_*भगवद्गीता के अलावा श्रीरामचरितमानस में तीन जगह मोह, विषाद को दूर करने के लिए गीता कही गई है।*_
लक्ष्मण जी के ज्ञान, गंभीरता और गुरुता की चर्चा कम देखने सुनने को मिलती है। एक प्रसंग उनका निषादराज के साथ आता जो अद्भुत सुख देने वाला है, इस प्रसंग को लक्ष्मण गीता के नाम से जाना जाता है।
*गीता कब कही जाती है? जब मन मोह, संशय, दुविधा अथवा विषाद ग्रस्त तब गीता कही जाती हैं।* भगवान कृष्ण के श्रीमुख से कही गई भगवद्गीता के अलावा श्रीरामचरितमानस में तीन जगह मोह, विषाद को दूर करने के लिए गीता कही गई है। लक्ष्मण गीता, विभीषण गीता और गरुण गीता। पहला संवाद लक्ष्मण और निषादराज गुह के मध्य होता है।
आज लक्ष्मण गीता पे ही लिखा जा रहा है समय मिलते बाकी गीता पे भी लिखा जाएगा।
लक्ष्मण अपने क्रोधी, योद्धा और उत्साही स्वरूप से बिल्कुल भिन्न ज्ञान, वैराग्य और भक्ति रस से सराबोर मीठे शब्दों में धैर्यपूर्वक निषादराज को समझाते हैं। भगवान राम को भूमि पर लेटा देख निषादराज को अत्यंत विषाद होता है, तीनों लोकों के मालिक इस अवस्था में हैं, उसे संशय होता है साथ ही वह कैकेयी समेत अन्य लोगों को इसके लिए जिम्मेदार बताता है। लक्ष्मण जो कि एक शीशम के पेड़ के नीचे बैठे होते हैं, गुह की दुविधा दूर करते हुए कहते हैं,
*काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।*
*निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।*
मिलना, बिछड़ना, अच्छा, खराब, भोग, मित्र, शत्रु, ये सभी भ्रम जाल हैं। जन्म-मृत्यु, सम्पत्ति-विपत्ति, कर्म और काल समेत यह संसार स्थाई नहीं हैं। धरती, घर, धन, नगर, परिवार, स्वर्ग और नरक आदि जहाँ तक व्यवहार हैं, जो देखने, सुनने और मन के अंदर विचारने में आते हैं, इन सबके मूल में मोह ही है।
जैसे सपने में कोई धनी हो जाए या निर्धन हो जाए, स्वर्ग का स्वामी इन्द्र हो जाए, तो जागने पर लाभ या हानि कुछ भी नहीं है, वैसे ही इस दृश्य-प्रपंच को हृदय से देखना चाहिए। ऐसा समझ कर क्रोध नहीं करना चाहिए और न किसी को व्यर्थ दोष देना चाहिए। सब लोग मोह रूपी रात्रि में सो रहे हैं और उसमें सपना देख रहे हैं।
*एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी।*
*परमारथी प्रपंच बियोगी॥*
इस जगत रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं, जो परमार्थी हैं और प्रपंच ( मायिक जगत ) से छूटे हुए हैं।
*होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा।*
*तब रघुनाथ चरन अनुरागा॥*
*सखा परम परमारथु एहू।*
*मन क्रम बचन राम पद नेहू।।*
*राम ब्रह्म परमारथ रूपा।*
*अबिगत अलख अनादि अनूपा॥*
*सकल बिकार रहित गतभेदा।*
*कहि नित नेति निरूपहिं बेदा॥*
राम ही परम ब्रह्म हैं, अविगत, विकार-रहित, अलख, अनादि और अनूप हैं।
शेषावतार के वचन सुनकर निषाद का मोह दूर हुआ। यह प्रसंग जितनी बार कहा सुना जाए, मन के विकार और संताप कम होते हैं।