भगवान्‌का भोक्ता बनना क्या है?

 

भगवान्‌का भोक्ता बनना क्या है?
भगवान्‌ने कहा है कि महात्माओं की दृष्टिमें सब कुछ वासुदेव ही है (सातवें अध्यायका उन्‍नीसवाँ श्लोक) और मेरी दृष्टिमें भी सत्-असत्‌ सब कुछ मैं ही हूँ (नवें अध्यायका उन्‍नीसवाँ श्लोक) । जब सब कुछ मैं ही हूँ, तो कोई किसी देवताकी पुष्टिके लिये यज्ञ करता है, उस यज्ञके द्वारा देवतारूप में मेरी ही पुष्टि होती है। कोई किसीको दान देता है, तो दान लेनेवालेके रूपमें मेरा ही अभाव दूर होता है, उससे मेरी ही सहायता होती है। कोई तप करता है, तो उस तपसे तपस्वीके रूपमें मेरेको ही सुख-शान्ति मिलती है। कोई किसीको भोजन कराता है, तो उस भोजनसे प्राणोंके रूपमें मेरी ही तृप्ति होती है। कोई शौच-स्नान करता है, तो उससे उस मनुष्यके रूपमें मेरेको ही प्रसन्‍नता होती है। कोई पेड़-पौधों को खाद देता है, उनको जलसे सींचता है तो वह खाद और जल पेड़-पौधोंके रूपमें मेरेको ही मिलता है और उनसे मेरी ही पुष्टि होती है। कोई किसी दीन-दु:खी, अपाहिज की तन-मन-धनसे सेवा करता है तो वह मेरी ही सेवा होती है। कोई वैद्य-डॉक्टर किसी रोगी का इलाज करता है, तो वह इलाज मेरा ही होता है। कोई कुत्तों को रोटी डालता है; कबूतरों को दाना डालता है; गायोंकी सेवा करता है; भूखोंको अन्न देता है; प्यासोंको जल पिलाता है; तो उन सबके रूपमें मेरी ही सेवा होती है। उन सब वस्तुओंको मैं ही ग्रहण करता हूं*। जैसे कोई किसी मनुष्यकी सेवा करे, उसके किसी अंग की सेवा करे,उसके कुटुम्ब की सेवा करे, तो वह सब सेवा उस मनुष्यकी ही होती है। ऐसे ही मनुष्य जहाँ-कहीं सेवा करे, जिस-किसीकी सहायता करे, वह सेवा और सहायता मेरेको ही मिलती है। कारण कि मेरे बिना अन्य कोई है ही नहीं। मैं ही अनेक रूपोंमें प्रकट हुआ हूँ–.*’बहु स्यां प्रजायेय’* (तैत्तिरीय० २। ६)।तात्पर्य यह हुआ कि अनेक रूपों में सब कुछ ग्रहण करना ही भगवान्‌का भोक्ता बनना है।

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* एक कथा सुनी है कि एक बार श्रीनामदेवजी महाराज तीर्थयात्रा में गये। यात्रामें कहींपर एक वृक्ष के नीचे उन्होंने रोटियाँ बनायीं और सामानमेंसे घी लेनेके लिये पीछे घूमे तो इतनेमें ही एक कुत्ता आकर मुँहमें रोटी लेकर भागा। नामदेवजी महाराजने घी लेकर देखा कि कुत्ता रोटी लेकर भाग रहा है तो वे भी हाथमें घी का पात्र लिये उसके पीछे भागते हुए कहने लगे–’हे नाथ! आपको ही तो भोग लगाना है, फिर रूखी रोटी लेकर क्यों भाग रहे हो ? रोटीपर थोड़ा घी तो लगाने दीजिये।’ नामदेवजीके ऐसा कहते ही कुत्ते में से भगवान्‌ प्रकट हो गये। कुत्ते में भगवानके सिवाय और था ही कौन ? नामदेवजी जान गये तो वे प्रकट हो गये। इस प्रकार प्राणिमात्र में तत्त्व से भगवान्‌ ही हैं। इसलिये जिस किसीको जो कुछ दिया जाता है, वह भगवान्‌ को ही मिलता है।

*  साभार, परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज*
(श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी, अध्याय–९, श्लोक –२४ की व्याख्या , पृष्ठ संख्या–६५९–६६०)
गीताप्रेस, गोरखपुर

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