जो हम जीते हैं, वही बच्चे सीखते हैं ।।

 

आपके बच्चों के पास अच्छी बुद्धि है पर इसी बात से संतोष मत कर लीजिए, उसे बुद्धि के साथ-साथ अच्छे संस्कारों से अवश्य सिंचित करिए। बच्चों को सिखायें नहीं करके दिखायें, इससे वो जल्दी सीख जाते हैं। बच्चे वो नहीं करते जो आप कहते हैं, बच्चे वो करते हैं जो आप करते हैं। चाहकर भी आप अपने बच्चों से अपने पैर नहीं छुआ सकते इसके लिये पहले आपको स्वयं अपने माता-पिता के पैर प्रतिदिन छूने होंगे।जो बात जीभ से कही जाती है उसका प्रभाव ज्यादा नहीं होता, जो बात जीवन से करके दी जाती है उसका ज्यादा प्रभाव होता है। अच्छी बातें केवल चर्चा का विषय नहीं हों वो चर्या ( आचरण ) का विषय जरूर बनें। आप चिल्लायेंगे तो बच्चे भी चिल्लाना सीख जायेंगे।

अपने बच्चों को केवल जीविका निर्वहन की ही शिक्षा न दें, बल्कि साथ साथ अच्छा जीवन जीने की भी शिक्षा दें। एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण मंदिर बनाने जैसा ही है।

 

*अनुशिष्ट अस्मि मात्रा च पित्रा च विविध आश्रयम्।*

*नास्मि संप्रति वक्तव्या वर्तितव्यम् मया॥*

( वा. रा. २/२७/१० )

 

अर्थात् किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इस विषय में माता-पिता से शिक्षा मिलती है।

कहने का तात्पर्य हैं कि जो बात जीभ से कही जाती है उसका प्रभाव ज्यादा नहीं होता, जो बात जीवन से करके दी जाती है, उसका ज्यादा प्रभाव होता है। अपने बच्चों को केवल जीविका निर्वहन की ही शिक्षा न दें, बल्कि साथ साथ अच्छा जीवन जीने की भी शिक्षा दें।