देवी प्रत्यंगिरा: अथर्वण काली व अघोर लक्ष्मी का तांत्रिक और वैज्ञानिक स्वरूप

देवी प्रत्यंगिरा: अथर्वण काली व अघोर लक्ष्मी का तांत्रिक और वैज्ञानिक स्वरूप

 

लेखिका: डॉ. शिवानी दुर्गा (Occultist & Researcher)

 

देवी प्रत्यंगिरा एक रहस्यमयी, उग्र और अपराजिता देवी हैं, जिन्हें अथर्वण काली और अघोर लक्ष्मी के रूप में भी जाना जाता है। वे तंत्र के उच्चतम स्तर की देवी मानी जाती हैं, जिनकी साधना से अति दुर्लभ सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। उनके रूप में काली का विनाश, लक्ष्मी की समृद्धि, और सिंह की शक्ति — तीनों का संगम होता है।

 

तांत्रिक दृष्टिकोण

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देवी प्रत्यंगिरा का वर्णन तंत्रशास्त्रों में एक ऐसे स्वरूप के रूप में किया गया है जो भूत, प्रेत, ग्रह, तांत्रिक आक्रमण, काले जादू और शत्रु बाधा को तत्काल प्रभाव से नष्ट कर सकती हैं।

उनकी आराधना मुख्यतः रात्रि में की जाती है, विशेषकर अमावस्या, चतुर्दशी या ग्रहणकाल में।

 

मुख्य तांत्रिक विशेषताएँ:

• उनका मुख सिंहवत् होता है — जो क्रोध, वीरता और ब्रह्मांडीय गर्जना का प्रतीक है।

• वे माँ कालरात्रि और भद्रकाली की उग्रतर ऊर्जा हैं, जो नकारात्मक शक्तियों का समूल नाश करती हैं।

• उन्हें अघोर लक्ष्मी भी कहा जाता है, क्योंकि वे संपत्ति, शक्ति और सुरक्षा का एक संयुक्त रूप हैं।

 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

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आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से, प्रत्यंगिरा देवी की साधना ऊर्जा संरक्षण, कंपन (vibrational frequency) और मनोवैज्ञानिक शुद्धिकरण का कार्य करती है।

 

1. कंपन सिद्धांत (Frequency Principle):

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प्रत्यंगिरा साधना विशेष ध्वनि तरंगों (बीज मंत्रों) द्वारा ब्रह्मांडीय कंपन को आकर्षित करती है, जिससे एक ऊर्जा क्षेत्र (energy shield) निर्मित होता है जो बाह्य मानसिक या भावनात्मक हमलों से रक्षा करता है।

 

2. न्यूरो-साइकोलॉजिकल प्रभाव:

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उनकी साधना का मंत्र मन और मस्तिष्क को ऐसी गहराई से सक्रिय करता है कि डर, क्रोध, चिंता जैसे मनोविकार स्वतः समाप्त होने लगते हैं।

 

3. क्वांटम ऊर्जा और तंत्र

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तंत्र और क्वांटम भौतिकी दोनों मानते हैं कि विचार एक ऊर्जा तरंग है। जब साधक प्रत्यंगिरा के साथ एक विशेष इरादा (intention) के साथ जुड़ता है, तो वह तरंग ब्रह्मांड के उच्च आयामों तक जाती है और वापस आकार ग्रहण करती है।

 

क्यों कहा जाता है ‘अथर्वण काली’ और ‘अघोर लक्ष्मी’?

• अथर्वण काली: क्योंकि वे अथर्ववेद में वर्णित रक्षात्मक शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं।

• अघोर लक्ष्मी: क्योंकि वे पारंपरिक लक्ष्मी की भांति मृदु नहीं, बल्कि साहसी, तांत्रिक और विकराल रूप में समृद्धि और रक्षण देती हैं।

 

निष्कर्ष

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देवी प्रत्यंगिरा एक ऐसी शक्ति हैं जो तांत्रिक साधना के माध्यम से न केवल शत्रु नाश करती हैं, बल्कि साधक को आध्यात्मिक उन्नयन, ऊर्जा संतुलन और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। वे एक जीवित ऊर्जा स्रोत हैं — जिन्हें अगर वैज्ञानिक समझ और श्रद्धा के साथ साधा जाए, तो जीवन में चमत्कारी रूपांतरण संभव है।

 

लेखिका: डॉ. शिवानी दुर्गा

(Occultist & Researcher)

“प्रत्यंगिरा केवल देवी नहीं, एक चेतन ऊर्जा हैं —

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