सतीश एलिया:
दिल्ली में दंगा और दो दर्जन लोगों की मौत के लिए एक नहीं कई जिम्मेदार हैं। शरणार्थियों को नागरिकता देने के कानून में संशोधन को लेकर एजेंडा व सियासत चलाने वाले, सेक्युलर और राष्ट्रवादी बताकर सोशल मीडिया की कंदराओं में सुरक्षित बैठ माहौल खराब करने वाले कथित बुद्धिजीवी, संसद में नागरिकता संशोधन कानून पर बहस के दौरान मूकदर्शक बने रहे सियासी नेता जो बाहर निकलकर सड़क पर विरोध का आह्वान करने लगे, खुफिया तंत्र और गृह मंत्रालय। अपनी ताकत बनाए रखने के सियासी इंतजाम करने में जुटे लोग देश को दुनिया का सिरमौर बनाने के सपने दिखाने के बावजूद इसे 1947 के हालात में ले जाने वाले बयान देने में आगे रहे।
दिल्ली पुलिस की नाकामी तो जगजाहिर है। 1984 में इस शहर ने जो कत्लेआम देखा, वैसा 1947 और उससे पहले औरंगजेब और नादिरशाह के वक्त ही देखा होगा। 1984 के हालात और अब के हालात में फर्क इतना है कि तब की सियासत आतंकी हिंसा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का बदला निर्दोष सिखों से लिए जाने को गुनाह नहीं मान रही थी। अबकी सत्ता से जुड़े लोग भड़काऊ भाषण देकर आग में घी डालते रहे, अलबत्ता सत्ता ने इसकी तरफदारी नहीं की। अदालत को भी कहना पड़ा कि दिल्ली में 1984 जैसे हालात नहीं बनने देंगे।
सत्ताधारी दल दिल्ली को जलने देने और हालात पहले ही नहीं भांप लेने या रोकने की नाकामी मानने की बजाए 1984 को याद दिलाने की मुद्रा में आ गया। लेकिन जिनके घर, कारोबार जल गए, घर के चश्मो चिराग शवों में बदल गए, उनका क्या? किसी भी ऐसे देश में जो अहिंसा के विश्व प्रतीक महात्मा गांधी के 150 वें जन्म वर्ष को धूमधाम से मना रहा हो, वहां की राजधानी में ऐसी हिंसा क्या दर्शाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे में जिस दिन वे दिल्ली में थे, यह साजिश थी तो सरकार क्या फेल नहीं हुई? दुनिया के सामने शूरवीरता दिखाना और घर आए मेहमान के सामने ही खूनी होली हो जाना किसकी असफलता है?
असल मुजरिम सामने लाए सरकार
संसद से पारित और राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद लागू नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भ्रम फैलाने से लेकर दंगे करने तक की साजिश में शामिल लोगों और जमातों को बेनकाब करने से सरकार को किसने रोका है। यह जरूरी है वर्ना देश के बाकी शहरों में ऐसा नहीं हो सकता इसकी क्या गारंटी है? इसलिए जरूरी है कि सरकार पक्की और यकीन करने लायक जांच अतिशीघ्र पूरी कर जनता के सामने हकीकत पेश करे। सत्ताधारी दल जिन-जिन पर आरोप लगा रहा है, उन सबकी भूमिका और उनपर आरोपों को पुष्ट किया जाना भी जरूरी है।
सत्ताधारी दल भाजपा के लोग बदनाम पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से लेकर हाल ही में दिल्ली में दोबारा सत्ता में आई आम आदमी पार्टी से जुड़े कथित नेताओं के नाम पर ले रही है।
सत्ताधारी दल भाजपा के लोग बदनाम पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से लेकर हाल ही में दिल्ली में दोबारा सत्ता में आई आम आदमी पार्टी से जुड़े कथित नेताओं के नाम पर ले रही है।
पीड़ितों को त्वरित मदद और न्याय मिले क्योंकि दिल्ली में 1984 के सिख नरसंहार पीड़ित 36 साल बाद भी न्याय के लिए भटक रहे हैं। उनके दोषी न केवल सांसद और मंत्री बनते रहे। ताजा दंगों में भी सियासी बयानबाजी से लेकर साजिश तक के आरोप कई नेताओं पर लगे हैं। इसलिए पीड़ितों को त्वरित मदद और जल्द न्याय मिलने के साथ ही इसके साजिशकर्ताओं को भी सजा जल्द मिले। उन्हें राजनीतिक लाभ के हालात नहीं बनने दिए जाएं, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)