपा की तैयारियों ने खासी गति पकड़ ली है।

पार्टी में आंतरिक सर्वे के साथ टिकट बंटवारे को लेकर मानक तैयार किए जा रहे हैं। सर्वे में 40 विधायक फिसड्डी निकले हैं, जिनके टिकट कटेंगे और दूसरे चेहरों को मौका मिलना तय माना जा रहा है। 87 सीटों पर भाजपा विधायकों की स्थिति बेहतर पाई गई है।

दरअसल, वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में उतरी भाजपा के पास 165 विधायक थे, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद आंकड़ा घटकर 109 रह गया था। हारने वालों में 13 कैबिनेट मंत्रियों के अलावा बड़ी संख्या में विधायक थे। भाजपा सत्ता से बाहर हो गई।

हालांकि, करीब डेढ़ साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों सहित भाजपा में शामिल होने से भाजपा की सत्ता में वापसी हुई। फिर, उपचुनावों के बाद भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर 127 हो गई। उधर, 2018 में कांग्रेस के 114 विधायक जीते थे। इनमें से कुल 26 विधायकों के इस्तीफा देकर पार्टी छोड़ने के कारण अब संख्या 96 ही बची है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में बिधानसभा की कुल 230 सीटें हैं।

प्रदेश की सियासी तासीर दो दलीय रही है। भाजपा और कांग्रेस की चुनौती अपनी सीट बचाने के साथ प्रतिद्वंद्वी की सीट को सीमित करना रहा है। ऐसे में कमजोर प्रदर्शन वाले विधायक को फिर से मौका देने का नुकसान पार्टी की हार के साथ प्रतिद्वंद्वी की जीत के रूप में सामने आता है।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने अत्यंत गोपनीय तरीके से सर्वे कराया और जिन 40 विधायकों का कमजोर प्रदर्शन पाया गया है, वहां बदलाव को लेकर कवायद शुरू की जा चुकी है। जिन 87 सीटों पर स्थिति मजबूत दिख रही है, उसे विधानसभा चुनाव तक निरंतर मजबूत बनाए रखने की कवायद भी की जा रही है।

बता दें कि पिछले चुनाव में भाजपा ने 55 विधायकों के टिकट काटे थे। इस चुनाव में भाजपा मौजूदा विधायकों में से 50 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर नए चेहरे उतार सकती है। नए और युवा चेहरों को निकाय चुनाव में अवसर देकर भाजपा ने संतोषजनक परिणाम प्राप्त किए हैं। इसे विधानसभा चुनाव में भी निरंतर बनाए रखने के फायदे और नुकसान पर भी चिंतन किया जा रहा है। भाजपा विधानसभा चुनाव में भी उम्र सीमा और प्रदर्शन को आधार बनाकर ही टिकट देगी।

 

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