बदतमीजी से बजबजाता यह परनाला
‘घटिया यूनिवर्सिटी’ फेम मेनका गांधी (Maneka Gandhi) और ‘घटिया औरत’ फेम अजय विश्नोई (Ajay Vishnoi) राजनीतिक रूप से एक ही कुटुंब के सदस्य हैं। वे भाजपा (BJP) के क्रमशः सांसद और विधायक हैं। एक विवाद की आंच ने इन दोनों को एक-दूसरे से जोड़ दिया है। गांधी ने उस यूनिवर्सिटी को घटिया कह दिया, जहां से विश्नोई ने पढ़ाई की है। जवाब में विश्नोई ने मेनका को ही घटिया करार दे दिया। अब भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई के इंचार्ज मुरलीधर राव (Murlidhar Rao) ने कहा है कि इस टिप्पणी के लिए विश्नोई से जवाब तलब किया जाएगा। अमर्यादित व्यवहार के लिए तो वेटरनरी डॉक्टरों (Association of Veterinary Doctor’s) के संगठन ने भी लोकसभा अध्यक्ष से श्रीमती गांधी की शिकायत की है। भाजपा सांसद के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध जताया जा रहा है। लेकिन फिलहाल ऐसी कोई हलचल नहीं हुई है कि लोकसभा सचिवालय इन सांसद या भाजपा मुख्यालय अपनी इस नेता से जवाब मांग रहे हों।
इस मामले में एक तथ्य यह कि अमर्यादित आचरण की शुरूआत मेनका गांधी की तरफ से ही हुई थी। एक पशु चिकित्सक को फ़ोन पर उन्होंने जो कुछ कहा, वह श्रीमती गांधी की महंगी और प्रतिष्ठित शिक्षा-दीक्षा की सार्थकता पर सवालिया निशान उठाता है। लेकिन ऐसा कहते/करते समय गांधी के निशाने पर विश्नोई दूर-दूर तक नहीं थे। हुआ यह कि ज़ुबानी तथा वैचारिक गंदगी से सनी हुई मेनका गांधी किसी चिकित्सक सहित उसके पिता, उसके पारिवारिक संस्कार, एक शहर और किसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के लिए अनाप-शनाप बोलती चली गयीं। इसलिए जब इस अपमानजनक आचरण का विस्तार जबलपुर (Jabalpur) और वहां की नानाजी देशमुख यूनिवर्सिटी (Nanaji Deshmukh University) तक हुआ तो उसी अंचल तथा यूनिवर्सिटी से ताल्लुक रखने वाले विश्नोई भी तमतमा उठे। फिर जो हुआ, वह सबके सामने है। आगे जो होगा, वह फिलहाल भविष्य में छिपा हुआ है।
मेनका का गुस्सा एक बेजुबान जानवर की तकलीफ को लेकर था। विश्नोई की प्रतिक्रिया एक शहर और संस्थान की प्रतिष्ठा को लांछित करने की पीड़ा से उपजी थी। विश्नोई को तो उनकी पार्टी देर-सवेर तलब कर ही लेगी, लेकिन एक बात बहुत अधिक गौर करने लायक है। भाजपा विधायक द्वारा मेनका के लिए ‘घटिया औरत’ कहने पर कोई ख़ास हलचल नहीं हुई है। जबकि ये वो दौर है, जब किसी स्त्री के लिए ज़रा-सा भी अपमानजनक व्यवहार तूफ़ान खड़ा कर देता है। ऐसा करने वाले को मीडिया और सोशल मीडिया(Social Media) ‘घर में घुसकर मारने’ की शैली में गरियाने और वाक्यों के जरिये जुतियाने में भी जुट जाते हैं। किन्तु विश्नोई ऐसी तीखी प्रतिक्रियाओं से लगभग पूरी तरह बचे हुए हैं। तो क्या इसकी वजह यह कि मेनका के किये और कहे वाली घोर अशालीनता के मुकाबले अधिकांश लोग विश्नोई के कथन को कम बुरा मान रहे हैं। शायद वे इस बात को जस्टिफाई कर रहे हैं कि सांसद की गालीमय बारहखड़ी के आगे विधायक की अपमानजक शब्दावली कम खलने वाली प्रतीत हो रही है। ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ (Every action has a reaction) वाले इस उदाहरण में फिलहाल तो क्रिया का पक्ष हलका (‘उथला’ कह सकते हैं) हो गया है।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की कहानी ‘नशा’ (Nasha) का अंतिम प्रसंग याद कीजिये। ट्रेन में सवार मुख्य पात्र एक जमींदार के घर पर महज कुछ दिन की मेहमान नवाजी के नशे में चूर है। जबकि खुद उसकी कोई हैसियत नहीं है। इसी फितरत के चलते वह एक गरीब सहयात्री को तमाचे जड़ देता है। इसके बाद बाकी यात्री इस चरित्र की जिस आक्रामकता से खिंचाई करते हैं, उसके चलते उसका सारा नशा ख़त्म होने लगता है। आप इस चरित्र की जगह मेनका गांधी को रखिये। गरीब सहयात्री के स्थान पर उस वेटेरनरी डॉक्टर को रखें, जिसकी फ़ोन पर श्रीमती गांधी ने जमकर बेइज्जती की। मेनका अब मंत्री नहीं हैं। उनके बेटे वरुण (Varun Gandhi) का सियासी रसूख भी चुकने लगा है। लेकिन अतीत की दमदारी का नशा मेनका पर अब भी हावी दिखता है। तो अब मौक़ा है, बाकी लोगों का, जो श्रीमती गांधी के इस नशे को दूर करने के लिए सक्रिय हों। विश्वास कीजिये सत्ता और पद के अहं में मगरूर जन प्रतिनिधियों के दिमाग ठिकाने लगाने के लिए यह जरूरी है। बदतमीजी से बजबजाता यह परनाला किसी दिन आपके दामन को भी गंदा कर सकता है, इसलिए अभी से उसका प्रतिकार जरूरी है। ऐसे सुलूक के विश्नोई भी पात्र हैं, हां, क्रिया की प्रतिक्रिया के लिहाज से उन्हें ‘संदेह का लाभ’ देने जैसी स्थिति भी बनी हुई है। क्योंकि यहां मामला ‘हर क्रिया की समान प्रतिक्रिया’ वाला नहीं है। क्योंकि कई कारणों से विश्नोई की प्रतिक्रिया बेगुनाही के नजदीक भी देखी जा सकती है।
प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार