मित्र ने समोसे के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है । वे जानकर हैं कि बेहतर भोजन खा चुके हैं तो उन्हें मालूम है वरना बहुत लोगों को यह मालूम भी न होगा।
फ़ूड ब्लॉगर और प्रसिद्ध रेसिपी लिखने वालों ने कुछ नया karne में भारतीय भोजन के स्वाद और गुणवत्ता की ऐसी तैसी कर दी है ! मुझे भोजन बनाने और खाने का शौक़ है तो नियमित अध्ययन करता हुँ। जहां पहले के विशेषज्ञ चावल धोने आग की तीव्रता, माध्यम अथवा low कर ही भोजन का स्वाद बदल देते थे । वहाँ अब विवाह में दुल्हन का मेकअप हो या भोजन दोनों में कोई नवीनता नहीं दिखती है ।
एक बार घर में विवाह था और हलवाई लगा था । कचौड़ी बन रही थीं कि दादा जी ने कहा कि आग धीमी कर वरना कचौरी अंदर से कच्ची रह जाएगी।
शहर के प्रसिद्ध हलवाई को दादा जी को टोका ताकि पसंद नहीं आयी और वह बोला , “ लाखों लोगों का भोजन बन दिया अब आपसे सीखूँगा “?
दादा जी ने उसकी पीठ पर लाठी ठोकी और उसकी पहले बन चुकी कचौड़ी उसे तोड़ कर दिखायी जो अंदर से कच्ची थी। अब उसके पिता ने कहा, “ गुरु लोग हैं ख़ुशबू से बता देंगे , पैर छू कर छमा माँग “।
मैं चकित था । किंतु कालांतर में उन्हें मंदिर के लिए भोग बनाते देखा तो समझ आया भजन सिर्फ़
मसालों और अनाज से ही नहीं बनता इसमें बनाने वाले के प्राण भी लगते हैं ।
एक सगुण उपासक साधु हैं उनके रसोइये का मासिक वेतन चालीस हज़ार है । अक्सर उपवास रखते हैं । भोग लगा कर बाँट देते हैं किंतुउनके प्रसाद के स्वाद को शायद ही कोई हलवाई छू पाएगा।
अब हर चीज दो मिनट में की जाती है । रबड़ी बनानी है तो मिल्क मैड डाल दो । पर मलाई कहाँ से लायेंगे इसके बिना गले में fislane वाली फीलिंग कहाँ से आएगी तो हल्दी राम हो या कोई और बड़ा हलवाई रबड़ी का मतलब गाढ़ा दूध बन कर रह गया है।
हर मिठाई ,भटूरे, समोसे की यही व्यथा है ! चटनी में पालक अधिक है । दही दल रहा है ।
गोलगप्पे का पानी टाटरी अथवा तेजाब से खट्टा हो रहा है !
मैं चकित होता हूँ जब छोले, पाव भाजी, राजमा, चंकी चैट मसाला और बिरयानी मसाला आदि के सैंकड़ों पैकेट देखता हुँ ।
घर में ख़ाना बनाना है बस प्यार लहसुन अदरक टमाटर धनिया और इन मसलों का एक चम्मच डालिये और आशा कीजिए कि विश्व का सर्वोत्तम भोजन खा रहे हैं ।
इन सभी मसलों में जो गंध और आयल hota है वह तो इस पैकिंग और शेल्फ पर पड़े पड़े ग़ायब हो जाता है । दक्षिण भारतीय ग्रहणियाँ अभी भी सूखे मसाले भून कर पीस कर सांभर और रसम बनाती है ! यही उनकी काफ़ी की गुणवत्ता का राज है ।
अब प्याज़ लहसुन टमाटर धनिया हींग जीरा अदरक ही सभी रेसिपी का आधार है तो आपको मूल सब्ज़ी का स्वाद भी नहीं मालूम होता। जबकि आयुर्वेद भोजन को पकाने में उसके मूल गुण को बढ़ाता था और किसी बड़े दोष को कम करने वाले मसाले डालता था।
आयुर्वेद अलग अलग सब्ज़ी के लिए नींबू, इमली , अमचूर , राइ, अनार दाना, दही आदि का उपयोग करता था । कच्चा आम काम में लेन के बाद उसकी गुठली सुखी जाती थी और अरहर दाल के साथ उबाली जाती थी ।
छौंक भी अनेक प्रकार के थे ।
स्वस्थ रहना है तो बारह महीने, दोनों वक्त प्याज लहसुन टमाटर नहीं खाया जा सकता है ।
अपने शरीर की प्रीकृति jaane और उसके अनुरूप भोजन तय करें ?
अनेक बीमार कहते हैं कि हम तो बिना घी बिना नमक सादा ख़ाना कहते हैं फिर भी समस्या क्यों हैं ! क्योंकि सादा और सड़ा या नीरस भोजन बहुत भिन्न नहीं है ।
मसाले औषधि हैं और नमक मिर्च से भिन्न हैं ।
अपने माता पिता दादा दादी के दिनों को याद करें और उन रेसिपी को ज़िंदा करें वे हज़ारों साल se आजमायी हुईं मौसम को वश में करने वाली परंपरा हैं।
भोजन को अत्यंत सादा न करें थोड़ा व्यायाम करें और सर्दी के दिनों में पराठों हलवे का आनंद लें ।
अच्छा भोजन, अच्छा वार्तालाप और अच्छी नींद नहीं है तो जीने का लाभ ही क्या है ?
बाज़ार लाभ के लिए अंधा हो गया है ! पैसे लेकर भी सिंथेटिक फ्लेवर काम मे लाता है ।
शुद्ध केसर, देसी घी , हींग , मक्खन आदि के सस्ते विकल्प काम में लाए जा रहे हैं ऊपर से पैकिंग का कचरा पृथ्वी को त्रस्त कर रहा है ! जब भी कोई अच्छी डिश बनायें तो मित्रों को भेजें ! वे आपको भेजेंगे तो एक बार ke परिश्रम में चार परिवार आनंद लेते हैं । मैं मनीला में था तो रक्षा बंधन पर दस परिवारों को घेवर भेजा फिर जो श्रृंखला शुरू हुई तो किसी दिन ऐसा नहीं hua कि कहीं से कोई विशेष डिश आयी । कुछ मित्रों ne ख़ुद से बनाने ki कोशिश की तो ठीक नहीं बना । मैंने समझाया कि आग तेज रखनी varna ठंडा घोल घी को ठंडा कर देता है और घेवर ki जाली के बजाय एक पहाड़ ban जाता है।
अच्छा गुणवत्ता ka भोजन ख़ाना है तो गैंग बनाये और एक दो डिश के विशेग्य बनें औरों को खिलायें वे आपको खिलायेंगे । हमारा परिवार दूसरों के शुभ अवसर पर उन्हें डिश बना कर देता है और वे हमें तो समय भी बचता है और ख़ाना शानदार ही रहता है !