*दोस्तों ! भाजपा और देश के नामी गिरामी नेता अमित शाह जयपुर आए हुए हैं ।प्रधानमंत्री मोदी जी के बाद उनका अचानक बिना पूर्व कार्यक्रम के आ धमकना लोगों को चौंका रहा है। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग इसे मोदी की “मंच -कथा” से जोड़ रहे हैं। कह रहे हैं कि मोदी ने पिछले दिनों वसुंधरा के साथ जो बेरुखी मंच पर दिखाई उससे वसुंधरा और उनके समर्थकों के बीच भयंकर विरोध शुरू हो गया है । उसे डैमेज कंट्रोल के लिए अमित शाह को भेजा गया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि भाजपा ने अभी अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट को मंजूरी देने के लिए उनको बुलाया है यानी जितने मुंह उतनी बात!! तो फिर वही सवाल!! कि आख़िर क्यों दिल्ली से चलकर जयपुर की हवाई यात्रा करनी पड़ी अमित शाह को ❓️
*दोस्तों यह तो ज़ाहिर है कि यदि मामला सिर्फ़ उम्मीदवारों की पहली लिस्ट का होता तो सियासती दोनों “भाई लोग ” लिस्ट दिल्ली मंगवा कर भी फाइनल कर सकते थे ।उसके लिए अमित शाह को अपना क़ीमती समय ज़ाया करने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती!! मामला तो कोई और ही है!! वह मामला क्या है❓️ इसका सीधा जवाब तो मेरे पास भी नहीं ! मगर मेरा क़यास है कि पार्टी के सर्वेसर्वा दोनों भाई भाजपा चुनाव से पहले पार्टी में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं ! पार्टी में मजबूत दिखाई देने वाले यह दोनों ही नेता पार्टी के अंदर अपने वजूद की दीवारों को खोखला होता महसूस कर रहे हैं। उन्हें पार्टी के अंदर ही सर उठाने वाले नेताओं से तकलीफें हो रही हैं। तो क्या बाहर से मजबूत दिखाने के लिए ये दोनो नेता अंदर से ढह रहे हैं❓️
*मेरा निजी मत है, जो इतिहास के पन्नों को पढ़ने से पुख्ता हो रहा है। मेरा दावा है कि इतिहास भाजपा के अंदर तानाशाह होते जा रहे नेताओं को डरा रहा है। धमका रहा है।
*कर्नाटक की हार के बाद अब मध्य प्रदेश! छत्तीसगढ़ ! और राजस्थान के चुनाव में पार्टी हार जाने के मुहाने पर खड़ी दिखाई दे रही है। ऐसे में कुम्भ के मेले में बिछड़े हुए इन भाईयों का पूरा ध्यान इन राज्यों को बचाने से अधिक 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी राजगद्दी और वजूद बचाने का है। इन दोनों भाइयों का पूरा ध्यान लोकसभा चुनाव तक अपना जादू और वर्चस्व बरकरार रखने का है।
*दोनों ही नेताओं को पता है कि इतिहास के साथ उन्होंने कब और कैसा सलूक़ किया❓
*तो चलिए 10 साल पहले के इतिहास का मैं आपको भी गवाह बना देता हूं ।भाजपा में 10 साल पहले जो हुआ वह अब इन कुम्भ के मेले में बिछड़े भाइयों के ज़हन में आ रहा है ।उन्हें अपने पांव के नीचे से ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है । आज हालत इतनी पतली हो गयी है कि पार्टी को मध्य प्रदेश में सात सांसद और एक महासचिव को उम्मीदवार बनाना पड़ रहा है।
*तो मित्रों!! विगत 13 सितंबर 2013 , भाजपा के इतिहास से जुड़ा वह पन्ना है जो यह बताता है कि किस तरह आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी से बर्खास्त किए जाने तक की तैयारी हो गई थी !!
*भाजपा की नींव रखने से लेकर उसकी भव्य इमारत तैयार करने वाले नेता माननीय लाल कृष्ण आडवाणी से जुड़ा है यह इतिहास। 2002 में जब गुजरात के दंगे हुए उसके बाद क्या हालात पैदा हुए उन पर भाजपा के बागी नेता यशवंत सिन्हा ने काफी कुछ रोशनी डाली थी ।यशवंत सिन्हा ने बताया था कि जब गोवा में भाजपा की कार्य समिति की बैठक हो रही थी उससे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने यह तय कर लिया था कि गोवा की कार्य समिति में नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगेंगे। इस्तीफा नहीं देते हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा । वह वक्त था जब भाजपा के शिल्पी लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने ही साथी अटल बिहारी वाजपेई जो प्रधानमंत्री थे, उनसे कहा कि नहीं अगर नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगा गया या बर्खास्त किया गया तो मैं गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।
*लालकृष्ण आडवाणी के नरेंद्र मोदी के पक्ष में उतरने से ही मोदी गुजरात में क़ायम रहे।
*इतिहास बदला ।भाजपा का जनाधार दिल्ली पर क़ाबिज़ हुआ। इतिहास की वह तारीख़ 13 सितंबर 2013 जिस दिन प्रधानमंत्री के लिए नरेन्द्र मोदी का नाम प्रस्तावित हुआ। उस वक्त बीजेपी में आडवाणी सबसे बड़े नेता थे । उन्होंने खुल कर मोदी के नाम का विरोध किया। वह नेता जिन्होंने मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए अटल बिहारी जी को अपने गृहमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की बात कह दी ज़रा सोचिए कि मोदी के प्रधानमंत्री बनाए जाने के विरोधी क्यों हो गए❓️आखिर कुछ तो वज़ह रही होगी। आप शायद यह सोच सकते हैं कि आडवाणी में स्वयं प्रधानमंत्री बनने की दमित इच्छा होगी मगर ऐसा भी नहीं था। पी एम फेस के लिए उन्होंने तीन नेताओं के नाम सुझाए थे । नितिन गडकरी! राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज ! ये तीन नाम मुख्य रहे। तब एक नाम और चर्चा में आया । शिवराज सिंह चौहान का जो आज मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री हैं मगर उनको भी आने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री की रेस से बाहर किए जाना तय लग रहा है । आडवाणी की नाराज़गी का कारण इन नामों को नज़रअंदाज़ किया जाना था।
*मित्रों! यशवंत सिन्हा आज कहां हैं❓️आडवाणी जी, राजनाथ सिंह जी का दर्ज़ा क्या है❓️सुषमा स्वराज ने किस तरह अपना सम्मान बचाए रखा❓️यह सब आपसे छिपा नहीं।
*भाजपा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का क़द फ़िलहाल ख़ुद के दम पर मज़बूत बना हुआ है मगर उनको भी चाहने वाले अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं! ऐसे में सोचा जा सकता है कि उनके साथ क्या सियासती सलूक़ हो सकता है?
*राष्ट्रीय नेता नितिन गडकरी किन किन की आंखों में चुभे हुए हैं ये सब जानते हैं।वसुंधरा जी भी आज कितनी कुंठाओं में धकेली जा रही हैं सर्वविदित है।
*तो दोस्तों! भाजपा का जनाधार खिसक रहा है और मोदी जी अपने चेहरे के मोह से उभर नहीं पा रहे! यहाँ आपको जयपुर की हाल ही हुई रैली की भीड़ के बारे में भी बता दूँ। रैली भीड़ की दृष्टि से तो क़ामयाब थी मगर उनके भाषण को सुनने वालों का मानना है कि वह प्राणोतेजक तो था ही नहीं बल्कि कमज़ोर था।
*मध्यप्रदेश में हुई मोदी जी की सभा में दस लाख लोगों के पहुंचने का दावा किया गया मगर मीडिया कह रहा है कि भीड़ के लिहाज़ से सभा फ्लॉप रही।
*तो क्या मोदी जी अपने चेहरे के खोते हुए आकर्षण से चिंतित हो चले हैं❓️तो क्या वह हर चमकने वाले चेहरे को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगे हैं❓️क्या उनके इस मानसिक उद्वेग ने उनको इतना ज़िद्दी और सावधान बना दिया है❓️सवाल कई हों मगर जवाव एक ही है कि इस तरह से तो कितने ही नेताओं की सियासती बलि ले ली जाएगी।हो सकता है आज यह सम्भव भी हो जाए मगर वक़्त की हैसियत से ज़ियादा किसकी हैसियत हो सकती है❓️ गारंटी की गारंटी लेने वालों की गारंटी वक़्त के सामने क्या होती है यह राजस्थान के वे लोग जानते हैं जिन्होंने कहावत सुनी हो गारंटी गई दही के गांव में।