क्या इंदौर मध्य प्रदेश मे भाजपा भी 20 वर्ष पुरानी काँग्रेस के पद चिन्हों पर चल पड़ी है –
वर्तमान मे सभी मध्य प्रदेश निवासी थोपे हुए मुख्यमंत्री के द्वारा शासित प्रदेश की स्थिति देखकर अपने आप को ठगा सा अनुभव कर ही रहे होंगे। ऐसा लगने लगा है कि जैसे कोई भी बुद्धिजीवी, विशिष्ट जन, समाज के श्रेष्ठी जन अब बोलने से भी कतराने लगा है। गुंडाराज का आगमन स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ने लगा है, किसी भी वरिष्ठ भाजपा नेता, जन प्रतिनिधि और विपक्ष तक के लोग भी अब बोलने से कतराने लगे है। जनता एक अलग ही भ्रम मे जी रही है बस मंदिर, बड़े धार्मिक आयोजन, भंडारे, चुनरी यात्रा इत्यादि ही हिन्दुत्व का प्रतीक बनकर रह गए है। धर्म के वास्तविक अर्थ से तो आजकल बड़े बड़े संत, कथावाचक भी अनजान दिखाई पड़ रहे है। सभी लोग बस एक हिन्दुत्व के नाम से बनाए गए भ्रमजाल मे उलझकर सही गलत का निर्णय लेने मे असमर्थ होते जा रहे है, और उस अनुसार ही अपने मत (वोट) का आँकलन कर रहे है।
जिस प्रकार से कथित बड़े राष्ट्रीय नेता के विश्वास पात्रों द्वारा शहर मे गुंडागर्दी के सारे रेकॉर्ड्स तोड़ते दिखाई पड़ रही है, कोई भी छुटभैये नेता से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता तक इस विषय को लेकर बोलने से डर रहे है। क्या कथित राष्ट्रीय नेता इतने बड़े हो गए है कि शहर तो ठीक, प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय नेता भी उनके विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे है। शहर के प्रथम नागरिक तो अंतिम पंक्ति मे खड़े नागरिक की भांति असहाय होकर शहर मे कोई भी सुधार न करने की कसम खा चुके है।
किसी को भी सड़कों पर अनियंत्रित यातायात, जलकुंभी की तरह फैलते हुए अतिक्रमण, बीच मार्ग पर लगते फल सब्जी विक्रेता ठेले, किसी भी प्रकार का यातायात नियम का पालन न करने के कृत्य जैसे कि मोबाईल का उपयोग करते हुए वाहन चालन या वन वे मे सीना चौड़ा करके चलने वाले सही दिशा से आने वाले व्यक्ति को घूरते चालक, बिना प्लैनिंग के होते अनियंत्रित बिना काम के विकास कार्य जिनसे शायद शहर के अलावा कुछ और ही लोगों का विकास हो रहा है, प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के आगे निकलने की होड, शहरों के मार्ग, सब तरफ से आने वाले वाहनों से उलझे हुए चौराहे पर चालान बनाने के अलावा कभी न दिखाई पड़ने वाले पुलिस विभाग के कर्मचारी इत्यादि समस्याओ से कोई लेना देना नहीं है। पहले तो बहुत से चौराहे पर कैमरा द्वारा नियम तोड़ने संबंधित चालान की प्रक्रिया भी होती थी जो भी ठंडे बस्ते मे चली गई है। शहर के व्यस्ततम मार्गों पर अनियंत्रित गति से चलने वाली राज्यीय या अंतरराज्यीय बसों, जो कि लगभग किसी बड़े नेता, विधायक, मंत्री के वरदहस्त द्वारा किसी को भी मरने मारने के लिए स्वतंत्र है, किसी को कोई भी डर नहीं है सड़क पर जिसे जैसे चाहे अपनी हिसाब से चलने फिरने की स्वतंत्रता अंततोगत्वा स्वतंत्र भारत मे प्राप्त हो ही गई है।
मात्र 2-3 वर्ष पहले तक देश भर मे गर्व से स्वच्छता मे प्रथम के बारे कहते हमारे शहर के नागरिक आज अपने शहर को रहने लायक स्थिति मे भी नहीं पा रहे है। शासन प्रशासन नाम की इकाइयां तो जैसे शहर मे सुशासन (गुड गवर्नन्स) के अलावा कुछ और ही कार्य के लिए स्थापित दिखाई पड़ती है।
अंत मे एक निसहाय अंतर मन से अत्यंत दुखी एक नागरिक इस शहर, प्रदेश एवं देश के मुखिया से अपील कर रहा है कि मेरा शहर कभी लाखों लोगों के सपनों का शहर होता था आज किस मकड़जाल मे उलझता जा रहा है, सत्ताधारी दल के लोग आज शासक न होकर तानाशाह बनते जा रहे है, सब कुछ जैसे एक सपना टूटने जैसा दिखाई पड़ने लगा है। कृपया इस शहर को फिर से सदैव जीवित, सदा हँसते खेलते रहने वाले, उत्सव मे जीने वाले, शांति और प्रसन्नता से जीने वाले नगर बनाने के लिए हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन करते है।
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