अभी दिल्ली और उत्तराखंड से यूनिवर्सिटी चुनाव में एबीवीपी की जीत की खबरें आ रहीं थीं। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में ABVP ने left को हरा कर चारों पदों पर जीत हासिल करने की खबर तो खासी उत्साहवर्धक थी।और आज JNU में ABVP की हार की खबर आ गई। स्वाभाविक रूप से दुःख हुआ। और यह दुःख इसलिए भी अधिक क्योंकि एक साल पहले 2024 में वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद जीता था।
दूर से देखने पर कोई भी कहेगा कि JNU में फिर वामपंथी ताकतवर हो गए। लेकिन मैं पिछले कई सालों से JNU और DUSU सहित देश की अन्य यूनिवर्सिटी के चुनाव पर नज़र रखें हूँ। अन्य यूनिवर्सिटी और मप्र के विश्वविद्यालयों ( जहाँ चुनाव नहीं होते) पर फिर कभी विस्तार से बात करेंगे।
*आज केवल JNU की बात*
JNU में एबीवीपी का इतिहास जान लीजिए। ABVP के संदीप महापात्रा ने 2000–01 के चुनाव में अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की थी। इसके 14 साल बाद साल 2015 में सौरभ शर्मा के संयुक्त सचिव के पद पर जीत हासिल की थी। फिर 9 साल बाद पिछले साल 2024 में वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद जीता था।
जिस तरह से left का JNU पर दबदबा है, इसलिए left के सभी धड़े यहाँ से ऊर्जा प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसलिए अलग -अलग चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन इस बार left को AISA+SFI+DSF महागठबन्धन बनाने को मजबूर होना पड़ा।
महागठबंधन क्यों बना
एक समय में यहाँ ABVP का नाम लेना मुश्किल था। चुनाव में ABVP को 200-400 वोट भी मिल जाएं तो बड़ी बात होती थी। इस बार ABVP ने अकेले 1900 मत का आंकड़ा पार किया है। GS पर केवल 100 मतों का अन्तर रहा। सह सचिव में केवल 229 और अध्यक्ष में केवल 425 वोट का अंतर है।संघ शताब्दी वर्ष पर JNU में पथ संचलन का आयोजन भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है।
सीधी बात है कि JNU में ABVP का प्रभाव और वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है।
एबीवीपी ने जेएनयू के 16 स्कूलों और केंद्रों में से 44 में से 23 काउंसलर सीटें हासिल की हैं, जो एक महत्वपूर्ण और बड़ा आंकड़ा है। जेएनयू में लगभग 9,000 छात्र हैं जो छात्र संघ चुनावों के लिए मतदान करने के पात्र हैं, और 2025 में मतदान प्रतिशत लगभग 67% दर्ज किया गया। लगभग आधी काउंसलर सीट जीतना और केंद्रीय चुनाव में 1900 से अधिक वोट हासिल करना, यानी ABVP के JNU में लगभग 2000 सदस्य होंगे।
*संगठन के तौर पर यह ABVP की जीत है*
ABVP चुनाव हार गई, लेकिन संगठन के तौर पर विचार के तौर पर यह ABVP की जीत है। JNU से पढ़ कर UPSC में select होने वाले अफसरों को बहुत करीब से देखा है, इसलिए वहाँ राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ाने की जरूरत महसूस होती है।
1949 में गठित ABVP का मुख्य उद्देश्य तो राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है। एक बार जो विद्यार्थी ABVP से जुड़ गया, वह अपने क्षेत्र में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में अपना योगदान देता है।
इसलिए JNU में हमारी उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। यह लड़ाई विचारों की है, विचार के तौर पर हम जीते हैं।
शिक्षा क्षेत्र में सुधार, छात्र कल्याण, सामाजिक समरसता, छात्रों के बीच राष्ट्रीय चेतना और भातृत्व को बढ़ावा और भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए राष्ट्र शक्ति के रूप में छात्र शक्ति का यह आंदोलन जारी रहेगा। JNU में अगली सुबह हमारी होगी।
-एक स्थायी कार्यकर्ता