ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश

 HC के फैसले पर लगी अंतरिम रोक; फिलहाल कार्बन डेटिंग नहीं

 

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सर्वे वाले आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद मस्जिद में मिले ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग फिलहाल नहीं होगी।

किसने दाखिल की थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने याचिका दाखिल की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पहले अपने फैसले में ASI को ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग करने का आदेश दिया था। ताकि यह पता चल सके कि मस्जिद में जो संरचना मिली है, वो शिवलिंग है या कुछ और।

सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के लिए राजी हो गया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस ‘शिवलिंग’ की उम्र का निर्धारण करने के लिए कार्बन डेटिंग सहित ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ कराने का आदेश दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘शिवलिंग’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और हिंदू याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किए। पीठ ने कहा- “चूंकि विवादित आदेश के निहितार्थों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए, इसलिए आदेश में संबंधित निर्देशों का कार्यान्वयन अगली तारीख तक स्थगित रहेगा।”

सर्वे के बाद ‘शिवलिंग’ का चला था पता
पिछले साल 16 मई को मस्जिद में कोर्ट के आदेश के बाद हुए सर्वेक्षण में यह ‘शिवलिंग’ मस्जिद परिसर में पाया गया था। इस संरचना को हिंदू पक्ष द्वारा ‘शिवलिंग’ और मुस्लिम पक्ष द्वारा ‘फव्वारा’ होने का दावा किया गया है। ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में है और कई सालों से इसे लेकर विवाद है।

अब तक क्या-क्या हुआ
इस मामले की शुरुआत अगस्त 2021 से हुई, जब पांच महिलाओं ने ज्ञानवापी परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी की नियमित रूप से पूजा करने के लिए वाराणसी के सिविल कोर्ट में अर्जी दायर की। इसके बाद अप्रैल 2022 में मस्जिद परिसर का सर्वे करने का आदेश दिया। 14 मई को सर्वे शुरू हुआ। 19 मई को टीम ने सर्वे की रिपोर्ट को अदालत में सौंपा। इसी सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष ने शिवलिंग का दावा किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट, जिला अदालत और इलाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचते रहा है।

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