देश में हर साल 1% की दर से खत्म हो रहा है पानी, 75 साल में 75% साफ

विश्व जल दिवस के मौके पर देश में मानव के इस्तेमाल किए जाने लायक पानी के गहराते संकट से लोगों को आगाह करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है।

आने वाले कुछ महीनों में फिर से देश के विभिन्न हिस्सों से पानी के लिए हाहाकार की खबरें आनी शुरू होंगी। इसे हमने अपनी आदत में शामिल कर लिया है। लेकिन, अगर हम ऐसे ही सोचते रह गए तो हमेशा यह भी नहीं रहेगा। हालात बहुत ही गंभीर हो सकते हैं। हम सावधान नहीं हुए तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। स्थिति की गंभीरता समझने के लिए यही जानना काफी है कि पिछले 75 साल में ही हमारी खपत के लिए जितना पानी होता था, उसका 75% हिस्सा हम इस्तेमाल कर चुके हैं। जागरूकता और जल संरक्षण के लिए हमारे सक्रिय प्रयास ही हमें और पूरी मानवता को बचा सकता है।

अगले 40 साल में पानी की कमी वाला देश हो सकता है भारत

भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता खतरनाक ठंग से कम हो चुकी है। 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब देश में प्रति व्यक्ति 6,042 क्यूबिक मीटर (1 क्यूबिक मीटर = 1,000 लीटर) पानी उपलब्ध था। लेकिन, 2021 में यह उपलब्धता मात्र 1,486 क्यूबिक मीटर रह गई थी। चिंता ये है कि आज देश में जिस तरह से पानी की खपत की जा रही है, आने वाले वर्षों में अप्रत्याशित संकट होना स्वाभाविक है। देश में जो भूमिगत जल और बाकी पानी के संसाधान हैं, जैसे कि नदियां, जल-धाराएं, झील, वेटलैंड या बड़े-बड़े जलाशय, सबकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर हालात यूं ही बने रहे तो आने वाले 40 वर्षों में भारत पानी की कमी वाले देशों में गिना जाएगा।

देश में हर साल 1% की दर से खत्म हो रहा है पानी

सीधे शब्दों में कहें तो 1947 के बाद 75 वर्षों में देश में प्रति व्यक्ति सालाना पानी की उपलब्धता में 75% की कमी हो चुकी है। यानि प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1% घटती जा रही है। इस लिहाज से तो मामला सिर्फ 25 वर्ष का ही बाकी रह गया है! इस सदी की शुरुआत में (2001) देश में प्रति व्यक्ति सालाना 1,816 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध होता था। लेकिन, 2031 तक यह घटकर सिर्फ 1,367 क्यूबिक मीटर रह जाने की संभावना है। जबकि, 2051 आते-आते भारत में एक व्यक्ति के लिए एक वर्ष में महज 1,140 क्यूबिक मीटर पानी बचेगा।

हर घर नल से जल का क्या होगा ?

2019 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक देश के हर घर तक टैप वॉटर पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया था। इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश ने इस मामले में बहुत ही अच्छी प्रगति की है। देश के 19.4 करोड़ (59%) ग्रामीण परिवारों में से 11.4 करोड़ तक टैप वॉटर पहुंचाया जा चुका है। संभावना है कि निर्धारित लक्ष्य अगले साल वादे के मुताबिक पूरा भी हो जाएगा। लेकिन, देश में जिस तरह से पानी खत्म होता जा रहा है, उसके चलते यह सवाल उठता है कि यह टैप वॉटर कब तक चल पाएंगे?

 

पानी की लापरवाह खपत बढ़ा रहा है संकट

1,486 क्यूबिक मीटर या करीब 15 लाख लीटर प्रति व्यक्ति सालाना पानी की उपलब्धता के साथ भारत दो साल पहले ही (2021) में पानी के दबाव वाली श्रेणी (water-stressed) में आ चुका है। 2051 के बाद अगर यह 1,000 क्यूबिक मीटर से कम हुआ तो यह पानी की कमी (water-scarce) वाली श्रेणी में आ जाएगा। खासकर पानी की खपत जिस लापरवाह तरीके से हो रही है, वह संकट को और बढ़ा रहा है।

क्या कहते हैं सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के आंकड़े ?

सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि भूमिगत जल के लापरवाह दोहन की वजह से जिन 7,089 यूनिटों का मूल्यांकन किया गया, उनमें से 260 या 4% गंभीर स्थिति में थे। जबकि 1,006 यूनिट या 14% का आवश्यकता से ज्यादा दोहन किया गया था। 2017 में आवश्यकता से ज्यादा दोहन किए जाने वाली यूनिट की संख्या बढ़कर 17% पहुंच चुकी थी। हालांकि, जल संरक्षण और संचयन के प्रयासों का लाभ भी मिला है, लेकिन दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और केरल में ऐसी यूनिट की संख्या अभी भी ज्यादा है।

जल संकट का यह भी है बड़ा कारण

विशेषज्ञों का कहना है कि साल भर में देश में 87% भूमिगत जल सिंचाई कार्यों के लिए निकाल लिया जाता है, उसकी क्षतिपूर्ति सिर्फ मानसून के समय ही हो पाती है। यह भूमिगत जल स्तर घटने की सबसे बड़ी वजह है। इसके अलावा जल निकायों का घनघोर अतिक्रमण और अनुपचारित अपशिष्ट जल को नदियों और जल-धाराओं में छोड़े जाने की वजह से भी सतह के जल संसाधन सिमटते जा रहे हैं।

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