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…पार्षदी कि मंसूबे पाले नेताओ ने चुनावी घुंघरू तो पहले से ही बांध रखे थे….तारीखों का एलान ने इन घुंघरुओं की खनखनाहट बड़ा दी है। सबसे ज्यादा छम छम उन दावेदारों के आंगन में सुनाई दे रही है…जिनके ‘नृत्यक्षेत्र’ आरक्षण में मनोनुकूल हो गए। घुँघरू तो उन्होंने ने भी नही उतारे.. जिनके नृत्यक्षेत्र मन-मुताबिक नही हुए। ये अगल-बगल के आंगन में जाकर भी घुँघरू खनखनाने को तैयार है। कुछ घुँघरू ‘लड़ाकों’ ने स्वयम ही बांध लिए तो कुछ अपने ” आकाओं ” के दम पर बांधकर बेठे है। कुछ ने तो अभी से ही ‘खम’ भी ठोक रखे है कि ईमानदारी से दे दो…नही तो ‘नाचना’ तो तय है। पहचान के साथ नाचे या बगेर पहचान के…नाचना तय है। भले ही फिर ” आंगन टेड़ा ” ही क्यो न हो।
सबसे ज्यादा खनखनाहट नोजवान पैरों से आ रही है। उम्रदराज भी उम्मीद से है कि कभी भी ‘ नाचने ” को मिल सकता है…लिहाजा पांव खाली नही है। बस घुँघरू की खन खन कम है।
इन सबके बीच “महापौरी” की “पैजनियाँ” भी किसी पैर में बंधने को आतुर है। बस ” होनहार पूत के चिकने पात” नजर नही आ रहे। महापोरी के मामले में बगेर “नृत्य कौशल” के भी कुछ दावेदार आश्वस्त है कि ” पैंजनिया” उनके पांव में ही बंधेगी। उनकी ये आश्वस्ति दिल्ली-भोपाल ” घरानों ” में बेठे उनके ” उस्तादों ” के दम पर है। इन्ही ” घरानों ” के दम पर बरसो बरस से नाच रहे कुछ उम्रदराज भी बार बार पैर आगे कर रहे है कि…लाओ बांध दो, हमसे अच्छा कोई नही नाच सकता…आपके इशारों पर…!! अब तक नाचते आये आपके इशारे पर…अब ओर नाच लेंगे। लेकिन इस बार “बड़े घराने” का मंतव्य कुछ हटकर है…लिहाजा महापौरी की ये पैंजनिया अभी एहितयातन कम बज रही है। डर है कि कही घुँघरू खनखनाने से पहले ही टूट न जाये। डर सबसे ज्यादा बड़े ” नागपुरी घराने ” से बना हुआ है जहा पैजनियां को अंतिम आकर दिया जा चुका है…बस सही नाप का पांव तलाशना है…!!! ऐसे में पग डगमगाये की घुँघरू बिखरने में देर नही लगेगी।
….ओर उधर “नृत्यशाला”…..वो तो सुनी पड़ी है। “पंच” मारने के तमगों..छक्का लगाने के शोर ओर नगर के गौरवगान के बाद भी सन्नाटा है कि टूटने का नाम ही नही ले रहा। टूटे दरों-दीवार, ध्वस्त मकान-दुकान…टूटे ठेलों-गुमटियों…उजड़ती रोजी रोटी…ओर “पीली गैंग” की अराजक वसूली के कारण नृत्यशाला में उत्सव की जगह आक्रोश पसरा हुआ है। “त्यौहारी रंगत” उन चारण भाटो के चेहरे पर जरूर है जो “सुपारी” कलमकारी के सिरमौर है….ओर ये ही “सुपारी कलमकारी” रोज रोज नए नए “नर्तक” सामने लाकर घुँघरू बंधवा रही है…!!
तो नाचो भाई नाचो
बगेर जग की लाज किये
जब तक घुँघरू टूट न जाये….!!
साभार
नितिनमोहन शर्मा (लेखक)