श्रीगोपाल गुप्ता:
चम्बल घाटी में मूछों की आन,बान-शान,व जान की रक्षा करने वाली रिवाल्वर रानी अब छह लखटकिया की हो गयी है तो वहीं उनकी बहन बंदूक रानी भी लखटकिया का आंकड़ा पार कर गयी हैं! चम्बल में हथियारों पर हूई रुपयों की यह बढ़ोत्री अब तक के इतिहास में सारे रिकार्ड धवस्त कर सबसे ऊंचे पायदान पर है! लेकिन चौंकिये मत, जन चर्चा के अनुसार दुस्मन व लुटेरों से जान बचाने वाली ये रिवाल्वर और बंदूक की कीमते नहीं है! बल्कि ये रिवाल्वर और बंदूक के लिये शासन द्वारा दिये जाने वाले लायसैंस का शुकराना व नजराना है?वास्तविक कीमत तो लायसैंस प्राप्त होने के बाद खरीदने जायोगे,तब मालूम पढ़ ही जायेगी! लेकिन बताते हैं कि स्वदेश में बनी रिवाल्वर दो लाख के आसपास है जबकि विदेशी औसत 3 लाख रुपये की है!मगर चढ़ावे की कवायद आवश्यक है! फिर न आपसे कोई ये पूछने वाला है कि आप लायसैंस आत्म रक्षार्थ,जान-माल की सुरक्षा या आजीविका के चलाने किसी गार्ड आदि की नौकरी के लिये ले रहे हो? जबकि लायसैंस के लिये सक्षम अधिकारी को ये जानना और खुद की संतुष्टी के लिये आवश्यक है!उल्लेखनीय है कि पूरे देश में हथियारों की होड़ में मध्यप्रदेश के मुरैना व भिण्ड जिले शुरु से ही अव्वल रहे हैं! पुराने समय से ही जब डकैतों के आतंको से चम्बल संभाग दहशत की गर्त में चला जाता था और क्या शहर और क्या गांव सांझ ढलते ही सभी जगह बिरानी छा जाती थी! तब लोग अपनी जानमाल की सलामती के लिये बंदूक या रिवाल्वर रखना जरुरी समझते थे फिर शासन के पास भी पुलिस बल प्रर्याप्त न था इसलिये हथियार रखना मजबूरी और आवश्यक था!
मगर समय बदला और आहिस्ता-आहिस्ता चम्बल डकैतों के अभिशाप से मुक्त होती गयी और कुछ लोंगो पर अवैध अनाप-शनाप पैसा आने लगा बैसे-बैसे ही बंदूक और रिवाल्वर चम्बल के लोगों के लिये आन-बान-शान और मूछों का ताव का स्टेटश बन गयी नतिजा सामने है कि केवल नजराना और शुकराना ही रिवाल्वर के लायसैंस पर छह लाख रुपये और बंदूक पर तकरीबन एक लाख रुपये चुकाना पढ़ रहे हैं! जबकि पूरे देश में मात्र कुछ रुपये शुल्क चुकाने पर ही लायसैंस बन कर जरुरत मंदों को मिल जाता है और देश के अधिकांश प्रदेशों में रिवाल्वर बनाने के अधिकार जिलाधीशों के हवाले हैं तो फिर मप्र में ये उल्टी गंगा क्यों बह रही है?कि अनुसंशा प्रदेश का ग्रह विभाग का मुखिया करेगा तभी लायसैंस बनेगा? और आश्चर्य की बात है कि इतना भारी-भरकम नजराना चुकाने के बावजूद मप्र की राजधानी भोपाल से बनकर आ रहे हैं ! मगर सबसे बड़ी दिक्कत चंबल की सैकड़ौं गांव में में देश की सेना से सेवा निवृत होकर निवास कर रहे उन हजारों पूर्व बहादुर जवानो व नोजवानों की है जो गुजर-बसर के लिये बंदूक लेकर गार्ड व रिवाल्वर का लायसैंस लेकर बाॅडीगार्ड की नौकरी करना चाहते हैं और उन लोगों की है जो वास्तव में अपनी जान-माल की रक्षा करना चाहते हैं! मगर प्रदेश में बह रही इस महा भ्रष्टाचार की गंगा में वे महज इसलिये डुबकी नही लगा पा रहे हैं कि उन पर भेंट चढ़ाने के लिये पैसे नहीं हैं! कल तक जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी लायसैंस मात्र कुछ रुपयों में लायसैंस बनकर आ जाते थे! कांग्रेस ही नहीं भाजपा के 15 वर्षों के कार्यकाल में भी यही परंपरा कायम थी!फिर अब अचानक ऐसा क्या हुआ कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री उफान मारने लगी?सबसे दुःखद तो यह है भाजपा के मठाधीश तो चुप हैं मगर कांग्रेस के जनप्रतिनिधी और नेता इस महा भारष्टाचार पर आवाज क्यों नहीं उठा रहे? याद रखना चाहिये कि इतिहास उनको भी माफ नहीं करेगा!