पहली बार प्रयागराज महाकुंभ में हिंदू कर सकेंगे दर्शन,

*भारत स्वतंत्र हुआ, पर कैद ही रह गया पुराणों का अक्षयवट: पहली बार प्रयागराज महाकुंभ में हिंदू कर सकेंगे दर्शन, अकबर का लगाया प्रतिबंध मोदी राज में हटा*

*अक्षयवट का महात्म्य, सीएम योगी ने मुगलकाल के प्रतिबंध हटाए*

कहा जाता है कि प्रयागराज कुंभ में स्नान का फल तभी मिलता है, जब वहाँ स्थित अक्षयवट का दर्शन किया जाए। संगम तट पर एक प्राचीन किला है, जिसमें यह अक्षय वट स्थित है। अक्षयवट का जिक्र पुराणों में भी वर्णन है। कहा जाता है कि यह वट सृष्टि के विकास और प्रलय का साक्षी रहा है। इसका कभी नाश नहीं होता है। अकबर ने अक्षयवट के दर्शन-पूजन पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद दिवंगत सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने यहाँ आकर पातालपुरी मंदिर का दर्शन किया था और बाद में उनके प्रयास से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साल 2018 में यहाँ आम लोगों के दर्शन पर से प्रतिबंध हटा दिया था। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहाँ आए और इस अनादि अक्षयवट का दर्शन किया था।
इस वट को बारे में कहा जाता है कि इस वृक्ष को माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी वह हरा-भरा रहेगा। इसके अलावा, एक मान्यता यह भी है कि बाल रूप में भगवान कृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे। तब से श्रीहरि इसके पत्ते पर शयन करते हैं। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है।
ह्वेन त्सांग ने अक्षयवट के बारे में लिखा है कि नगर में एक मंदिर है और उसमें एक विशाल वट है। इसकी शाखाएँ और पत्तियाँ दूर दूर तक फैली हुई हैं। इस वट का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। कहा जाता है कि भारद्वाज मुनि ने भगवान श्रीराम से कहा था कि वे दोनों भाई गंगा-यमुना के संगम पर जाएँ और वहाँ बहुत बड़ा वट वृक्ष मिलेगा। वहीं, से दोनों भाई यमुना को पार कर जाएँ।
भारद्वाज मुनि अक्षयवट के बारे में भगवान राम से कहते हैं कि वह चारों तरफ से दूसरे वृक्षों से घिरा होगा। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष रहते होंगे। वहाँ पहुँचकर वटवृक्ष से आशीर्वाद की कामना करनी चाहिए। कहा जाता है माता सीता ने ऐसा ही किया और साथ ही अक्षयवट को आशीर्वाद दिया कि संगम स्नान करने के बाद जो कोई अक्षयवट का पूजन-दर्शन करेगा, उसे ही स्नान का फल मिलेगा।
कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि के आरंभ में प्रयागराज के संगम पर यज्ञ आरंभ किया था। इसमें भगवान विष्णु यजमान बने थे और भगवान शिव देवता बने थे। यज्ञ के अंत में तीन देवों ने अपनी शक्तिपुँज से एक वृक्ष उत्पन्न किया, जिसे आज अक्षयवट कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस वटवृक्ष की उम्र 5270 वर्ष बताई जाती है। कहा जाता है कि इस अक्षयवट की जड़े पाताल लोक में स्थित हैं।
कहा जाता है कि अक्षयवट को मुगलकाल में इसे खत्म करने के प्रयास किए गए। इसके अलावा भी कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे काट एवं जलाकर नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। माना जाता है कि इस तरह के वट वृक्ष पृथ्वी पाँच हैं। पहला प्रयागराज में अक्षयवट, दूसरा उज्जैन में सिद्धवट, तीसरा वृंदावन में वंशीवट, चौथा गया में मोक्षवट और पाँचवाँ पंचवटी में पंचवट।

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