हाल में ही सरकार ने जीएसटी में एक महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए साफ कर दिया कि 1 जनवरी 22 से आपको इनपुट का सिर्फ उतना ही क्रेडिट मिलेगा जितना पोर्टल पर दिख रहा है और इससे ज्यादा लिए गए इनपुट की रिकवरी के लिए कर अधिकारी को पूरे अधिकार दे दिए गए हैं और हम जानते हैं जब टैक्स आफिसर दुकान पर आता है तो बात सिर्फ़ टैक्स रिकवरी तक सीमित नहीं रह जाती.
आनलाइन पोर्टल बनाया ही इसलिए गया है कि व्यापारी और अधिकारी का कोई सीधा संवाद न हो मगर ऐसा लगता है कि सरकार फिर पुराने ढर्रे पर जाने मजबूर हो रही है. इसका कारण भी है कि हमारा तौर तरीका सरकारी पोर्टल से अभी भी कोसों दूर है और हमारी व्यापारिक स्थितियां आनलाइन के समकक्ष नहीं है.
सभी व्यापारिक चेम्बर्स और अर्थशास्त्री इस बात पर सरकार को चेतावनी भी रहे थे कि देश अभी जीएसटी और आनलाइन सिस्टम के लिए तैयार नहीं है मगर इसको अनसुना करते हुए सभी आनलाइन प्रक्रिया लागू कर दी गई.
आनलाइन लागू करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इसकी प्रक्रिया सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक और आधारभूत ढांचे के हिसाब से धीरे धीरे देश में ढलती तो शायद सरकार को इतने कढ़ाई कानूनों और अनुपालनों में नहीं करनी पड़ती.
पिछले दिनों सरकार ने कई उत्पादों को इवे बिल में शामिल करके कढ़ाई करने का प्रयास किया. इसके पहले सभी व्यापारियों को 50 लाख रुपये से ऊपर की खरीद बिक्री पर टीडीएस/ टीसीएस के नियम के साथ कई अन्य अनुपालनों का लागू करना, कैश पर और कढ़ाई करना, आदि सिर्फ इसलिए ताकि आनलाइन पोर्टल या सिस्टम व्यवस्था को सही साबित कर सकें.
पर हम पाऐंगे कि सरकार का संघर्ष आगे भी आनलाइन को सही साबित करने का जारी रहेगा पर यह सिस्टम देश सहन कर पाएगा या नहीं क्योंकि यह भविष्य बताएगा, लेकिन कोई माने या न माने इस बात को सभी मानते हैं कि फिलहाल आनलाइन सिस्टम हमारे देश के डीएनए से मैच़ नहीं कर रहा है.
इसका जीवंत उदाहरण हाल में ही की गई आयकर रेड यूपी के एक बड़े व्यवसायी के ठिकानों पर, जहाँ पर न केवल बड़ी मात्रा में कैश का उपयोग मिला, साथ ही मुखौटा कंपनियों और फर्जी बिलों पर व्यापक स्तर पर इस्तेमाल.
साफ है सरकार कर कानूनों पर जिस नीति निर्धारण की बात कर रही है, वो खामियों से भरें है. देश के तौर तरीकों से कोसों दूर हैं. मूलभूत सिद्धान्तों को कहीं न कहीं भूला जा रहा है. तीन मुख्य सिंद्धांत आनलाइन सिस्टम में शामिल करने होंगे जो ये छापे हमें सिखलाते है:
- कैश लेनदेन को हमारी अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा मानते हुए इसमें लेनदेन को नियमित मानते हुए इस बात पर जोर देना होगा कि ये सभी लेनदेन रिकॉर्ड प्रक्रिया के हिस्सा बनें.
- कंपनियों, फर्मों, इत्यादि के रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को मजबूत बनाना ताकि फर्जी लोग इनका हिस्सा न बन सकें. किसी भी तरह का व्यापारिक विभागीय रजिस्ट्रेशन उन्हीं का होना चाहिए जो अपनी आयकर विवरणी भरते हो और जिनकी आय 5 लाख रुपये से अधिक हो. विभाग को नियम बनाने होंगे कि रजिस्ट्रिकृत संस्थायें समय समय पर अपने रिकॉर्ड सबमिट करें.
- फर्जी इनवायसिंग और बिलिंग रोकने के लिए अनुपालन नियमों को सरल बनाते हुए टैक्स दरों की तर्कसंगत बनाने पर काम करना पड़ेगा. आनलाइन के साथ साथ आफलाइन प्रक्रिया को भी सिस्टम में ढालना पड़ेगा. लोगों को वैकल्पिक व्यवस्था देनी होगी तभी सिस्टम मज़बूत होगा.
उम्मीद करते हैं सरकार इन छापों में मिली खामियों से सीख लेते हुए आने वाले बजट में आनलाइन सिस्टम में मूलभूत सिद्धान्तों का समावेश कर देश के डीएनए के साथ कर कानूनों की तर्कसंगता पर भी काम करेगी.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर