नए आईटी नियमों का देश के मीडिया और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर भयावह प्रभाव होगा,प्रेस स्वतंत्रता का
गला घोंट दिया जाएगा
.संगठनों की वापस लेने की मांग…
नई दिल्ली:रिपोर्ट के अनुसार, विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर जारी बयान पर मानवाधिकार संगठन, मीडिया और तकनीकी अधिकार समूहों जैसे एक्सेस नाउ, एमनेस्टी इंटरनेशनल, कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, ह्यूमन राइट्स वॉच और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं.
इन संगठनों ने आईटी नियमों में ‘कठोर’ संशोधनों के माध्यम से ऑनलाइन सामग्री पर भारत सरकार के नियंत्रण के विस्तार को लेकर चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि इस कदम से नागरिक समाज पर भयावह प्रभाव पड़ेगा और पत्रकारीय स्वतंत्रता का गंभीर रूप से गला घोंट दिया जाएगा.
संगठनों ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 (आईटी नियम 2023) नामक 2021 के आईटी नियमों में नवीनतम संशोधनों को लेकर चिंता व्यक्त की है.
यह नियम ‘केंद्र सरकार के किसी भी कामकाज के संबंध में’ ऑनलाइन सामग्री को ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ के रूप में पहचानने के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्थापित एक फैक्ट-चेक इकाई (एफसीयू) को अधिकृत करते हैं. इसके बाद, सोशल मीडिया कंपनियां और इंटरनेट सेवा प्रदाता जैसे ऑनलाइन मध्यस्थ इस सामग्री को हटाने के लिए बाध्य होंगे।
संगठनों के बयान में कहा गया है कि आईटी नियम-2021 की ‘अभिव्यक्ति की आजादी पर हानिकारक प्रभाव, मीडिया की स्वतंत्रता और सरकार की ओर से जवाबदेही की कमी’ को लेकर व्यापक तौर पर आलोचना की गई थी, और सबसे सबसे हालिया संशोधन ‘केवल इन चिंताओं को बढ़ाने का काम करता है.’
इसमें यह भी कहा गया है कि ये परिवर्तन ‘ऐसे समय पर किए गए हैं जब प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा भारत में गंभीर हमले के अधीन है.’ इस संबंध में पत्रकारों पर हमले, धमकी, उत्पीड़न, सेंसरशिप, कठोर कानूनों में उन्हें जेल में डालने का जिक्र किया गया है. साथ ही, मीडिया घरानों पर केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी की भी बात कही गई है.
संगठनों ने नियमों को तत्काल वापस लेने की सरकार से गुहार लगाकर चेतावनी देते हुए कहा है, ये नियम ‘भारत सरकार और उसकी नीतियों की कोई भी और सभी वैध आलोचनाओं’ को दबाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
बयान में कहा गया है, ‘आईटी नियम 2023 सरकार को मनमानी, व्यापक और अनियंत्रित सेंसरशिप शक्तियां प्रदान करते हैं जो भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत निहित अभिव्यक्ति और विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता के अधिकारों को खतरे में डालती हैं.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘नियम प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों, लेखकों, कार्यकर्ताओं, नागरिक संगठनों, मानवाधिकार रक्षकों, कलाकारों, नेताओं व अन्य लोगों की स्वतंत्र रूप से ऑनलाइन बोलने की क्षमता को गंभीर रूप से खतरे में डालते हैं.’
बयान में कहा गया है कि ऑनलाइन भ्रामक सूचनाओं से लड़ने की आड़ में भारत सरकार ने स्वयं को यह तय करने की शक्ति दे दी है कि ऑनलाइन पोस्ट की गई कौन-सी सूचना फर्जी या भ्रामक है. इस संबंध में स्पष्ट कानूनी परिभाषा भी नहीं दी गई है. वास्तव में सरकार ने खुद को इंटरनेट पर सच्चाई का एकमात्र मध्यस्थ होने का अधिकार दे दिया है.
बयान में यह भी कहा गया है कि इन नियमों को भारतीय अदालतों के समक्ष कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और कुछ प्रावधानों पर रोक भी लगा दी गई है. इस संबंध में मद्रास हाईकोर्ट के बयान का भी जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है, ‘सरकार द्वारा मीडिया को नियंत्रित करने के लिए निरीक्षण तंत्र, मीडिया से इसकी स्वतंत्रता छीन सकता है और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ वहां नहीं बचेगा.’
पत्र में नियमों को तत्काल वापस लेने की गुहार के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने की मांग की गई है कि कोई भी कानून या नियम सिविल सोसाइटी और पत्रकारों सहित सभी हितधारकों के परामर्श से बनाए जाएं, साथ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को भी प्राथमिकता दी जाए.
[साभार: वायर न्यूज पोर्टल]