/ 128वें और 129वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 मसौदे के माध्यम से आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) में संशोधन पर हुई विस्तार से चर्चा // पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बिल को बताया पारदर्शिता पर गहरा आघात, वहीं मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा आम व्यक्ति को अब आसानी से नहीं मिलेगी जानकारी // देश के तमाम उपस्थित आरटीआई कार्यकर्ताओं ने जाहिर की चिंता, कहा सरकार वापस ले डीपीडीपी बिल की धारा 29(2) और 30(2) के प्रावधान।।*
दिनांक 11 दिसंबर 2022 रीवा मध्य प्रदेश,
प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के माध्यम से सूचना के अधिकार कानून 2005 में प्रस्तावित किए जाने वाले फेरबदल को लेकर प्रत्येक रविवार आयोजित होने वाले राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में उपस्थित विशेषज्ञों और पूर्व सूचना आयुक्तों ने चिंता जाहिर की है। गौरतलब है कि डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 का जो मसौदा तैयार किया जा कर जनता के लिए फीडबैक के लिए वेब पोर्टल पर रखा गया है उसको पढ़ने के बाद यह स्पष्ट होता है की डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 की धारा 29(2) और 30(2) में जो प्रावधान किए गए हैं उसमें आरटीआई कानून पर बड़े पैमाने पर बदलाव हो जाएगा। निजता और व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर आरटीआई कानून में यदि संशोधन हो जाता है तो आने वाले समय में आम व्यक्ति को सामान्य जानकारी के लिए भी भटकना पड़ेगा और जानकारी नहीं मिल पाएगी। यह बात कार्यक्रम में उपस्थित पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, आईटी एक्सपर्ट एवं उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार ठक्कर, आरटीआई कार्यकर्ता देवेंद्र अग्रवाल, अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी सहित उपस्थित देश के विभिन्न कोनो से सम्मिलित हुए आरटीआई एक्टिविस्ट और कार्यकर्ताओं के द्वारा कही गई।
कार्यक्रम में विशेष तौर से पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि सरकार आरटीआई कानून को समाप्त करने का प्रयास कर रही है। इसके पहले आर टी आई कानून में किए गए संशोधन में सूचना आयुक्तों की शक्तियों को घटाकर आरटीआई पर कुठाराघात किया गया। आम जनता के लिए जो भी थोड़ा बहुत साधन बचा हुआ था डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के मसौदे से यह स्पष्ट है कि इस कानून के लाए जाने के बाद कोई भी लोक सूचना अधिकारी व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर आरटीआई आवेदको और आम जनमानस को जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं होगा और उस पर अपील के दौरान सूचना आयुक्तों के पास भी शक्तियां नहीं होंगी की आम जनता को जानकारी दिलवा दें।
*संसद और विधायिका को दी जाने वाली जानकारी आम जनता को दी जानी चाहिए*
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी, मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एवं पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने परिचर्चा के दौरान कहा की आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) में यह प्रावधान था कि जो जानकारी लोक सूचना अधिकारी ऐसा मानता है कि व्यापक लोकहित से संबंधित है और वह जानकारी लोकसभा और विधानसभा को दी जानी चाहिए ऐसी जानकारी आम जनता को भी दी जानी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से प्रस्तावित डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 की धारा 29(2) एवं 30(2) के माध्यम से किए जाने वाले आरटीआई कानून में संशोधन के बाद आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) को ही खत्म कर दिया जाएगा और इससे आम जनता को अब कोई भी जानकारी नहीं मिल पाएगी।
उपस्थित सूचना आयुक्त ने यहां तक कहा कि अब ऐसे में सूचना आयुक्त के पास भी कोई शक्ति नहीं रहेगी जिससे वह आम जनता को कोई जानकारी उपलब्ध करवा पाए क्योंकि ज्यादातर जानकारियां व्यक्तिगत जानकारी और निजता के नाम पर रोक दी जाएंगी। उन्होंने कहा कि अभी तक यदि लोक सूचना अधिकारी यह जानकारी नहीं देते थे तो अपील के दौरान सूचना आयुक्त लोक सूचना अधिकारियों के ऊपर जुर्माना और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए आदेश दे देते थे लेकिन चूंकि अब कानून के तौर पर डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 ऐसे लोक सूचना अधिकारियों के लिए ढाल का काम करेगा और वह सीधे व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर अधिकतर जानकारियां आवेदकों को उपलब्ध नहीं करवाएंगे।
*मीडिया को आगे आकर डाटा प्रोटक्शन बिल में आरटीआई कानून के संशोधन पर सवाल उठाने की मांग*
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं मध्य प्रदेश के वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एवं पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप सहित अन्य उपस्थित आरटीआई कार्यकर्ताओं एवं विशेषज्ञों ने कहा कि आम जनता को डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के मसौदे के माध्यम से सूचना के अधिकार कानून 2005 की धारा 8(1)(जे) और ओवरराइडिंग इफेक्ट खत्म किए जाने का जो प्लान सरकार का है उसके विरुद्ध जनता एवं मास मीडिया को आवाज उठानी चाहिए। यदि समय रहते आवाज नहीं उठाई जाएगी और सरकार यह कानून लागू कर देती है तो न केवल आम जनता बल्कि मीडिया को भी जानकारी आसानी से नहीं मिलेगी।
*डाटा प्रोटक्शन बिल के बाद यदि मीडिया अनाधिकृत न्यूज छापेगी तो कार्यवाही का खतरा*
आलम यह है की डाटा प्रोटक्शन बिल 2022 के प्रस्तावित मसौदे में यदि आरटीआई कानून 2005 में प्रस्ताव अनुसार संशोधन कर दिया जाता है तो इससे न केवल आम जनता को जानकारी हासिल करने में कठिनाई होगी बल्कि मीडिया भी जो खबरें कई बार अनाधिकृत तौर पर कार्यालयों से दस्तावेज प्राप्त कर छाप दिया करती है उस पर भी कार्यवाही का खतरा बना रहेगा। अभी तक अमूमन यह होता था कि कई बार समाचार छापने के लिए बिना आरटीआई आवेदन लगाए ही यदि किसी कार्यालय के बाबू अथवा अधिकारी से कोई समाचार मिल जाती थी तो छप जाया करती थी लेकिन डाटा प्रोटेक्शन के नाम पर यदि छापी गई समाचार किसी व्यक्तिगत जानकारी और निजता से संबंधित है और यदि इस पर कार्यवाही हो जाती है तो ऐसे में मीडिया संस्थान भी उस कार्यवाही के दायरे में आ जाया करेंगे और यह बहुत आसानी से मीडिया के फ्रीडम आफ प्रेस, फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन, और पर कतरने का सफल प्रयास होगा। ऐसे में मात्र एक ही तरीका है कि डाटा प्रोटक्शन बिल के वर्तमान मसौदे में तत्काल सरकार बदलाव करे और किसी प्रकार से आरटीआई कानून के साथ छेड़छाड़ न करे। सूचना के अधिकार कानून के लिए निरंतर काम काम करने वाले पूरे देश के कार्यकर्ताओं ने इस पर चिंता जाहिर की है और इसे सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा कुठाराघात करार दिया है।
कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा किया गया जबकि सहयोगीयों में पत्रिका समूह के वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह, आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप के आईटी सेल प्रभारी पवन दुबे और अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा सम्मिलित रहे।