कांग्रेस-वामदलों का गठबंधन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहा है। भाजपा ने राज्य में जिस तरह आक्रमक प्रचार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सीधा हमला बोल खुद को सीधी लड़ाई में ला खड़ा है, उसे देखते हुए कांग्रेस-वामदल गठबंधन ने आईएसएफ, आरजेडी समेत छोटे दलों को अपने मंच पर लाने की रणनीति बनाई है।
बंगाल की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं के वोट करीब सौ सीटों पर खासा महत्व रखते हैं। हर चुनाव में बंगाल की फुरफुरा शरीफ दरगाह से जुड़े परिवार का महत्व बढ़ जाता है। पिछले चुनाव में इसी दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ममता बनर्जी के काफी करीब थे और टीएमसी को इसका सियासी लाभ मिला। ममता से नाराज अब्बास सिद्दीकी ने अबकी अपनी राजनीतिक पार्टी इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) बनाकर खुद मैदान में हैं।
ममता बनर्जी सरकार से नाराजगी का लाभ उठाकर कांग्रेस-वामदलों ने मुस्लिम मतदाताओं से जुड़ने के लिए आईएसएफ को गठबंधन का हिस्सा बनाने की घोषणा की है। हालांकि विशुद्ध मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ने से पहले कांग्रेस नेतृत्व ने इसके नफे-नुकसान का आंकलन भी किया है।
वहीं सीटों के बंटवारे का फार्मूला अभी तय नहीं हो सका है कांग्रेस की कोशिश है कि कुछ मुस्लिम सीटों पर उनके भी उम्मीदवार उतरें और उसकी पुरानी 92 सीटों में कटौती न हो। अब्बास सिद्दीकी पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर लड़ना चाह रहे थे। अब्बास की पार्टी को अपने साथ जोड़ने का मौका वामदलों ने हाथ से नहीं जाने दिया। वाम नेताओं को इसके लिए राज्य इकाई के साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी भरोसे में लेना पड़ा है।