डॉ. वेदप्रताप वैदिक,
नेपाल के प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद ओली अपने आप को कम्युनिस्ट कहते हैं लेकिन अपनी खाल बचाने के लिए उन्होंने अब उग्र राष्ट्रवादी का चोला ओढ़ लिया है। अब वे नेपाली संसद में हिंदी बोलने और धोती-कुर्ता पहनने पर प्रतिबंध लगाएंगे। उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए उन्हीं की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ और माधव नेपाल ने शंखनाद कर दिया है। इन दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों ने ओली पर आरोप लगाया है कि वे अमेरिका और भारत, दोनों के साथ सांठ-गांठ किए हुए हैं और वे भारत-नेपाल सीमा के बारे में भी अपनी दुम दुबाए रखते हैं। वे राष्ट्राभिमानी नेपाली प्रधानमंत्री की तरह दहाड़ते क्यों नहीं हैं? उन्होंने अमेरिका के 50 करोड़ डालर के महापथ-निर्माण के प्रोजेक्ट को क्यों स्वीकार किया है और भारत के साथ लिपुलेख क्षेत्र के बारे में दब्बूपने का रुख वे क्यों अपनाए हुए हैं। जो ओली सीमा-विवाद को लेकर भारत से बातचीत के पक्षधर थे, अब उन्होंने इतने उग्र तेवर अपना लिये हैं कि उन्होंने भारत पर कुछ व्यंग्य ही नहीं कसे बल्कि अपने संविधान में संशोधन करके कुछ भारतीय क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा भी बता दिया। इतना ही नहीं, वे अब कानून यह बना रहे हैं कि जो भी नेपाली किसी भारतीय से विवाह करेगा, उस भारतीय वर या वधु को नेपाल की नागरिकता 7 साल बाद मिलेगी। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-नेपाल संबंध को रोटी-बेटी का रिश्ता कहा था, उसे ओली अब खटाई में डाल रहे हैं। ‘प्रचंड’ के लोग मौन रहकर और नेपाली कांग्रेस संसद में प्रस्ताव लाकर यह सिद्ध कर रही है कि ओली सरकार ने कई नेपाली गांव चीन को सौंप दिए हैं। ऐसे लचर-पचर प्रधानमंत्री को नेपाल क्यों बर्दाश्त कर रहा है। इसके अलावा सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नेताओं के उकसावे के कारण ओली सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरेाप भी लग रहे हैं। ऐसे में ओली अपने आप को अत्यंत उग्र राष्ट्रवादी सिद्ध करने में लगे हुए हैं। मुझे नेपाल केे कुछ सांसदों और मेरे मित्र मंत्रियों ने यह भी बताया कि अब ओली का ताजातरीन पैंतरा यह है कि नेपाली संसद में हिंदी बोलने और धोती-कुर्ता पहनने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। सांसदों को नेपाली भाषा बोलना और नेपाली वेषभूषा (टोपी, दाउरा और सुरवल) पहनना अनिवार्य होगा। अब से लगभग 28-30 साल पहले मैंने मधेसियों के नेता गजेंद्र नारायण सिंह और संसद के अध्यक्ष दमननाथ ढुंगाना से नेपाल की संसद में हिंदी और धोती-कुर्ता की छूट के लिए पहल करवाई थी। वे दोनों मेरे अच्छे मित्र थे। यदि ओली उसे खत्म करेंगे तो न सिर्फ नेपाल के लाखों मधेसी लोग उनके खिलाफ हो जाएंगे बल्कि ‘जनता समाजवादी पार्टी’, जिसमें पूर्व कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई और हिसिला यमी जैसे नेता भी हैं, उनका डटकर विरोध करेंगे। ओली जी, यह अच्छी तरह समझ लें कि उनका यह कदम 2015 की नाकाबंदी से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है। चीन उन्हें बचा नहीं पाएगा।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद् के अध्यक्ष हैं।)