प्रकाश भटनागर :

दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। महेंद्र सिंह धोनी भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और चेन्नई सुपर किंग्स की बेहद तेजी से ढह गई उम्मीदों के प्रतिनिधि हैं। दिग्विजय ने खुद की तुलना क्रिकेट टूर्नामेंट आईपीएल मैचों के आखिर में उतरने वालों बल्लेबाजों से की है। प्रदेश में हो रहे उपचुनावों के लिए दिग्विजय सिंह ने खुद को धोनी की तरह मैच फिनिशर बताया है। धोनी ने भी एक फिनिशर के तौर पर ही चल रहे आईपीएल में सीएसके की टीम में खुद को स्थापित करने की कोशिश की थी। अब बात कुछ रिवर्स एंगल में। सीएसके आखिरकार आईपीएल में बुरी तरह हार कर बाहर हो गई। कहा गया कि उम्र के इस मुकाम पर धोनी वह दमखम नहीं दिखा सके, जो उनकी प्रतिद्वंदी टीमों में नजर आया। वे और टीम के दूसरे खिलाड़ी युवाओं की तुलना में उम्रदराज हो गए थे
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हाल भी चैन्नई सुपर किंग से अलग कहां हैं। दिग्विजय भी आयु की उस दहलीज पर पहुंच गए हैं, जहां किसी क्षेत्र का घुटे से घुटा आदमी भी कमजोर होने लगता हैं। यही हाल खुद कमलनाथ और उनकी टीम के भी हैं। तो यदि इस उपचुनाव को आईपीएल मान लें, जैसा दिग्विजय सिंह ने कहा भी है तो निश्चित ही दिग्विजय को धोनी और कांग्रेस को चेन्नई सुपर किंग्स की श्रेणी में खड़ा करना पड़ेगा। दिग्विजय का खुद को फिनिशर की तरह स्थापित करना खयाली पुलाव से अधिक और कुछ नहीं है। उन्होंने उपचुनावों में बल्लेबाजी ऐसे समय शुरू की है, जब कांग्रेस एक के बाद एक छब्बीस मौकों पर हिट विकेट की शिकार हो चुकी है। उसके बाकी बचे खिलाड़ियों में से कितने ड्रेसिंग रूम से निकलकर सीधे बीजेपी के पवैलियन में चले जाएं, यह अब भी नहीं कहा जा सकता है।
तो इन हालात में दिग्विजय आखिर क्या कर लेंगे? वे इतने ही कुशल होते तो अपने इशारे पर चल रही कमलनाथ सरकार को असमय पारी की हार से बचा ला सकते थे। कमलनाथ तो खैर वह बैट्समैन बनकर रह गए, जिसने दिग्विजय के इशारे पर क्रीज छोड़कर रन बनाने की कोशिश की और रन आउट हो गए। अब नाथ को सिंह से और कितने सियासी पराक्रम की ‘आशंका’ शेष होगी, ये तो वह खुद जानें, किन्तु दिग्विजय की आईपीएल वाली बात आसानी से हजम नहीं हो पा रही है। हां, इस सन्दर्भ में उनकी बात को गले के नीचे उतारा जा सकता है कि सीएसके ने आईपीएल से बाहर होने के बाद अब कहा है कि वह युवा चेहरों पर ध्यान देगी। आईपीएल की इस टीम ने अनुभव के नाम पर जिन उम्रदराजों (धोनी सहित) को तवज्जो दी, वे ही अंतत: उसकी लुटिया डुबोने का प्रमुख कारण बन गए। कांग्रेस में भी यही हो रहा है।
युवा चेहरे दरकिनार कर दिए गए हैं। या फिर जो युवा मौजूद हैं, विरासत की उनकी राजनीति पार्टी के जमीनी युवाओं पर भारी पड़ रही है। पार्टी की कमान कमलनाथ और दिग्विजय जैसे सत्तर पार वाले नेताओं के हाथ में हैं। जिनकी बची खुची राजनीति अपने साहबजादों को स्थापित करने में ज्यादा है। यदि उपचुनावों में कांग्रेस को वांछित सफलता नहीं मिलती तो क्या यह दल भी सीएसके के ही तरह अपनी भूल सुधार कर युवा चेहरों को आगे लाएगा? क्या ऐसा होगा कि दस नवम्बर के बाद कांग्रेस में नकुल नाथ या जयवर्द्धन सिंह जैसे युवाओं पर जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, उमंग सिंघार या सुखदेव पांसे जैसे चेहरों को आगे लाया जाएगा? ऐसा संभव तो दिखता नहीं है। क्योंकि खुद राहुल गांधी ने गए विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में युवाओं की बजाय उम्रदराज चेहरों को आगे किया था।
नतीजा यह हुआ कि मध्यप्रदेश में उनकी सरकार चली गयी और राजस्थान में भी ऐसा होते-होते बच गया। दिग्विजय के अनुभव पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। मगर उनकी सियासी सक्रियता पर पड़ी मंदी की छाया से भी इंकार नहीं किया जा सकता। पूर्व मुख्यमंत्री को चाहिए था कि उपचुनाव की गहमागहमी की शुरूआत में वह रणनीति के तौर पर कमान संभालते। और फिर युवा चेहरों को एक कार्यक्रम सौंपकर पीछे हो जाते। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब फिनिशर की जिम्मेदारी की बात कहकर उन्होंने इस उम्र में वह सियासी दांव खेल दिया है, जिसकी सफलता पूरी तरह संदिग्ध है। ‘फिनिशर’ तो मामला खत्म करता है। क्रिकेट मैच का फिनिशर टीम को जीत के मुकाम तक पहुंचाता है। सियासी मैच में कोई जरूरी नहीं कि फिनिशर अपनी टीम के पक्ष में हर बार ही फिनिशर साबित हो। कई बार मामला विरोधी टीम की बजाय खुद के दल की ही संभावनाओं को फिनिश करने वाला हो जाता है? क्या दिग्विजय और खासतौर पर कमलनाथ और कांग्रेस इस तथ्य से वाकिफ हैं?