भारत के प्रधानमंत्री के बहाने देश को बनते और बदलते देखना


( ब्रजेश राजपूत )
आज़ादी के पचहत्तर साल पूरे होने पर “ भारत के प्रधानमंत्री” को पढ़ना एक तरीक़े से आज़ादी से लेकर आज तक के उस सफ़र को तयकरने जैसा है, जो ऊबड़ और ऊँचा नीचा तो रहा मगर इस पूरे सफ़र में कभी सफ़र के सारथी पर देश की जनता ने भरोसा नही खोया। देशको ग़ुलामी के बियाबान से आज़ादी की रोशनी के सहारे इन जननायकों और देश के प्रथम सेवकों को उनकी ताक़त और कमज़ोरियों केसाथ बेहतर विश्लेषण के साथ याद करने का काम लेखक रशीद किदवई ने रोचक तरीक़े से किया है। आमतौर पर ऐसी किताबें नीरसऔर बोरियत से भरी रहती हैं मगर रशीद ने अपने लंबी राजनीतिक पत्रकारिता के पूरे अनुभव को अनेक अनसुने क़िस्सों के साथ इसकिताब को ऊँचाई दी है।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक की खूबियों और कमियों से सजी है ये किताब। ये रशीद ही बताते हैंकी नेहरू और गांधी के रिश्तों में कितनी तल्ख़ी आ गई थी और नेहरू ने जब पटेल को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया तो कितनीविनम्रतापूर्वक पत्र लिखकर आग्रह किया और उसका कितना आत्मीय जवाब सरदार पटेल ने पलट कर दिया।
इसी किताब से आप जान पाएँगे कि देश में दो बार कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे गुलज़ारी लाल नंदा क्यों भूला दिये गये और पद से हटने केबाद वो कैसे कनाट प्लेस से सरकारी बस पकड़ कर अपनी बेटी के घर जाते थे। इसी किताब में आपको कई क़िस्से मिलेंगे जिनसे आपज़ानेगे कि नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनाये गये लाल बहादुर शास्त्री असल में कितने बहादुर थे। जो अमेरिका सरकार के प्रतिबंधों के बादभी पाकिस्तान से डटकर लड़े और जीते। जय जवान जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री की रूस के ताशकंद में रहस्यमयी मौत केसारे पहलू भी रशीद ने किताबों से खंगाले हैं। शास्त्री पहले केंद्रीय मंत्री थे जिन्होंने रेल दुर्घटना में प्रधानमंत्री नेहरू के मना करने पर भीमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया।
शास्त्री के बाद प्रधान मंत्री बनीं इंदिरा गांधी के चार कार्यकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं का रुचिकर ब्योरा किताब में है। कैसे कमजोरइंदिरा मजबूत प्रधानमंत्री बनीं। कैसे उन्होंने पार्टी में अपने विरोधियों को किनारे किया और कैसे बिना शोर मचाएँ पाकिस्तान के दो टुकड़ेकर बांग्लादेश बना दिया। इंदिरा से जुड़े कई छोटे छोटे अनसुने क़िस्से इस किताब में हैं। अलग पार्टी बनाने के बाद चुनाव आयोग सेअपनी पार्टी को मिलने वाले चुनाव चिन्ह को लेकर बूटा सिंह की ग़लतफ़हमी का क़िस्सा हँसाता है तो अपनी मौत से पहले जो उन्होंनेराहुल से कहा था वो आँखे भिगोता है।
मोरार जी देसाई, चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एचड़ी देवेगौड़ा, आइ के गुजराल, राजीव गांधी, से लेकर पी वी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंग और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के कार्यकाल को रोचक तथ्यों के साथ इस किताबमें लिखा गया है। राजीव गांधी की शानदार चुनावी जीत, राव की कार्यकुशलता, मनमोहन सिंह की ईमानदारी और अटल बिहारीवाजपेयी की बेजोड़ शख़्सियत के कई क़िस्से भारत के प्रधान मंत्री में हैं।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल से विवादित फ़ैसलों को लेखक ने ईमानदारी से सामने रखा है तो मोदी का जनता से जुड़ावक्यों है इसको भी बेहतर तरीक़े से सामने रखा है।
कुल मिलाकर ये ऐसी किताब है जिसे पढ़कर आप जानेंगे कि देश पिछले कुछ सालों में सिर्फ़ कुछ नेताओं की बदौलत ही नहीं बना हैबल्कि आज देश जहाँ भी पहुँचा है उसके पीछे अलग अलग पार्टी के अनेक कुशल, देशभक्त और विद्वान नेताओं की मेहनत का हाथ औरश्रम है। साथ ही प्रधानमंत्री का पद किस को मिलेगा ये पहले से तय नहीं होता कई बार ज्योति बसु, सोनिया गांधी जैसे कुछ नेता इस पदके क़रीब आकार भी अपनी मर्ज़ी से दूर हो जाते है। कुल मिलाकर एक बेहतर और यादगार किताब रशीद किदवई की।

किताब का नाम-भारत के प्रधानमंत्री,

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