याज्ञवल्क्य शुक्ला:
महज 34 वर्षों के बाद भारत में पुनः नई शिक्षा नीति लागू किया जाना, सराहनीय फैसला है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। स्पष्ट रूप से शिक्षा को पुनः सर्वोपरि मानना इस परिवर्तन का मुख्य कारण है। शेष सभी बातें शिक्षा से नैसर्गिक रूप से आगे बढ़ेंगे।
नई शिक्षा नीति को इसरो प्रमुख रहे के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने तैयार किया है और पीएम मोदी ने 1 मई को इसकी समीक्षा की थी। विद्यालयी शिक्षा में 5+3+3+4 के मजबूत शैक्षणिक ढांचे से प्रत्येक बच्चे को प्रारम्भिक काल में ही आवश्यक आधार प्राप्त होनेवाला है। इसका मूल रूप से अभाव था। बचपन की देखभाल और शिक्षा-ECCE के अंतर्गत प्री प्राइमरी शिक्षा आंगनबाड़ी और स्कूलों के माध्यम से संचालित किए जाएंगे। शिक्षा की व्यापकता अनौपचारिक पारिवारिक शिक्षा से औपचारिक शिक्षा जुड़ जाए, इसकी बहुत जरूरत थी। पूर्व में परिवार में सीख रहे बच्चे विद्यालय की नई दुनिया में अचानक प्रवेश करते हुए अनभिज्ञ से लगते थे। अब प्रारम्भ के पांच वर्ष को फॉउंडेशन स्टेज के पांच वर्ष में स्थानीय, क्षेत्रीय या मातृभाषा को समान रूप से माध्यम बनाते अनौपचारिक पारिवारिक शिक्षा के माहौल से बच्चों को आगे के प्रीपेरेटरी स्टेज के लिए स्वाभाविक रूप से तैयार किया जा सकेगा। स्कूली शिक्षा तीन भाषा आधारित होगी जिसमे फॉरेन लैंग्वेज कोर्स भी शामिल होंगे। स्थानीय भाषा यानी मातृभाषा में शिक्षा की उपलब्धता के तहत 8 साल तक के बच्चे किसी भी भाषा को आसानी से सीख सकते हैं और कई भाषाएँ जानने वाले छात्रों को भविष्य में करियर में भी अच्छा स्कोप मिलता है। इसलिए उन्हें कम से कम तीन भाषाओं की जानकारी दी जाए।
भारत की क्लासिक भाषा की जानकारी के तहत कक्षा 6 से 8 तक छात्रों को भारत की भाषा और उसे जुड़े इतिहास व साहित्य-संसाधन से परिचित कराया जाएगा। समृद्ध भाषाओं को बनाए रखने के लिए ये जरूरी है। भारत की विविध भाषाओं को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है। शिक्षा के आदान-प्रदान में ऊपर से नीचे तक तकनीक के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गई है जो वर्तमान आवश्यकता के अनुकूल है।
नये पाठ्यक्रम के तहत नए तौर-तरीके से युक्त पहले 5 वर्ष तक के बच्चों को फाउंडेशन स्टेज में रखा जाएगा। उसके बाद के 3 साल के बच्चों को प्री-प्राइमरी स्टेज में रखा जाएगा। अगले 3 वर्ष वाले प्रिपेटरी या लैटर प्राइमरी में रहेंगे। मिडिल स्कूल के पहले 3 साल में छात्रों अपर प्राइमरी समूह में रखा जाएगा। 9वीं से 12वीं तक तक छात्र सेकेंडरी स्टेज में रहेंगे।
शिक्षकों की गुणवत्ता के लिए सेकंडरी लेवल तक शिक्षक पात्रता परीक्षा-TET लागू होना आवश्यक कदम है। राज्यों के लिए संस्था में सभी राज्यों में पठन-पाठन पर नज़र बनाए रखने के लिए स्वतंत्र ‘स्टेट स्कूल रेगुलेटरी बॉडी’ का गठन किया जाएगा। ये सभी राज्यों में अलग-अलग होगी। इसके चीफ शिक्षा विभाग से जुड़े होंगे। शिक्षक प्रशिक्षण के लिए इंटर के बाद 4 ईयर इंटेग्रेटेड बीएड के अलावा 2 ईयर बीएड या 1 ईयर बीएड कोर्स चलेंगे।
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से हटाए जाने की बातें सराहनीय है, सिर्फ चुनाव ड्यूटी लगेगी, बीएलओ ड्यूटी से शिक्षक हटेंगे, मध्याह्न भोजन से भी शिक्षकों को मुक्त किया जाएगा। स्कूलों में एसएमसी/एसडीएमसी के साथ एससीएमसी यानी स्कूल कॉम्प्लेक्स मैनेजमेंट कमेटी बनाई जाएगी। शिक्षक नियुक्ति में डेमो, स्किल टेस्ट और इंटरव्यू को भी शामिल शामिल किया जाना गुणवत्ता के लिए सार्थक पहल है। अब नई ट्रांसफर पॉलिसी आयेगी, जिसमें ट्रांसफर लगभग बन्द हो जाएंगे, ट्रांसफर सिर्फ पदोन्नति पर ही होंगे। इससे भ्रष्टाचार एवं शिक्षकों के साथ अन्याय बंद होगा।
ग्रामीण इलाकों में केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर स्टाफ क्वार्टर बनाए जाने की भी बातें की गई है। शिक्षा अधिकार अधिनियम-RTE को कक्षा 12 तक या 18 वर्ष की आयु तक लागू किया जाएगा। मिड डे मील के साथ हैल्थी ब्रेकफास्ट भी स्कूलों में दिया जाएगा।
विज्ञान और गणित को बढ़ावा दिया जाएगा, हर सीनियर सेकंडरी स्कूल में गणित और विज्ञान अनिवार्य होंगे। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद – NCERT देश में नोडल एजेंसी के रूप में महत्वपूर्ण नियामक बॉडी होगी। स्कूलों में राजनैतिक व सरकार का हस्तक्षेप लगभग समाप्त हो जाएगा यानी शिक्षा को उन्मुक्त रखा जाएगा।
विज्ञान और गणित को बढ़ावा दिया जाएगा, हर सीनियर सेकंडरी स्कूल में गणित और विज्ञान अनिवार्य होंगे। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद – NCERT देश में नोडल एजेंसी के रूप में महत्वपूर्ण नियामक बॉडी होगी। स्कूलों में राजनैतिक व सरकार का हस्तक्षेप लगभग समाप्त हो जाएगा यानी शिक्षा को उन्मुक्त रखा जाएगा।
उच्च शिक्षा में क्रेडिट बेस्ड सिस्टम लागू होगा जिससे कॉलेज बदलना आसान और सरल होगा। बीच में कोई भी कॉलेज आसानी से बदला जा सकता है। किसी भी तरह की कठोर प्रणाली दोषपूर्ण होती है तो शिक्षा में कठोर प्रणाली कैसे स्वीकार की जा सकती थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों को विषयों में चयन या परिवर्तन की सुविधा देकर प्रतिभाओं को नई उड़ान देने जैसा है।
शिक्षा का यूनिवर्सल एक्सेस का सपना पूरा होगा। हयूमैनिटिज़, आर्ट्स और साइंस के बीच कोई दीवार नहीं बनने देना प्रगतिशील कदम है। सरकार का मुख्य जोर शिक्षा में समानता पर है। साथ ही सभी को गुणवत्ता वाली शिक्षा से कैसे जोड़ा जाए, इसपर जोर दिया गया है। नए फ्रेमवर्क के जरिए 21वीं सदी में ज़रूरी स्किल्स पर जोर दिया गया है। साथ ही पर्यावरण, कला और खेल जैसे क्षेत्रों को भी प्राथमिकता दी गई है। शारीरिक शिक्षा को स्थान देते हुए फिजिकल सक्रियता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। खेल, योग, मार्शल आर्ट्स, व्यायाम, नृत्य और बागबानी सम्बंधित गतिविधियों में बच्चों की सक्रियता बढ़ाई जाएगी। स्थानीय शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च प्रपोज़ल्स की सफलता के आधार पर रिसर्च के लिए पर्याप्त फंड्स मुहैया कराए जाएँगे। सभी विषयों में रिसर्च को बढ़ावा दिये जाने की बात शिक्षा में अनुसंधान के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का झलक है।
(लेखक अभाविप झारखंड प्रदेश संगठन मंत्री हैं।)