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परम्पराओं से सीख ली जाती तो भोजन का अपव्यय नहीं होता।।।

 

युपी में पहले बारात तीन दिन ठहरती थी,,,दुल्हे के साथ सहबाला महत्वपूर्ण भूमिका में रहता था,,,उसी में एक रस्म होती थी खिचड़ी खवाई,,,

पं, बंगाल में दामाद शादी बाद जब पहली बार ससुराल जाता है तो उसकी थाली में अनेक प्रकार के पकवान रख दिए जाते हैं।

बड़े बड़े नामचीन हस्तियों के यहां समारोह में विभिन्न प्रकार के आईटम खाने के बनते हैं।

ये तीन उदाहरण क्यों,,

कारण यह कि इंदौर में मप्र सरकार के मंत्रीमंडल की बैठक हुई फिर भोजन भी,,, मुख्यमंत्री साथ महापौर के भोजन करते हुए जो फोटो बाहर मीडिया में चले और भोजन के आईटम पढ़ें तो फिर ऊपर का उदाहरण निम्न तथ्य समझाने खातिर।।

महापौर शायद सहबाले की भूमिका में थे भोजन समय और फिर मुख्यमंत्री शायद इंदौर पहली बार आये हो,, और दावत किसी ख्यातनाम व्यक्ति की दी हुई हो,,,

पात्र इतने बड़े बड़े दिखे तो क्या अनगिनत आईटम सबने खाएं होंगे,,, अगर हां तो भाई गजब का हाजमा है मप्र सरकार का और मंत्री मंडल का,,

पहले शाम को सराफा चौपाटी और फिर सुबह नाश्ता फिर ये शाही दावत गजब का हाजमा है भाई,,,

मोदी जी मन की बात करते हैं और तेल खाने में थोड़ी बचत की सलाह देते हैं,,, डॉ उम्र होने पर कम खाने और नियमित व्यायाम की सलाह देते हैं।

परम्पराओं का उल्लेख इसलिए किया कि संदेश छुपा है,, भोजन को बचाने का,, अपव्यय रोकने का, सहबाला दुल्हे का साथ देकर भोजन खत्म करता है,, अपनी थाली खाली रखकर धीरे-धीरे दुल्हे की थाली ताकि उपहास ना उड़े,, बंगाल में जमाईं राजा की जुठन पत्नी और परिवार के छोटे खत्म करते हैं जमाई राजा केवल एक बार सब चखते हैं जो खाना रहता है उतना ही लेते हैं।

बड़ी-बड़ी होटलों या ख्यातनाम हस्तियों के आयोजन में आईटम साईज छोटी छोटी करके दी जाती है या बनाई जाती है कि स्वाद भी ले ले और अपव्यय नहीं हो जूठन ना छुटे,,,

क्या बाद के फोटो विचलित नहीं करते जूठन खूब मिली,,, लोग बचे भोजन बटोरने में लगें सफाई करने में अमला जुटा काजू-बादाम के बोरे ले भागे आदि आदि,,,

आईटम ज्यादा थे तो साईज छोटी रखते बर्तन की मिट्टी के बर्तन बहुत प्रकार के आते हैं उसका उपयोग किया जाता,,, खैर सुना है चार हजार की प्लेट पड़ी,,,, राजशाही बैठक थी,,दावत भी राजशाही ही हुई।

किसने दी, क्यों दी अलहदा प्रश्न पर सवाल परम्पराओं से सीख लेने का है कि भोजन उतना ही लो थाली में,,,,, जितना खा सकते हो,,,वो ही लोग जो खाओ,,, मिट्टी के बर्तन उपयोग करें तो केटर्स यह कर सकता था।

अपन ना सहबाले ना जमाई राजा की ससुराल के नाम ख्यातनाम व्यक्ति की दावत के मेहमान,,,,बस राहगीर वो भी वाचाल,,

साभार:   प्रमोद कुमार व्दिवेदी एड्वोकेट

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