*भोपाल।*
मध्य प्रदेश में भाजपा गुजरात की तरह रिकार्ड जीत दर्ज करने का दावा कर रही है, लेकिन सत्ता, संगठन और संघ के बाद इंटेलीजेंस की सर्वे रिपोर्ट ने पार्टी की नींद उड़ा रखी है। इस रिपोर्ट के अनुसार मप्र में आधे से ज्यादा मंत्री-विधायकों की स्थिति खराब है। ऐसे में सत्ता से ज्यादा विधायकों के टिकट कटने की संभावना है। इस स्थिति में भाजपा में बड़ी बगावत होगी। इसको देखते हुए संघ ने मोर्चा संभाल लिया है और सत्ता और संगठन को चेतावनी दी है कि जितने टिकट कटेंगे, उतने बागी होंगे। इसलिए खराब प्रदर्शन वाली सीटों पर नए चेहरों की तलाश तेज की जाए। इस तलाश में भाजपा के नेताओं के बेटे-बेटियों की लॉटरी लग सकती है।
गौरतलब है कि तमाम सर्वे रिपोर्ट के बाद सत्ता और संगठन मप्र में पहले से ही सक्रिय हैं। अब संघ ने भी पूरी तरह मोर्चा संभाल लिया है। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपना फोकस मप्र पर कर रखा है। गौरतलब है कि अभी हाल ही में संघ ने अपने स्वयंसेवकों से पिछले 2 माह के अंदर जो सर्वे करवाया है उसके अनुसार पार्टी मप्र में 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रही है। स्वयंसेवकों ने सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि शिवराज सरकार द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए जो मुफ्त की रेवडिय़ां बांटी जा रही है उसका भी असर नहीं दिख रहा है।
*नेताओं के शहजादे होने लगे सक्रिय।*
नए चेहरों को टिकट देने की खबर के बाद भाजपा में वरिष्ठ नेताओं के शहजादों ने सक्रियता बढ़ा दी है। इनमें ग्वालियर-चंबल की राजनीति के दिग्गज और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह भी राजनीति में पूरी तरह से एक्टिव हैं। इनके अलावा पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन, प्रदेश सरकार में कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यमन सिंधिया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान भी राजनीति में पूरी तरह से एक्टिव हो चुके हैं।
*बड़े पैमाने पर कटेंगे टिकट।*
संघ सूत्रों के अनुसार अभी तक जितने भी सर्वे कराए गए हैं भाजपा सीटें 100 के अंदर ही आते दिख रही हैं, इसलिए इस बार बहुत बड़े पैमाने पर विधायकों की टिकट काटी जाएंगी। भाजपा के एक पदाधिकारी का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में ही 50 विधायकों की टिकट कटनी थी, लेकिन एक बड़े नेता अड़ गए। उनकी जिद की वजह से किसी की टिकट नहीं काट पाए। इस बार संगठन किसी के दवाब में नहीं आएगा, क्योंकि पिछला चुनाव हार गए थे। इसीलिए मल्टिपल लेवल पर सर्वे करवाए जा रहे हैं। टिकट देने का एक ही पैमाना होगा और वो है जीत। फिर इससे फर्क नहीं पड़ता कि कैंडिडेट किस गुट से है।
*जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी।*
अभी तक के सारे सर्वे में सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी सामने आई है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश सरकार के मंत्री और अफसरों की जनता से दूरी। पहले किसी न किसी बहाने मंत्री और अधिकारी गांवों की चौपाल तक पहुंच जाते थे। लेकिन पिछले 3 साल से जनता उनकी बांट जोह रही है। भाजपा के एक पदाधिकारी का कहना है की जनता मुख्यमंत्री के एक ही चेहरे से उब गई है।
शिवराज सिंह चौहान 23 मार्च 2020 को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। 30 नवंबर 2005 से 17 दिसंबर 2018 तक लगातार 13 साल 17 दिन तक वे मुख्यमंत्री रहे। फिर करीब डेढ़ साल कांग्रेस की सरकार रही और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। 23 मार्च 2020 से एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवराज के पास आ गई। उन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए करीब 16 साल हो चुके हैं। अब तक प्रदेश में कोई भी इतने समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहा है।
*40 फीसदी नए चेहरों पर दांव।*
प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने को आतुर भाजपा कई कड़े और महत्वपूर्ण फैसले लेने वाली है। प्रदेश में भाजपा के लिए जमीन पर काम कर रहे पार्टी सूत्रों का दावा है कि सबसे पहले भाजपा करीब 90 से 100 नए विधानसभा उम्मीदवारों पर दांव लगाएगी। करीब 40 फीसदी नए उम्मीदवारों को भाजपा विधानसभा चुनाव में मौका देगी। 2018 विधानसभा चुनाव में हारी हुई 100 सीटों में से ज्यादातर सीटों पर नए प्रत्याशियों को पार्टी टिकट देगी।
जबकि जीती हुई 130 सीटों में से भी 10-15 फीसदी से ज्यादा सीटों पर मौजूदा मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। इसमें खासतौर पर उन मंत्रियों और विधायकों का टिकट काटा जाएगा जो या तो 3-4 बार से लगातार जीत रहे हैं और जिनकी उम्र ज्यादा हो गई है। साथ ही उन नेताओं का भी टिकट कटेगा, जिनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी ज्यादा है।
भागवत समेत पूरे संघ ने बढ़ाई सक्रियता
केंद्र व भाजपा में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए 2023 और 2024 चुनौतीपूर्ण हैं। हालांकि, भाजपा पूरी तरह आशान्वित है कि 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनाव में वह फिर अपना परचम फहराएगी, लेकिन मप्र के चुनाव को लेकर कराए गए एक सर्वे को लेकर मातृसंस्था संघ और भाजपा दोनों कुछ चिंतित नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अचानक एमपी में सक्रिय हो गए हैं।
भागवत इसी साल होने वाले मप्र विस चुनाव से पहले अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। इसी महीने वे प्रदेश के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में आ चुके हैं। अप्रैल में वे भोपाल, बुरहानपुर और जबलपुर का दौरा कर चुके हैं। बुरहानपुर में उन्होंने निमाड़ के मिजाज को समझने की कोशिश की है। जबलपुर से महाकौशल को समझ रहे हैं। दरअसल, हाल के दिनों में कथित रूप से भाजपा के अंदरखाने से जो रिपोर्ट आई है, उससे पार्टी घबराई हुई है। सियासी जानकारों का कहना है कि यही वजह है कि मप्र में संघ प्रमुख सक्रिय हो गए हैं।