मध्यप्रदेश की सरकार किसानों की सरकार है, फिर आंदोलन क्यों?

 

आंदोलित किसान
मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश की सरकार किसानों की सरकार है। किसानों को फसल का उचित दाम दिलाना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार कहती है कहीं भी खाद की किल्लत नहीं है। अधिकारियों को निर्देश हैं के स्वयं मौके पर जाकर खाद वितरण की व्यवस्था देखें। लेकिन इसके उलट प्रदेश में खाद के लिए कतारें लग रही हैं। दुकानें लुट रही हैं। पुलिस लाठियां भांज रही है। और भोपाल में भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ प्रदर्शन कर रहा है।
प्रदेश में खाद की कोई कमी नहीं है…कुछ लोग अफवाह और भम्र का माहौल बनाकर अराजकता फैलाना चाहते हैं। सरकार के इस दावे के उलट राजगढ़ जिले के जीरापुर में एक बोरी खाद के लिए 12-12 घंटे किसान भूखे-प्यासे लाइन में खड़े नजर आए। इनमें महिलाएं और बड़े बुजुर्ग तो थे ही, बच्चे भी स्कूल छोडक़र लाइन में खड़े हो गए थे। और बाद में हुआ ये कि बमुश्किल 1100 किसानों को दो-दो बोरी खाद देकर सोसायटी में ताला लगा दिया गया। दूसरी घटना, शाजापुर जिले के पोलायकलां में कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने सेवा सहकारी संस्था के सामने हंगामा कर दिया। इसी दौरान मौके से जिम्मेदार अधिकारियों को फोन लगाए और खाद की कमी को दूर करने को कहा। विधायक ने चेतावनी देते हुए कहा कि 3 दिन में समस्या का समाधान नहीं हुआ तो कलेक्टर कार्यालय के सामने धरना दूंगा।
अब बात किसान आंदोलन की। कुछ ही दिन पहले किसान मोर्चा ने राजधानी के समीप बैठक बुलाई और उसमें किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी। इस बीच संघ के हिस्से भारतीय किसान संघ ने भोपाल में पहुंचकर प्रदर्शन कर दिया। मुद्दे वही थे, जो सभी किसानों के हैं, लेकिन दोनों आंदोलन में एक अंतर नजर आया। मोर्चा के आंदोलनकारियों की गाडिय़ां शहर के बाहर ही रोक ली जाया करती हैं। यहां प्रदर्शन के दौरान पुलिस से टकराव भी होता है और लाठियां भी भांजी जाती हैं। कल जो प्रदर्शन हुआ, उसमें ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों के बीच पहुंच गए। उन्होंने मंच से कई घोषणाएं भी कर दीं, लेकिन किसान नेता फिलहाल पीछे हटने को तैयार नहीं दिखे।
असल में विधानसभा का 7 दिन का विशेष सत्र बुलाए जाने समेत कुल 18 सूत्रीय मांगों को लेकर भारतीय किसान संघ ने मंगलवार को राजधानी में बड़ा प्रदर्शन किया था। तीन घंटे तक किसान नेताओं ने सरकार के खिलाफ बहुत कुछ बोला। किसान कहते हैं पिछले एक साल से किसान कई मुद्दों पर लड़ रहे हैं। सबसे खास लहसुन और प्याज के रेट को लेकर। धार, उज्जैन, शाजापुर, आगर समेत कई जिलों में लहसुन के रेट इतने गिर गए कि लागत भी नहीं निकल पाई। 5 रुपए किलो से भी कम रेट मिले। लोगों को लहसुन सडक़ों पर फेकनी पड़ी। बाजार तक पहुंचाने में जो खर्च हो रहा था, वो भी नहीं निकल रहा था।प्याज को लेकर भी यही हुआ। इस दौर से जैसे-तैसे किसान निकले तो तेज बारिश से फसलें बर्बाद हो गईं।
इन दोनों समस्याओं से जुझने के बाद किसानों ने गेहूं-चने की बुआई तो कर ली, लेकिन अब उनके सामने खाद का बड़ा संकट खड़ा हो चुका है। राजगढ़, रतलाम और शाजापुर में सुबह से शाम तक लाइन में लगने के बावजूद किसानों को दो बोरी खाद नसीब नहीं हो रही है। मुरैना, ङ्क्षभंड में खाद को लेकर कई घटनाएं हो चुकी हैं। कहीं दुकान लुटने का दावा किया गया तो कई जगह पुलिस को पहुंचकर व्यवस्था संभालनी पड़ी, और लाठियां भी खूब चलीं। खाद की लाइन में एक किसान की मौत भी हो चुकी है।
भले ही भारतीय किसान संघ के प्रति सरकार का थोड़ा साफ्ट कार्नर हो, लेकिन उनकी मांगें तो किसानों के हक में ही हैं। हां, यह बात जरूर है कि किसान मोर्चा के आंदोलन के पहले जिस तरह से प्रदर्शन किया गया, भोपाल में उनका एक तरह से स्वागत भी हुआ, उससे कहीं न कहीं सवाल तो उठते ही हैं। किसान मोर्चा भी आंदोलन की तैयारी कर रहा है। मोर्चा के लोग जानते हैं कि इस आंदोलन में भी सरकार की घोषणा ही हुई है, ये पूरी होने वाली नहीं हैं। असल में किसानों के मुद्दों को लेकर संगठन अलग-अलग राग अलाप रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो किसान बहुत कम आंदोलित होता है। कुछ ही इलाकों में रोष दिखाई देता है। फिर भी, यह सच है कि सरकार के तमाम दावों के बाद भी किसान परेशान है। न तो समय पर बीज मिलता है और न खाद की पर्याप्त आपूर्ति हो पाती है। यह लगातार हो रहा है, मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद। और उपज का खर्च निकालने, लाभ की पैदावार वाले मुद्दे तो अनसुलझे ही रहने वाले हैं। चूंकि चुनाव आ रहा है, सो यह असंतोष बढ़ेगा। सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी।
-संजय सक्सेना

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