क्या पश्चिमी देशों से हमारी नजदीकी हमारे पड़ोसियों को चुभ रही?

 

 

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले सात सालों में हमारी विदेश नीति अमरीकी और युरोपियन देशों के इर्दगिर्द घूमी है और शायद यही कारण है कि हमारे पड़ोसी देश हमारे बढ़ते रुतबे को देख जल रहे हैं और परिणामस्वरूप सीमा रेखा पर टेंशन एवं आये दिन चाहे वो बांग्लादेश हो, नेपाल हो, श्रीलंका, चीन या पाकिस्तान- हमारे खिलाफ विरोधाभासी बयान देने से बाज नहीं आते.

पिछले दिनों हुई जी-7 समिट जिसमें दुनिया के 7 विकसित और धनाड्य देश- अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी और जापान शामिल हुए, उसमें भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और ताईवान को भी निमंत्रण दिया गया.

साफ था शक्तिशाली देशों ने ऐसे देशों को शामिल करने की कोशिश करी जो चीन से मुकाबले में साथ दे और उसकी बढ़ती शक्ति को दायरे में बांध सकें.

चीन को टक्कर देने की चाहत रखने वाले जी7 नेताओं ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों का समर्थन करने की योजना अपनाई है जिसके तहत जी7 देश इन्हें बेहतर बुनियादी ढाँचा खड़ा करने में मदद करेंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि वो चाहते हैं कि अमेरिका समर्थित ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ (बी3डब्ल्यू) प्लान, इसी तरह की चीनी योजना के सामने एक उच्च गुणवत्ता वाले विकल्प के तौर पर खड़ा हो.

चीन की ‘बेल्ट एंड रोड परिजोयना’ (बीआरआई) ने कई देशों में ट्रेनों, सड़कों और बंदरगाहों को सुधारने के लिए आर्थिक मदद की है.

लेकिन इस बात को लेकर चीन की आलोचना भी होती रही है कि उसने कुछ देशों को कर्ज़ में दबाने के बाद, उन पर ‘हुकूमत जमाने’ की कोशिश भी की.

आज पूरा विश्व चीन को भरोसा करने लायक देश नहीं मानता, लेकिन चीन अपने उत्पादन क्षमता, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के बल पर मजबूर और विकासशील देशों में निवेश कर उन पर कब्जा जमाने की फिराक में रहता है.

ऐसे पडोसी से हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है और साथ ही हमारी विदेश नीति में पश्चिमी देशों के प्रति पुरा झुकाव न होकर अपने पड़ोसियों को भी साथ में लेकर चलने की नीति पर काम करना होगा.

*हमारी विदेश नीति में पड़ोसी देशों को विश्वास दिलाना होगा कि पश्चिमी देशों से नजदीकी सिर्फ इस क्षेत्र के विकास के लिए है, सभी सार्क देशों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रति है ताकि वे गलत नीति का विरोध कर सकें और चीन के हाथों में कठपुतली बन कर न रह जाएं.*

*यह हमारी विदेश नीति की कमजोरी रही है कि हम अपने पड़ोसियों का विश्वास नहीं जीत सकें और न ही उन्हें साथ लेकर चल सकें और शायद इसीलिए इस साउथ ईस्ट एशिया में आज हम वैश्विक शक्ति होने के बावजूद अकेले खड़े हैं.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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