मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड पैकेज घोटाले में आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने दो एफआईआर दर्ज की हैं. ईओडब्ल्यू ने वन और ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के अज्ञात अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज की है. अब ईओडब्ल्यू की टीम पता करेगी कि इन दोनों विभागों को कितना रुपया आवंटित किया गया था और उसमें से इन विभागों ने कितना रुपया किस काम पर खर्च किया.
दरअसल साल 2009 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने बुंदेलखंड विकास पैकेज के लिए करीब 7220 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे. इसमें मध्य प्रदेश में आने वाले बुंदेलखंड के विकास के लिए करीब 3860 करोड़ रुपए मिले थे. इन पैसों को मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पड़ने वाले छह जिलों का विकास होना था. इनमें दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दतिया और सागर जिले शामिल थे.
इस पैकेज में खूब बंदरबांट की गई. बुंदेलखंड विकास पैकेज में हुए घोटाले की शिकायत राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक की गई. पांच टन पत्थर को ढोने के लिए अधिकारियों ने जिन ट्रकों के नंबर दस्तावेज में दर्ज किए थे, ईओडब्ल्यू की जांच में वे स्कूटर और मोटरसाइकिल निकले. ईओडब्ल्यू के अधिकारी प्राथमिक जांच को दर्ज कर अब आरोपी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटा रहे हैं.
दोनों विभागों से तमाम दस्तावेजों को एकत्रित किया जा रहा है. आरोप है कि दोनों विभाग के अफसरों और कर्मचारियों ने प्राइवेट लोगों के साथ मिलकर बुंदेलखंड पैकेज के तहत मिली करोड़ों की राशि में भ्रष्टाचार किया. इन विभागों के जरिए कागजों पर विकास कार्य दिखाए गए. बिना काम के बिलों से करोड़ों का भुगतान जारी किया गया. ये अनियमितता भाजपा शासनकाल के दौरान ही सामने आया था. शिवराज सरकार इस मामले में विभागीय जांच करवा रही थी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दी गई थी.