तीन साल सात महीने बाद भी डिप्टी स्पीकर का पद रिक्त

 

एक ग़लत मिसाल है लोकसभा उपाध्यक्ष नियुक्त न करना
तीन साल सात महीने बाद भी डिप्टी स्पीकर का पद रिक्त
नई दिल्ली: लोकसभा में करीब चार साल से उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) की गैर-मौजूदगी केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच विवाद की ताजा वजह बन गई है.
जहां कांग्रेस ने दावा किया कि निचले सदन (लोकसभा) में डिप्टी स्पीकर का न होना ‘‘असंवैधानिक’ है, वहीं सरकारी सूत्रों ने कहा कि डिप्टी स्पीकर का न होना किसी भी तरह से सदन की कार्यवाही में बाधा नहीं डालता है और डिप्टी स्पीकर की कोई ‘तत्काल आवश्यकता’ नहीं है.

वर्तमान लोकसभा की पहली बैठक हुए करीब तीन साल सात महीने बीत चुके हैं. संविधान के अनुच्छेद 93 और 178 के अनुसार, सदन को जल्द से जल्द दो पीठासीन अधिकारियों का चुनाव करने की आवश्यकता है.हालांकि, 17 जून 2019 को वर्तमान लोकसभा की बैठक के तुरंत बाद अध्यक्ष (स्पीकर) ओम बिड़ला चुने गए थे, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद अभी भी खाली है.

नियमों के अनुसार, निर्वाचित स्पीकर को अपनी नियुक्ति के लगभग तुरंत बाद अपने डिप्टी के चुनाव की सूचना देनी चाहिए. हालांकि, बिड़ला ने ऐसा करने से परहेज किया है.

द वायर से बात करते हुए लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि माना जाता है कि बिड़ला ने डिप्टी स्पीकर चुनने का निर्णय लिया था, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह केंद्र सरकार का निर्णय है, जो यह सुनिश्चित करता है कि डिप्टी स्पीकर चुना जाए.उन्होंने कहा, ‘लोकसभा के नियमों के अनुसार स्पीकर, डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय करते हैं. लेकिन वास्तव में यह सरकार है जो सभी दलों के साथ विचार-विमर्श करती है और डिप्टी स्पीकर की भूमिका के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार तय करती है.’

परंपरागत रूप से सरकार डिप्टी स्पीकर के पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करती है. उदाहरण के लिए, शिरोमणि अकाली दल के चरनजीत सिंह अटवाल ने 2004-09 के दौरान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-1 के सत्ता में रहने के दौरान पद संभाला था.

इसी तरह 2009-14 के बीच भारतीय जनता पार्टी के करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर थे. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के एम. थंबीदुरई ने नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान कुर्सी संभाली थी.

अपने दूसरे कार्यकाल में यह मोदी सरकार द्वारा एक विपक्षी सदस्य को बिड़ला के डिप्टी के रूप में नियुक्त नहीं करने और निचले सदन का नियंत्रण मजबूती से अपने हाथों में रखने का एक रणनीतिक कदम हो सकता है.

एक केंद्रीय मंत्री ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि डिप्टी स्पीकर के लिए ‘तत्काल आवश्यकता’ नहीं है, क्योंकि सदन की प्रक्रियाओं के अनुसार ‘विधेयक पारित किए जा रहे हैं और चर्चा हो रही है.’

हालांकि, मंत्री ने यह भी कहा कि बिड़ला की अनुपस्थिति में ‘नौ सदस्यों का एक पैनल है, जिसमें विभिन्न दलों से चयनित वरिष्ठ और अनुभवी लोग हैं, जो सदन चलाने के लिए अध्यक्ष की सहायता के लिए अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं.’

पैनल में भाजपा की रमा देवी, किरीट पी. सोलंकी और राजेंद्र अग्रवाल शामिल हैं; कांग्रेस के कोडिकुन्निल सुरेश; द्रविड़ मुनेत्र कषगम के ए. राजा; वाईएसआरसीपी से पीवी मिधुन रेड्डी; बीजू जनता दल के भर्तृहरि महताब; रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एनके प्रेमचंद्रन और तृणमूल कांग्रेस के काकोली घोष दस्तीदार शामिल हैं.हालांकि, आचार्य अपने हालिया लेख में कहते हैं कि ऐसी धारणा बना दी गई है कि डिप्टी स्पीकर का कार्यालय अनिवार्य नहीं है, लेकिन कार्यालय का इतिहास तो कुछ और ही कहता है.

वह इस बात पर जोर देते हुए कि सदन चलाने के लिए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, लिखते हैं, ‘डिप्टी स्पीकर के कार्यालय का इतिहास 1919 के भारत सरकार अधिनियम की याद दिलाता है, जब उन्हें डिप्टी प्रेसिडेंट कहा जाता था, क्योंकि स्पीकर को केंद्रीय विधानसभा के प्रेसिडेंट के रूप में जाना जाता था. हालांकि, एक डिप्टी स्पीकर का मुख्य कार्य स्पीकर की अनुपस्थिति में विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना और चुनिंदा समितियों की अध्यक्षता करना आदि था, स्पीकर के साथ सदन चलाने की जिम्मेदारियों को साझा करने और नई समितियों का मार्गदर्शन करने के लिए इस पद को आवश्यक माना गया था.’

उन्होंने कहा कि डिप्टी स्पीकर के पास स्पीकर के समान शक्तियां होती हैं और स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन के कामकाज के लिए जिम्मेदार एकमात्र संवैधानिक प्राधिकारी होता है.

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