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कोई कल्पना कर सकता है केवल चौदह वर्ष की दो बालिकाओं की वीरता की जिन्होंने अंग्रेजी राज में अंग्रेज कलेक्टर के कार्यालय में घुसकर गोली मारी और ढेर कर दिया । सुनीति चौधरी और शांति घोष दो ऐसी वीर बालिकाएँ थीं। जिन्हे कालापानी भेजा गया ।
आजकल त्रिपुरा भारत का एक अलग राज्य है; पर उन दिनों वह बंगाल का एक जिला हुआ करता था । उसका मुख्यालय कोमिल्ला था। वहां जिलाधीश के रूप में स्टीवेंस की पदास्थापना हुई । वह अत्यंत क्रूर और अत्याचारी कलेक्टर था । उसके अत्याचारों से पूरा जिला थर्रा उठा। वह भारतीयों के साथ जानवरों से बदत्तर व्यवहार करता और क्रांतिवीरों को बहुत कड़ी यातनाएँ देता था। अतः क्रांतिकारियों ने उसे ही मजा चखाने का निश्चय किया। पर यह काम आसान नहीं था । इसके दो कारण थे । एक तो उसने क्रांति से जुड़े सभी युवाओं पर निगरानी बिठा रखी थी और दूसरी वह वह बहुत कड़ी सुरक्षा में रहता था। विशेषकर युवाओं से तो मिलता ही नहीं था । और जिन किसी से मिलता था वह बहुत सावधानी और जांच के बाद । उसने घर पर ही कार्यालय बना रखा था । वह अधिकांश काम वह घर पर बैठकर ही करता था। तब योजना बनी कि उसे खत्म करने केलिये छात्राओं को तैयार किया जाय। इसके लिये कल्याणी देवी को माध्यम बनाया गया । कल्याणी देवी उन दिनों कोमिल्ला के फैजन्नुसा गर्ल्स हाइस्कूल की प्रधानाचार्य थीं। वे सुभाषचंद्र बोस के गुरु वेणीमाधव दास की पुत्री थीं। उनकी छोटी बहिन वीणा दास बंगाल के गर्वनर स्टेनली जैक्सन के वध के अपराध में 13 वर्ष का कारावास भोग रही थीं। श्रीमती कल्याणी देवी बड़े प्रखर विचारों की थीं तथा छात्राओं के मन में स्वत्व और स्वाधीनता का महत्व जगाती रहती थीं।
श्रीमती कल्याणी देवी की बातों से शांति घोष और सुनीति चौधरी बहुत प्रभावित थीं। दोनों आठवीं कक्षा की छात्राएँ थीं। दोनों बहुत साहसी और कुशाग्र बुद्धि भी थीं। कल्याणी देवी ने दोनों छात्राओं को अपने पास बुलाया। और उन्हें योजना समझाई । दोनों सहमत हो गईं। इन्हें पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण दिया गया और अपने शरीर के अंतरंग अंगों में छिपाने का अभ्यास कराया गया ।
इतनी तैयारी के बाद स्टीवेंस को मारने की योजना बनाई गई। कलेक्टर से मिलने का समय मांगा गया । इसके बाद यह सावधानी बरती कि दोनों बालिकाएँ विद्यालय से घर और घर से विद्यालय जातीं। ताकि मिलने कोई संदेह न हो । अंत में 14 दिसम्बर 1931 को भेंट का समय मिला । शांति और सुनीति अपने विद्यालय की वेशभूषा में स्टीफेंस के घर पहुंची । दोनों ने अपने कपड़ों में भरी हुई पिस्तौल छिपा रखी थी।
मिलने का कारण बताया था कि हमारे विद्यालय की ओर से तीन मील की तैराकी प्रतियोगिता हो रही है । इस प्रतियोगिता में जिलाधीश महोदय का सहयोग चाहिए। इसकेलिये आवेदन देना है । वे अपने स्कूल की ड्रेस में ही थीं और बस्ता भी साथ था । जब वे द्वार पर पहुँची तो तलाशी हुई । द्वार के रजिस्ट्रर पर मिलने का कारण लिखा गया, लेकिन पिस्तौल सामने न आ सका । पिस्तौल शरीर के अंतःवस्त्र में छिपा था । संतरी ने उनके हाथ से आवेदन का कागज लिया । स्वयं साथ लेकर अंदर गया । संतरी ने पत्र स्टीवेंस के सामने रखा । दोनों बालिकाओं ने जिलाधीश का अभिवादन कर उनसे यह आदेश जारी करने की प्रार्थना की कि तैराकी प्रतियोगिता के समय नाव, स्टीमर, मोटरबोट आदि नदी से न निकलें, जिससे प्रतियोगिता ठीक से सम्पन्न हो जाए। स्टीवेंस ने कहा कि इस प्रार्थना पत्र पर तुम्हारे विद्यालय की प्रधानाचार्य जी के हस्ताक्षर नहीं हैं। पहले उनसे अग्रेषित कराकर लाओ ।लेकिन शांति और सुनीति ने बहुत गिड़गिड़कर प्रार्थना की कि वे प्राचार्य को आदेश कर दें। कलेक्टर स्टीवेंस कलम उठाकर कागज पर आदेश लिखने लगा। दोनों को अवसर मिला और तुरन्त अपने कपड़ों में छिपी पिस्तौल निकालकर स्टीवेंस पर गोलियां दाग दीं। गोली की आवाज सुनते ही बाहर खड़े लोग दौड़कर आये पर तब तक स्टीवेंस जमीन पर गिर पड़े थे । और काम तमाम हो चुका था।
दोनों बालिकाओं को पकड़ लिया गया। शांति और सुनीति अपने लक्ष्य की सफलता पर प्रसन्न थीं। उनसे संपर्क पूछने के लिये भारी अत्याचार हुये पर उन्होंने किसी का नाम नहीं बताया । उस समय शांति घोष की आयु चौदह वर्ष तथा सुनीति चौधरी की आयु साढ़े चौदह वर्ष थी। अवयस्क होने के कारण उन्हें फांसी नहीं दी जा सकी। उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली और अंडमान की कालापानी जेल भेज दिया गया।
इस प्रकार इन दोनों वीर बालिकाओं ने अपनी युवावस्था के सपनों की बलि देकर क्रांतिवीरों से हो रहे अपमान का बदला लिया।
साभार, रमेश शर्मा