पिछले तीन सालों में खासकर महामारी काल से एक नया ट्रेंड शेयर बाजार में आया है जिसमें नए जमाने की कंपनियां अपना ब्रांड मार्केट में खड़ा करने के बाद महंगे दाम पर आम निवेशकों को शेयर बेचकर इसके प्रमोटर्स निकल जाते हैं और फिर कंपनियां चलती है भगवान भरोसे. जो कंपनियां चल गई वो निवेशकों को कमाई करा देंगी और जो नहीं चल पाई वे निवेशकों का पैसा डुबो देंगी. असल फायदा प्रमोटर्स का होता है जो अपनी कमाई कर नया ब्रांड बनाने में लग जाते हैं. इसी तरह एसएमई एक्सचेंज भी छोटी कंपनियों और छोटे उद्योग को खड़ा करने की बजाय मनी लांड्रिंग में ज्यादा योगदान दे रहा है.
पिछले ३ सालों में करीब ११०० छोटी कंपनियों ने एसएमई एक्सचेंज द्वारा पैसे की उगाही की और मात्र १५० कंपनियों के रेट आते हैं. बाकी कंपनियों की न कोई ट्रेडिंग होती है और न ही इनके वित्तीय स्थिति की कोई जानकारी है. ऐसे में किन निवेशकों ने इसमें पैसा लगाया और कंपनियों ने पैसों का क्या किया कोई जानकारी नहीं है. अब मेनबोर्ड पब्लिक इश्यू की बात करें तो अभी जो इश्यू आनेवाले हैं, उसमें ग्लोबल हेल्थ ( मेंदांता हास्पिटल) के संचालक का २२०० करोड़ रुपए, फ्यूशन मार्केट फाइनेंस का ११०० करोड़ रुपए, बिकाजी फूड ( अमिताभ बच्चन द्वारा प्रचार प्रसार करवाया जा रहा है) का ९०० करोड़ रुपए और फाइव स्टार फाइनेंस का २८०० करोड़ रुपए , यानि करीब ७००० करोड़ रुपए की उगाही आम निवेशकों से होने वाली है. हैरानी की बात ये है कि यह सारी कंपनियां पैसे की उगाही प्रमोटर्स के शेयर्स खरीदने के लिए कर रही है. मतलब साफ है जिन लोगों ने व्यापार को खड़ा किया और इसका मार्केट में स्थान बनाया, वो सिर्फ इसलिए कि अपने शेयर को आम जनता को महंगे में बेचकर निकल जाएं. अपना पैसा निकालकर और कंपनी को शेयर होल्डर के पैसे पर छोड़कर, कंपनी को चलाने के लिए मैनेजर नियुक्त कर छोड़ दिया जाता है.
मतलब साफ है जो कमिटमेंट लेवल प्रमोटर्स का होता है, वो सिर्फ अब सीमित हो गया है ब्रांड खड़ा करने तक और उसके बाद व्यापार भगवान भरोसे. आज एक नया प्रमोटर वर्ग मार्केट में आ गया है जिनका अंबानी, अडानी, बिरला, टाटा, आदि समूह जैसे प्रमोटर जिनका मरते दम तक अपना कमिटमेंट लेवल अपनी कंपनी से जुड़ा होता है, वो ख़तम होता जा रहा है. सिर्फ और सिर्फ लाभ कमाना ही मकसद रह गया है और ऐसे में आम निवेशकों को सतर्कता से निवेश करना चाहिए क्योंकि कौन सी कंपनी कब बंद हो जाए नहीं कहा जा सकता.
मेंदांता हास्पिटल ग्लोबल हेल्थ का नेट प्रॉफिट ३६ करोड़ रुपए २०२१ में था, जो २०२२ में १९६ करोड़ रुपए बताया जा रहा है, जो चौंकाता है. इसी तरह से पिछले कुछ महीनों से बिकाजी फूड द्वारा खूब प्रचार प्रसार किया जा रहा है. पिछले सालों में आए पब्लिक इश्यू जोमेटो, नाइका, रुट मोबाइल, पेटीएम, मेक माइ ट्रिप, कई बैंकिंग, नान बैंकिंग, कन्ज्यूमर्स उत्पाद कंपनियां, आदि की न केवल वित्तीय स्थिति कमजोर है बल्कि शेयर के दाम भी फर्श पर है. लगभग इन सभी कंपनियों में दिखावा मूल्यांकन कर आम निवेशकों से पैसे लिए गए और सभी प्रमोटर्स ने लाभ सहित अपना अपना पैसा निकाल लिया है. अब कंपनी चले न चले, निवेशक की किस्मत. क्या सरकार और नियामक एजेंसियों के लिए जरूरी नहीं कि पैसे उगाही करने के बाद भी इन कंपनियों के प्रबंधन पर नजर रखे? कम से कम इन मापदंडो पर तो ध्यान देना ही होगा: १. शेयर्स मूल्यांकन की सही जांच हो और सरकारी एजेंसियों को इसके लिए नियुक्त किया जावे ताकि जवाबदेही तय हो सकें.
२. जिस तरह पीपीएफ अकाउंट को १५ साल चलाना पड़ता है और कुछ प्रतिशत ही पैसे आप समय से पहले निकाल सकते हैं, उसी तरह कंपनी प्रमोटर्स को भी पैसे उगाही करने के बाद १५ साल तक कंपनी में बने रहना होगा. ३. सभी लिस्टेड कंपनियों का आडिट काम्पट्रोलर एंड आडिटर जनरल द्वारा ही करवाया जायेगा ताकि वित्तीय स्थिति की जानकारी पब्लिक में आ सकें. ४. स्टाक एक्सचेंज पर सेबी द्वारा कंपनी के शेयर ट्रेडिंग की मानिटरिंग जरूरी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं ट्रेडिंग काले धन को सफेद करने या मनी लांड्रिंग में उपयोग तो नहीं हो रहा. शेयर बाजार की विश्वसनीयता और रिटेल निवेशकों की सुरक्षा के लिए जरूरी हो गया है कि हम ब्रांड बनाओ, बेचो और निकल जाओ की प्रवृत्ति पर लगाम कसे और इसके लिए जल्द से जल्द उचित नीति निर्धारण हो ताकि शेयर बाजार का उपयोग निवेश के लिए हो न कि जुए सट्टे के लिए.
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर