बैंकों के हालात – हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और

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सरकार बैंको के हालात अच्छे बताते हुए कहा जा रहा है कि काफी सुधार हुआ है. खराब खातों में काफी कमी आई है.

हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों के अच्छे प्रदर्शन का हवाला देते हुए बताया था कि इनके नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट्स (NPA) में कमी देखी जा रही है जो बैंकों की सेहत सुधरने का संकेत है.

इसके तहत निर्मला सीतारमण ने देश के कई सरकारी बैंकों जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूको बैंक और केनरा बैंक के नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट्स के कम होने का उल्लेख किया था.

लेकिन सच्चाई यह है कि बीते 5 सालों में बैंकों के करीब 10 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किए गए हैं जिसके आधार पर बैंकों के एनपीए को आधा किया जा सका है.

१. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक बैंकों ने 1,32,036 करोड़ रुपये के बैड लोन की रिकवरी की है

२. जबकि करीब 10 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किये गए हैं.

३. बैंक अपने दिए गए लोन में से केवल 13 फीसदी की ही रिकवरी कर पाए हैं.

४. इसके बावजूद भी आज बैंको का एनपीए लगभग ८ लाख करोड़ रुपए का है.

५. इसका मतलब बैंको का असल में २१ लाख करोड़ रुपए का एनपीए था जो कभी भी उजागर नहीं किया गया और एनपीए का स्तर १० लाख करोड़ रुपए से ८ लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आने को सुधार बताया जा रहा है.

६. राइट ऑफ का अर्थ
बैंकों के राइट ऑफ का अर्थ है कि ऐसे कर्जों को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है.

७. पिछले 5 सालों में 10,09,510 करोड़ यानी (123.86 अरब डॉलर) के कर्जों को बट्टे खातों में डाल दिया गया है जिससे बैंकों को अपने नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट्स को घटाने में मदद मिली है.

८. बैंक उन बड़े कर्ज की घोषणा करते हैं जो तीन महीने (90 दिनों) से ज्यादा के लिए एनपीए के रूप में पेमेंट नहीं किए जाते हैं.

९. इंडियन एक्सप्रेस की आरटीआई के जवाब में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि पिछले दस सालों में राइट-ऑफ की वजह से एनपीए में कमी 13,22,309 करोड़ रुपये की रही है.

१०. आरबीआई ने अपने आरटीआई के जवाब में कहा कि डेटा बैंकों द्वारा प्रदान किया गया था.

*साफ है सरकारों ने राष्ट्रीकृत बैंको को जम कर लूटा है और यह क्रम आज भी जारी है, सिर्फ तरीके बदल गए हैं. आम जनता की जमा पूंजी की आज भी हमारे देश में कोई जवाबदेही नहीं है और इस पैसे की होली सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी झोली भरने के लिए खेली है. यदि राइट आफ करने से हालात सुधारे जा सकते तो न कोई व्यापार बंद होता और न ही कोई भागता और न ही कोई आत्महत्या करता.*

*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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