भाजपा ने नेता सिंधिया समर्थकों को तरजीह देने को लेकर कितने नाराज हैं, इसका अंदाजा दो दिन पहले भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव की कही एक बात से लगाया जा सकता है. राव नवनियुक्त प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक लेने दो दिन पहले इंदौर पहुंचे थे. भाजपा की नवगठित कार्यकारिणी में सिंधिया समर्थकों को कम स्थान दिए जाने संबंधी संवाददाताओं के सवाल पर मुरलीधर राव (Muralidhar Rao)एक तरह से लगभग उखड़ ही पड़े और बोले ‘यह बात ध्यान में रखिए कि हमने अपने बरसों पुराने और अनुभवी नेताओं को पीछे करते हुए सिंधिया के साथ आए नेताओं को मंत्री बनाया है. इस पर कुछ लोग ऐसा भी कह रहे हैं कि शिवराज सरकार में संतुलन कम है और सिंधिया के साथ भाजपा में आए लोग मंत्रिमंडल में ज्यादा हैं.’ क्या हमारे उन सभी कार्यकर्ताओं को भाजपा के नवगठित प्रदेश संगठन में मौका मिल गया, जिन्होंने जी-तोड़ मेहनत करते हुए राज्य में भाजपा के एक करोड़ सदस्य बनाए हैं. मुरलीधर राव के यह तेवर देख जब मीडिया के लोग थोड़ा चौंके तो राव ने बात को संभालते हुए कहा कि दरअसल यह किसी नेता को भाजपा में कम या ज्यादा तबज्जो दिए जाने का मुद्दा ही नहीं है. जो भाजपा में आ गया, उसे तो हम अपना मान चुके. सिंधिया के साथ आए नेताओं में किसी तरह की असुरक्षा की भावना नहीं है. सिंधिया भाजपा में आ गए, तो हम यह मानते हैं कि पूरी भाजपा के नेता हैं. बता दें कि संगठन की इस महत्वपूर्ण पहली बैठक में सिंधिया को भी नहीं बुलाया गया था.
उपचुनावों के दौरान भी टकराहट देखने को मिली थीबता दें कि पिछले साल सिंधिया के दो दर्जन समर्थकों ने दलबदल कर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार गिरा दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे. पिछले साल उपचुनाव के दौरान भी सिंधिया समर्थक नेताओं को टिकट देने पर भाजपा में कई जगह बगावत जैसी स्थिति निर्मित हो गई थी, तब जैसे तैसे आरएसएस ने दखल देकर बागी तेवर वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाया था. इसके बाद सिंधिया को अपने समर्थकों को शिवराज मंत्रिमंडल में जगह दिलाने के भोपाल से दिल्ली तक एड़ी चोटी का जोर कई बार लगाना पड़ा. हाल ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक कथन गौर करने लायक है, जिसके कई अर्थ निकाले जा सकते हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी दादी की परंपरा को मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराई थी. यानी कांग्रेस की सरकारों को अलग-अलग समय में गिराने वाला पूरा सिंधिया वंश आज भाजपा में है. लोग इसका एक अर्थ निकालते हैं कि धोखा देने और स्वार्थ के लिए दलबदल करना सिंधिया के डीएनए में है.
निकाय चुनाव में फिर घमासान के आसार
सिंधिया कांग्रेस में थे, तो उनका अलग सम्मान था. वो शायद अब भाजपा में नहीं मिल रहा, चाहे मंत्री बनवाना हो या संगठन में अपनों को जगह दिलवाना, बहुत ज्यादा उनको तवज्जो नहीं दी जा रही. आने वाले नगरीय निकायों के चुनावों में हो सकता है कि सिंधिया समर्थकों और भाजपा के बीच एक नया घमासान देखने को मिले.
कांग्रेस अब मजे ले रही
भाजपा में सिंधिया की स्थिति देख कांग्रेस मजे ले रही है. हाल ही कांग्रेस प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा ने अपने एक बयान में तंज कसते हुए कहा, ‘भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में श्रीअंत (श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया) नहीं. प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने कह दिया कि उनके लोगों के कारण हमारे लोग मंत्री नहीं बन पाए. मंत्री तुलसी सिलावट को बैठक में तय समय से पहले आने पर रोक दिया गया. प्राइवेट कंपनी के सीईओ और उनके लोगों को भाजपा अपना मान नहीं रही है. देखिए आगे-आगे होता है क्या…? (नोट: यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)